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नशे के दलदल में डूब रही युवा पीढ़ी

थीनर, कफ सीरफ व नशे की गोली का ले रहे सहारा दरभंगा : नशे के दल-दल में युवा पीढ़ी के पांव धंसते जा रहे हैं. इसमें युवाओं से कहीं अधिक संख्या किशोर वय के बच्चों की है. जिस तरह इस दल-दल में युवाओं की फौज बड़ी होती जा रही है उससे यह बात समाज के […]

थीनर, कफ सीरफ व नशे की गोली का ले रहे सहारा
दरभंगा : नशे के दल-दल में युवा पीढ़ी के पांव धंसते जा रहे हैं. इसमें युवाओं से कहीं अधिक संख्या किशोर वय के बच्चों की है. जिस तरह इस दल-दल में युवाओं की फौज बड़ी होती जा रही है उससे यह बात समाज के लिए चिंताजनक हो गयी है. हालांकि इसके लिए अभिभावक भी कम दोषी नहीं हैं.
अपने बच्चों के प्रति जैसे-जैसे माता-पिता की लापरवाही बढ़ती जा रही है, उसी अनुपात में गलत राह में बच्चों के कदम बढ़ते जा रहे हैं. सबसे अधिक चिंताजनक पहलू इस नशे के जाल में लड़कियां भी फंसती जा रही हैं. न तो इस ओर प्रशासन की नजर है और न ही अभिभावक ही संजीदा नजर आ रहे हैं. आलम यह है कि शहर के सुनसान इलाकों में दिन के उजाले में भी बच्चे नशे में धुत्त मिल जाते हैं. समय के साथ अपेक्षाकृत कम उम्र में ही मानसिक रूप से परिपक्व होती जा रही नयी पीढ़ी इसमें अधिक दिख रही है.
किशोर नशे के लिए नये-नये तरीके इस्तेमाल कर रहे हैं. थीनर, नशे की गोली, कोडीन युक्त सीरफ के अलावा अन्य उपलब्ध नशे का सामान इस्तेमाल कर रहे हैं. लुंज-पुंज चिकित्सा व्यवस्था के कारण इन बच्चों को ये ‘प्रतिबंधित’ दवायें सहजरूप में मिल जाती हैं.
नियम को ताख पर रख बेची जा रही दवायें
जानकारों की मानें तो नशा में इस्तेमाल होने वाली दवायें एनआरएक्स ड्रग की श्रेणी में आते हैं. इन सभी दवाओं के क्रय-विक्रय की सूची दुकानदारों को रखनी है. ये सभी ड्रग चिकित्सक के पुज्रे पर ही बेचे जाने हैं. साथ ही चिकित्सक के पुज्रे का फोटो स्टेट कॉपी दुकानदार को नियमत: अपने पास रखना है.
इन दवाओं के खरीद-बिक्री की पूरी सूचना संबंधित विभाग को मुहैया करानी है, लेकिन ऐसा होता नहीं. विभागीय सख्ती नहीं होने की वजह से कई दुकानदार अपने लाभ के लिए नई पीढ़ी को गलत रास्ते पर जाने से रोकने के बदले दवायें बेच देते हैं. विभाग भी इस ओर ध्यान नहीं दे रहा.
अभिभावकों को भी रखनी होगी निगाह
नशे के दल-दल में धंसती जा रही नई पीढ़ी के लिए उनके अभिभावक भी कम जिम्मेवार नहीं हैं. उनके बच्चे कहां जा रहे हैं, क्या कर रहे हैं इस पर ध्यान नहीं देते. कामकाज में उलङो रहने के कारण बच्चों को पूरा समय भी नहीं दे पाते.
चिकित्सकों का कहना है कि नई पीढ़ी को इस जाल से मुक्त करने तथा इसमें फंसने से रोकने के लिए सबसे अधिक जागरूक व साकांक्ष अभिभावकों को ही रहना होगा. अगर कोई बच्चा अचानक सुस्त नजर आने लगे, उसकी आंखें बोझिल दिखे, आंख के नीचे काला धब्बा बनता नजर आये तो तुरंत इसपर ध्यान देना चाहिए.
उनकी संगत किन बच्चो के साथ है, वे घर के बाहर क्या करते हैं इन सब पर निगाह रखने की जरूरत है. बच्चों को पूरा समय देकर, उनसे बात कर इस दल-दल से समय रहते उन्हें निकाला जा सकता है. आवश्यकता पड़ने पर चिकित्सकीय परामर्श भी लेनी चाहिए. इस समस्या से केवल वे ही नहीं जूझते जिनके बच्चे इसमें संलिप्त हैं. कारण नशे में डूबे किशोर वय के बच्चे आमजन को अपने व्यवहार से परेशान करते हैं.
ये हैं चिह्न्ति स्पॉट
शहर के कई जगहों पर नशे में बेसुध बच्चे पड़े मिल जाते हैं. आम आवाजाही जिन इलाकों में कम होती है, उन स्थानों पर ऐसे बच्चों की फौज मिल जाती है. इसमें लनामिवि व संस्कृत विवि परिसर को सबसे ज्यादा सेफ इलाका बच्चे मानते हैं. डा. नागेंद्र झा स्टेडियम की जब कभी सफाई होती है, थीनर की बोतलें मिलती हैं, जो इसका प्रमाण देते हैं.
वहीं लहेरियासराय के नेहरू स्टेडियम, डीएमसीएच का प्ले ग्राउण्ड, केएस कॉलेज व मारवाड़ी कॉलेज का मैदान, दरभंगा के सीएम लॉ कॉलेज, पुराने सांग एण्ड ड्रामा डिवीजन परिसर के अलावा अन्य अपेक्षाकृत शांत इलाके में ऐसे बच्चों का जमावड़ा दिन के उजाले में भी लगा रहता है. मुहल्लावासियों की मानें तो ऐसे ही किशोरों की टोली डेनवी रोड अवस्थित पुराने जजर्र विवि भवन से विवि थाना की पुलिस के पहुंचने पर फरार हो गयी थी, जिसमें कु छ को पुलिस ने दबोच भी लिया था. चेतावनी देने के साथ ही परिजनों को सूचना देकर बाद में छोड़ दिया गया.
व्हाइटनर व थीनर का प्रयोग सबसे ज्यादा
नशे के लिए व्हाइटनर या नेल पॉलिस में इस्तेमाल किये जानेवाले थीनर का प्रयोग सबसे ज्यादा होता है. बच्चे किसी भी जेनरल स्टोर या किताब-कॉपी की दुकान से थीनर खरीद लेते हैं. इसे रूमाल या किसी दूसरे कपड़े पर उड़ेलकर सूंघते हैं. बच्चों ने बताया कि ऐसा करने के बाद एक नशा सा छा जाता है. इसे खरीदने में किसी तरह की परेशानी भी नहीं होती. लोग शक भी नहीं करते. जानकारी के अनुसार इसका नशा इतना तेज होता है कि सामान्य होने में बच्चों को कई बार घंटों लग जाते हैं.
वहीं ट्रैकोलाइजर ड्रग जैसे अल्प्राजोलम, डाइजीपाम आदि का भी उपयोग धड़ल्ले से नशा के लिए किया जाता है. कोडीनयुक्त कफ सीरफ का भी इस्तेमाल भी इसके लिए किया जाता है. यही वजह है कि कई कफ सीरफ मार्केट में आते ही हाथों-हाथ उड़ जाते हैं. दुकानदार भी इसका खूब लाभ उठाते हैं. निर्धारित कीमत से काफी अधिक दाम पर इन दवाओं को बेच मोटी रकम कमाते हैं. इसके अतिरिक्त नशीला पदार्थ मिलाकर धूम्रपान के जरिये लेते हैं.
विभाग को दिखानी होगी सख्ती
धड़ल्ले से नशे के लिए इस्तेमाल की जानेवाली इन दवाओं की बिक्री पर लगाम लगाने के लिए ड्रग विभाग को सख्त निगाह रखनी होगी. नियम को सख्ती से लागू करना होगा. शहर तथा इसके आस-पास के क्षेत्र में कुछ विक्रेताओं द्वारा खुलेआम ये दवाइयां बेची जा रही हैं. विभाग को ऐसे दुकानदारों पर नकेल कसने के लिए कड़ा रूख अपनाना होगा. साथ ही ग्रामीण इलाके में बिना लाइसेंस के दवा दुकान चलाने वालों पर कार्रवाई करनी होगी.
कहते हैं मनोचिकित्सक
इस संबंध में संपर्क करने पर डीएमसीएच के मनो चिकित्सा विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ उपेन्द्र पासवान ने बताया कि ऐसे मामलों में काउंसिलिंग की जरूरत होती है. इसका लाभ सबसे अधिक होता है. लगातार नशापान से अगर रोग हो जाये तो उनके लिए चिकित्सा विज्ञान में दवा भी उपलब्ध है. अभिभावकों को चाहिए कि समय रहते इसे चिह्न्ति कर चिकित्सक की सलाह लें.

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