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मैथिली व संस्कृत में घट रही संख्या
दरभंगा : भाषा अभिव्यक्ति का माध्यम है. स्वाभाविक रूप से यह क्षेत्र विशेष में किसी विशेष भाषा का उपयोग सर्वाधिक होता है. पर लनामिवि के स्नातकोत्तर विभागों को छात्र संख्या के आधार को देखें तो यह स्पष्ट हो जाता है कि यहां इस क्षेत्र के पुरातन संस्कृति से जुड़ी भाषा संस्कृत व मैथिली के प्रति […]
दरभंगा : भाषा अभिव्यक्ति का माध्यम है. स्वाभाविक रूप से यह क्षेत्र विशेष में किसी विशेष भाषा का उपयोग सर्वाधिक होता है. पर लनामिवि के स्नातकोत्तर विभागों को छात्र संख्या के आधार को देखें तो यह स्पष्ट हो जाता है कि यहां इस क्षेत्र के पुरातन संस्कृति से जुड़ी भाषा संस्कृत व मैथिली के प्रति छात्रों का आकर्षण कम हो रहा है. वे इसके प्रति निरंतर उदासीन हो रहे हैं.
जबकि अंगरेजी भाषा के प्रति छात्रों की अभिरुचि बढ़ रही है. या यों कहे तो अतिश्योक्ति नहीं होगी कि मिथिला के क्षेत्र पर विलायती बोल का जोर बढ़ रहा है. आंकड़े बताते हैं कि विवि स्नातकोत्तर विभागों में सत्र 2014-16 से लेकर सत्र 2011-13 तक के सभी सत्रों में अंग्रेजी में छात्रों की संख्या सर्वाधिक है. जबकि इस धरती से जुड़ी भाषा संस्कृत व मैथिली में छात्रों की संख्या निरंतर कम है. सत्र 2014-16 में संस्कृत व मैथिली में नामांकित छात्रों की संख्या सर्वाधिक कम 15-15 है.
वहीं हिंदी में 44, उर्दू में 57 और अंगरेजी में 94 है. विवि में कुल पांच भाषा एवं साहित्य का अध्ययन अध्यापन की व्यवस्था है. इसमें सबसे अधिक अंगरेजी भाषा छात्रों के प्रति लोक प्रिय है. दूसरे नंबर पर उर्दू तीसरे पर हिंदी और चौथे पांचवें पर मैथिली आ संस्कृत भाषा का स्थान दिखता है. सबसे दयनीय स्थिति संस्कृत भाषा को सत्र 2012-14 में है. इस सत्र में मात्र सात छात्र-छात्राएं ही भाषा का अध्ययन के लिए नामांकित हुई है.
वैसे अंग्रेजी भाषा एवं साहित्य को अध्ययन कर रहे छात्रों की संख्या पर ध्यान दें तो यह भी घटते क्रम में दिखायी देता है. 2012-14 में 115 छात्र-छात्र है, जबकि 2013-15 में 100 व 2014-16 में मात्र 94 पर सिमट गया है. कारण जो भी रहा हो उक्त आंकड़ें भाषा साहित्य के संवर्धन के लिए उत्साहपूर्वक परिणाम नहीं कहे जा सकते हैं.
वैसे कारणों की पड़ताल करते हुए विभिन्न भाषा साहित्य के विभागाध्यक्षों ने भी अपनी अपनी राय प्रकट की है. विवि के संस्कृत विभागाध्यक्ष प्रो. रामनाथ सिंह बताते हैं कि संस्कृत भाषा छात्रों के लिए कठिन माना जाता है. इसमें छात्रों को बिना प्रचुर परिश्रम के अच्छे परिणाम नहीं प्राप्त हो सकते हैं. इसमें शार्ट कट पद्धति नहीं चल सकती है.
रोजगार की दृष्टि से संस्कृत लाभप्रद
वैसे रोजगार सृजन की दृष्टि से यह भाषा काफी अच्छी है. दूसरा कारण यह भी है कि लोग इसे आम अवाम की भाषा नहीं बल्कि एक विशेष जाति की भाषा के रुप में देखते है.
पीएचडी धारक हैं वर्षो से बेरोजगार
मैथिली भाषा के विवि विभागाध्यक्ष डा. धीरेंद्रनाथर मिश्र व्यावहारिक पक्षों को बताते हुए कहा कि इस भाषा के अध्ययन करनेवाले के लिए रोजगार के अवसर कम होते जा रहे हैं. फि लवक्त प्राथमिक व उच्च विद्यालयों में जो शिक्षकों की नियुक्ति होती है, उसमें इस विषय के अभ्यर्थियों को कोई विशेष प्राथमिकता नहीं होती है. वहीं विषय के पीएचडी धारक भी वर्षो से बेरोजगार है. व्याख्याताओं की नियुक्ति वर्षो से नहीं हुई है.
अंगरेजी का बढ़ रहा महत्व
अंग्रेजी के विवि विभागाध्यक्ष प्रो. उत्तम लाल ठाकुर ने कहा कि अन्य भाषा एवं साहित्य की तुलना में अंगरेजी भाषा का महत्व निरंतर बढ़ रहा है. इसका महत्व राष्ट्रीय ही नहीं अंतरराष्ट्रीय हो गया है. वहीं इस भाषा में रोजगार सृजन की काफी क्षमता है.
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