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कोर्ट के निर्देश की अनदेखी

दरभंगा : लनामिवि के डब्ल्यूआइटी में शिक्षकों के 18 एवं शिक्षकेतर कर्मियों के कुल 34 पदों के लिए अनुबंध के आधार पर नियुक्ति की प्रक्रिया संपन्न हुई है. वहीं पूर्व से अनुबंध के आधार पर कार्यरत 8 शिक्षक एवं 24 शिक्षकेतर कर्मियों की सेवा समाप्त कर दी गयी है. नियुक्ति प्रक्रिया में अनियमितता एवं नियमों […]

दरभंगा : लनामिवि के डब्ल्यूआइटी में शिक्षकों के 18 एवं शिक्षकेतर कर्मियों के कुल 34 पदों के लिए अनुबंध के आधार पर नियुक्ति की प्रक्रिया संपन्न हुई है. वहीं पूर्व से अनुबंध के आधार पर कार्यरत 8 शिक्षक एवं 24 शिक्षकेतर कर्मियों की सेवा समाप्त कर दी गयी है.

नियुक्ति प्रक्रिया में अनियमितता एवं नियमों की अनदेखी को लेकर विवि प्रशासन पर उच्च न्यायालय में मुकदमा भी दायर हुआ. वहीं मामले की सुनवाई के दौरान उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने कुलपति की कार्यप्रणाली पर तीखी प्रतिक्रिया जाहिर की है. इधर इस पूरे मामले में कई ऐसे चौंकाने वाले तथ्य उजागर हुई है जो नियुक्ति प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए विवि प्रशासन की मंशा व कार्यप्रणाली पर भी प्रश्न खड़े कर दिये हैं.

सर्वोच्च न्यायालय का स्पष्ट निर्देश है कि अनुबंध के आधार पर नियुक्त कर्मी की सेवा समाप्त कर पुन: अनुबंध के आधार पर नियुक्ति की प्रक्रिया नहीं होनी चाहिए. इससे प्रशासन में पक्षपात, मनमानी व निरंकुशता आदि नकारात्मक प्रवृत्तियों को बढ़ावा मिलता है. डब्ल्यूआइटी के मामले में 19 मई 2015 को सुनवाई के दौरान हाइकोर्ट ने भी सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्देश का उल्लेख अपनी प्रतिक्रिया में की है.

पूर्व से अनुबंध पर कार्यरत कर्मियों की सेवा समाप्त कर नये सिरे से अनुबंध पर कर्मियों की नियुक्ति प्रक्रिया में सरकार के आरक्षण मापदंड की अनदेखी का मामला भी सामने आया है. जानकारों की मानें तो एकल पद को आरक्षित नहीं किया जा सकता. वहीं शिक्षक पदों के लिए जारी विज्ञापन के अनुसार सिविल के एकमात्र पद को आरक्षित श्रेणी के तहत एससी संवर्ग में रखा गया. वहीं तृतीय वर्ग के तहत सहायक एवं सिस्टम एनालिस्ट के एकल पदों को इबीसी संवर्ग में रखा गया. कंप्यूटर ऑपरेटर के एकल पद को बीसी संवर्ग में रखा गया.

लाइब्रेरियन के एकमात्र पद को रखा तो गया सामान्य श्रेणी में पर नियुक्ति ओबीसी संवर्ग के तहत की गयी. वहीं चतुर्थ वर्गीय कर्मियों के कुल 22 पदों में सामान्य श्रेणी के केवल 3 अभ्यर्थियों की नियुक्ति की गयी जबकि शेष 19 पद आरक्षित श्रेणी से भरे गये.

संस्थान में पूर्व से कार्यरत कई अनुबंध कर्मियों ने बताया कि विज्ञापन प्रकाशित होने के बाद उन्होंने आवेदन तो दिया पर बिना किसी वैध कारण के उनके आवेदनों को स्क्रुटनी के क्रम में रद्द कर दिया गया.

हालांकि विरोध जताने पर उन्हें साक्षात्कार में शामिल तो किया गया पर उनसे कम योग्यता व अनुभव वाले अभ्यर्थियों का चयन कर उन्हें जबरन सेवामुक्त कर दिया गया.

सेवा समाप्ति का निर्णय

पूर्व से कार्यरत कर्मियों ने 11 फरवरी 2015 को उच्च न्यायालय में सीडब्ल्यूजेसी नंबर 3159/15 दायर किया. हालांकि 8 मई 2015 को मामले में निर्णय विवि के पक्ष में आया. इसके बाद आनन-फानन में 11 मई को मैनेजिंग काउंसिल की बैठक आयोजित कर विवि प्रशासन ने तत्परता दिखाते हुए साक्षात्कार के परिणाम पर कर्मियों की नियुक्ति का निर्णय लेते हुए पूर्व से कार्यरत 8 शिक्षक व 24 शिक्षकेतर कर्मियों को सेवा समाप्ति का पत्र थमा दिया गया.

प्रकाशित नहीं हुआ रिजल्ट

मैनेजिंग काउंसिल की बैठक में साक्षात्कार के परिणाम के आधार पर नियुक्ति का निर्णय तो लिया गया पर परिणाम का प्रकाशन नहीं किया गया. लोगों का मानना है कि गुपचुप तरीके से अभ्यर्थियों को नियुक्ति करने की प्रक्रिया शुरू की गयी. बताया जाता है कि नियुक्ति प्रक्रिया से संबंधित विवरण भी संस्थान के वेबसाइट से नदारद हैं. ऐसे में नियुक्ति प्रक्रिया की निष्पक्षता व पारदर्शिता एवं प्रशासन की मंशा संदेह के घेरे में आती दिख रही है. पूर्व कर्मियों की मानें तो नियुक्ति में भाई-भतीजावाद व पैरवी का खेल व्यापक स्तर पर चला है.

कार्यप्रणाली पर उठे सवाल

मैनेजिंग काउंसिल के निर्णय के उपरांत 16 मई को उच्च न्यायालय में सीडब्ल्यूजेसी 3159/15 में एलपीए 1052/15 दायर किया गया. मामले की सुनवाई के क्रम में 19 मई को मुख्य न्यायाधीश एल नरसिम्हा रेड्डी एवं न्यायाधीश सुधीर कुमार सिंह की पीठ ने वीसी की कार्यप्रणाली पर प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए कहा कि नियुक्ति के साथ ही वीसी ने डब्ल्यूआइटी में खुद की टीम बनाने की मंशा से पूर्व से कार्यरत कर्मियों को हटाकर नये लोगों की नियुक्ति के लिए विज्ञापन जारी किया. इस कड़ी में कोर्ट ने पूरे मामले में वीसी से 23 जून को कोर्ट के समक्ष स्पष्टीकरण का निर्देश भी दिया है.

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