बिरौल, दरभंगाः पूरी व्यवस्था- प्रशासनिक महकमा कहने को तो आम लोगों के लिए है, लेकिन धरातल पर यह कितना सच है, इसकी पड़ताल आप हाकिमों के दफ्तर का चक्कर काटते लोगों से कर सकते हैं.स्थान बिरौल प्रखंड कार्यालय. दिन के साढ़े बारह बजे निर्धन मांझी (65) बीडीओ साहेब के कार्यालय के बाहर बैठा है. वह 20 किलोमीटर दूर मनौर भौराम पंचायत से आया है. साहेब को काम में जुटा देख वह उनके पास अपनी बात रखने की हिम्मत जुटा रहा है. काफी देर बैठने के बाद वह निराश हो जाता है.
अंत में जब उससे आने का कारण पूछा जाता है तो वह कहता है कि अखन तक तीन डिसमिल घर बनावै लेल भूमि पदाधिकारी नहि देलक अछि. हम भूमिहीन छी, कोनो तरह दोसरक जमीन पर हम गुजर-बसर क रहल छी, सरकारक घोषणा क भरोसे हम साल भैर तक आस लगौने छी. बेरि-बेरि कोनो ने कोनो बाधा पहुंच जाइत छेक आ मामला ओहिना पड़ल रहि जाइत छैक. इंदिरा आवासक लेल गेल रहि लेकिन दौड़ाबैत-दौड़ाबैत वसुधा केंद्र वाला हमरा सं तीन-चारि हजार रुपया मंगैत अछि. हम ओकरा पैसा कहां सं दियै अगर हमरा पास पैसा रहितै त हम जमीन नई खरीद लितियै. यैह शिकायत लक हम बीडीओ साहेब से फरियाद करैक लेल आयल छी जे हमरा जमीन आ मकान भेटि जायत त हमर बुढ़ापा कटि जायत.
इस बारे में जब बीडीओ अनिरुद्ध प्रसाद से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि इंदिरा आवास में रिश्वत मांगे जाने की शिकायत अगर पीड़ित करें तो प्राथमिकी दर्ज की जायेगी, लेकिन निर्धन महतो की निर्धनता कैसे दूर होगी, इसका जवाब किसी के पास नहीं. निर्धन बड़ी मशक्कत से पैसे जमा कर बार-बार मुख्यालय आता रहता है. कभी अधिकारी से भेंट होती है तो कभी नहीं, लेकिन उसकी आस अब भी बनी हुई है.
बिरौल अनुमंडल मुख्यालय- समय दिन के ग्यारह बजे हैं. पोखराम के मो जाहिर और उनकी पत्नी एसडीओ वसीम अहमद का इंतजार कर रहे हैं. एसडीओ साहब बैठक में भाग लेने जिला मुख्यालय गये हैं. कब आयेंगे, इसकी कोई सही जानकारी इस दंपती को नहीं है. एसडीओ कार्यालय के कर्मी भी कुछ बताने की स्थिति में नहीं हैं. इंतजार करते-करते चार घंटे बीत जाते हैं. साहब अब तक नहीं लौटे हैं. थक-हारकर घर जाने को हैं. इसी बीच पूछने पर अपनी पीड़ा सुनाते हैं. कहते हैं कि ‘सरकार की तरफ से जमीन मिली, परचा भी मिला, लेकिन जमीन पर दबंग घर नहीं बनाने दे रहे हैं.
हमें इंदिरा आवास का लाभ भी मिल चुका है, लेकिन जमीन पर कब्जा नहीं होने से यह किसी काम का नहीं. कई बार अपनी शिकायत लेकर यहां आ चुके हैं. दो बार जमीन पर कब्जा दिलाने पुलिस भी गयी. उस समय दबंगों ने कुछ नहीं किया, लेकिन पुलिस के जाते ही धमकी देना शुरू कर दी. हम घर कैसे बनाएं. प्रशासन से सुरक्षा मिलती ही नहीं. आज भी साहब से मुलाकात नहीं हो सकी. कुछ देर और रुकते, लेकिन इफ्तारी का समय है. अब अगली बार ही आएंगे तभी कुछ.