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मानवाधिकार पर निरंतर हुआ विचार

संस्कृत विवि के व्याकरण विभाग में सेमिनार का आयोजन, बोले वीसी दरभंगा : कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के व्याकरण विभाग में गुरुवार को राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया गया. यूजीसी संपोषित सेमिनार में मानवाधिकार व कर्तव्य में व्याकरण शिक्षा के अवदान विषय पर चर्चा की गयी. सेमिनार के उद्घाटनकत्र्ता वीसी डा. देवनारायण झा ने […]

संस्कृत विवि के व्याकरण विभाग में सेमिनार का आयोजन, बोले वीसी
दरभंगा : कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के व्याकरण विभाग में गुरुवार को राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया गया. यूजीसी संपोषित सेमिनार में मानवाधिकार व कर्तव्य में व्याकरण शिक्षा के अवदान विषय पर चर्चा की गयी.
सेमिनार के उद्घाटनकत्र्ता वीसी डा. देवनारायण झा ने इस अवसर पर अपने अध्यक्षीय संबोधन में कहा कि मानवाधिकार के विषय में पतंजलि एवं वार्तिक कारों में इसके संरक्षण की बात कही है.
जगत के सभी कार्य शब्द से संचालित होते हैं. इसलिए भर्तृहरि ने शब्द को ब्रह्म कहा है. डा. झा ने कहा कि शास्त्रों में गूढ़ तत्व भरे पड़े हैं. उन्होंने इसके अनुसंधान की आवश्कता पर बल देते हुए कहा कि संस्कृ त के शास्त्रों में मानवाधिकार का विचार निरंतर किया जाता रहा है.
उन्होंने उपस्थित विद्वानों से नवीन अनुसंधान पर संस्कृत का समवर्धन करने की अपील की. मुख्य अतिथि बिहार विवि के पूर्व संस्कृत विभागाध्यक्ष डा. सतीश चंद्र झा ने अपने संबोधन में कहा कि मानवाधिकार से मानव समुदाय के अधिकार क ा अर्थ ध्वनित होता है. यहां मानव शब्द से स्त्री अधिकारों का भी बोध होता है.
आज विश्व स्तर पर बलात्कार, हिंसा, भ्रष्टाचार आदि से मानवाधिकार के हनन की बात करते हुए कहा कि व्याकरण के परिप्रेक्ष में विवाहिता वधू सुमंगली कही जाती है. नारियों के उच्च कोटि व निम्न कोटि स्थान होने से मानवाधिकार का संरक्षण व हनन होता है. स्वैरिणी, व्यभिचारिणी, बंध्या आदि कुत्सित शब्दों से स्त्रियों में हीनता को दिखलाया जाता है.
डा. झा ने कहा कि पतंजलि ने महाभाष्य में सभा में गमन करनेवाली स्त्री को साध्वी नहीं कहा है. इस प्रकार नारी के अधिकारों के संबंध में पतंजलि सम्मेदनशील नहीं रहे. दुर्गा, चंडी आदि उत्कर्ष बोधक शब्द नारियों के लिए प्रयुक्त हैं. अत: जगह जगह पर स्त्रियों के मानवाधिकार को भी व्याकरण में दिखलाया गया है.
राष्ट्रपति सम्मान से सम्मानित विशिष्ट अतिथि डा. कृष्णानंद झा ने कहा कि किसी भी शास्त्र की अवगति में व्याकरण शास्त्र की उपयोगिता स्वत: सिद्ध है. शब्द के जितने भी अर्थ होते हैं वे सभी शब्द में ही निहित हैं. मानव शब्द में ही मानवाधिकार के भान निहित है. विशिष्ट अतिथि वीरकुंवर सिंह विवि के पूर्व संस्कृत विभागाध्यक्ष डा. श्यामानंद झा ने कहा कि व्याकरण शास्त्रों में मानवाधिकार के संरक्षण के लिए गंभीर रहस्यमय विवेचन भरे पड़े हैं.
इससे पूर्व वीसी डा. झा सहित अतिथियों ने दीप प्रज्वलित कर सेमिनार का विधिवत उद्घाटन किया. स्वागत भाषण विभागाध्यक्ष डा. विद्याधर मिश्र ने प्रस्तुत किया. प्रथम सत्र में शोधार्थियों ने अपने आलेख प्रस्तुत किये. संयोजन डा. शशिनाथ झा ने किया. द्वितीय सत्र में डा. रवींद्र नारायण झा की अध्यक्षता में संयोजक डा. बालमुकुंद मिश्र ने प्रतिभागियों के आलेखों का पाठ करवाया.
समापन सत्र में प्रतिकुलपति की अध्यक्षता में मुख्य अतिथि डा. प्रकाश पांडेय ने व्याकरण शास्त्र में मानवाधिकार की वृहत चर्चा की.
विशिष्ट अतिथि डा. विघAेशचंद्र झा ने शब्द ब्रह्म के माध्यम से मानवाधिकार के मूल्यों की संस्थापना की. अध्यक्षीय संबोधन में प्रतिकु लपति डा. नीलिमा सिन्हा ने मानवाधिकार की प्रासंगिकता पर बल दिया. धन्यवाद ज्ञापन व संयोजन डा. दयानाथ झा ने किया.

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