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तालाब किनारे बना ली झोंपड़ियां

दरभंगा : प्रशासनिक अनदेखी की वजह से शहर में लगातार अतिक्रमणकारी अपने पांव फैला रहे हैं. बेखौफ सरकारी जमीन पर कब्जा कर रहे हैं. इन दिनों हराही तालाब का अतिक्रमण किया जा रहा है. सरेआम तालाब में पीलर डालकर भवन निर्माण किया जा रहा है. यह काम कोई रात के अंधेरे में नहीं हो रहा, […]

दरभंगा : प्रशासनिक अनदेखी की वजह से शहर में लगातार अतिक्रमणकारी अपने पांव फैला रहे हैं. बेखौफ सरकारी जमीन पर कब्जा कर रहे हैं. इन दिनों हराही तालाब का अतिक्रमण किया जा रहा है. सरेआम तालाब में पीलर डालकर भवन निर्माण किया जा रहा है. यह काम कोई रात के अंधेरे में नहीं हो रहा, बल्कि दिन के उजाले में किया जा रहा है.

आश्चर्यजनक पहलू यह है कि न तो इस पर अभी तक जिला प्रशासन की नजर है और न ही नगर निगम प्रशासन का ही ध्यान इस ओर गया है. अतिक्रमणकारी फिर से उसी जगह पर अतिक्रमण कर रहे हैं, जिस स्थान को खाली कराने में जिला प्रशासन को काफी पसीना बहाना पड़ा था. अब एक बार फिर से इस जगह पर अतिक्रमणकारियों के चंगुल कसता जा रहा है और प्रशासन बेखबर है. इस वजह से ऐतिहासिक हराही तालाब के वजूद पर संकट मंडरा रहा है.

तालाब किनारे कर
रहे भवन निर्माण
दरभंगा जंकशन से उत्तर वीआइपी रोड के किनारे अतिक्रमणकारी तेजी से काबिज हो रहे हैं. दर्जनभर से अधिक झुग्गी-झोपड़ी बना ली गयी है. एक मंदिर भी खड़ा कर दिया गया है. अतिक्रमणकारी लंबे समय से इसमें लगे हुए हैं. लोग बताते हैं कि पहले भगवान की बड़ी सी मूर्ति रख दी गयी. खुले आसमान के नीचे मूर्ति रखने के बाद तत्काल पॉलीथिन टांग दिया गया. बाद में बांस-बल्ले से घर का आकार दिया. इसके बाद ईंट की दीवार खड़ी कर दी. अब इसके ठीक पीछे तालाब में पीलर ढालकर मकान बनाया जा रहा है.
मंडराते रहते नशेबाज
दूसरी ओर कटघरे भी धीरे-धीरे लगाये जाने लगे. अब तो दर्जनभर से अधिक निर्माण कर लिया गया है. बताया जाता है कि इस जगह पर नशेड़ियों का जमावड़ा लगा रहता है. गंजा व भांग की खुलेआम खरीद-फरोख्त की जाती है. सूत्रों की मानें तो अन्य मादक पदार्थों का भी यहां कारोबार होता है. मुख्य सड़क के ठीक बगल में यह धंधा होने तथा दरभंगा जंकशन के सटे होने के बावजूद आज तक प्रशासन की नजर इस ओर नहीं पड़ सकी है.
तीन दशक पूर्व हुआ था अतिक्रमणमुक्त : जिस तरह से अतिक्रमणकारी जिस तेजी से पांव पसार रहे हैं, उससे आनेवाले कुछ दिनों में यहां फिर से पुरानी स्थिति कायम हो जायेगी. सनद रहे कि इस स्थान पर दर्जनों की संख्या में झुग्गी-झोपड़ी अतिक्रमणकारियों ने बना रखी थी. इसे खाली कराने में तत्कालीन जिलाधिकारी अमित खरे को कड़ी मशक्कत करनी पड़ी थी. करीब तीन दशक पहले 1992-93 में वहां काबिज लोगों को दूसरी जगह बसाने के बाद यह खाली हो सकी थी. इसमें काफी परेशानी झेलनी पड़ी थी. विरोध प्रदर्शन झेलना पड़ा था. कई दिनों तक इसके लिए प्रशासन को मशक्कत करनी पड़ी थी. तब जाकर किसी तरह यह जगह खाली हो सका था. एक बार फिर से इतिहास दुहरा रहा है. अगर समय रहते प्रशासन ने इस ओर ध्यान नहीं दिया तो काफी मुश्किल होगी.
असामाजिक तत्वों का लगता है जमावड़ा
दरभंगा जंकशन से सटे होने के बावजूद यह स्थान सुनसान है. अतिक्रमण साफ होने के बाद तालाब के उत्तर-पूर्वी किनारे तक कोई आबादी या दुकान नहीं है.
इस वजह से आये दिन राहजनी की घटना भी होती रहती है. रात में लोग इससे होकर गुजरने में डरते हैं. ट्रेन से उतरनेवाले अथवा रात में ट्रेन पकड़नेवाले को मजबूरन इसी रास्ते से आवागमन करना पड़ता है.
शहर को एक अलग पहचान देनेवाले तालाबों में ऐतिहासिक हराही पोखर भी शामिल है. इसका वजूद संकट में है. जंकशन के समीप होटल संचालकों ने भीतर ही भीतर तालाब को अतिक्रमित कर अपने भवन को विस्तार दे रखा है. यह क्रम आज भी जारी है. पार्सल गेट के सामने तो एक मार्केट के ही अवैध तरीके से बना लिए जाने की बात कही जा रही है. हालांकि इन दिनों वे लोग शांत हैं.
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