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दारोगा जी की सुस्ती से क्रिमिनलों की ”मौज”

1757 मामलों में से 999 मामलों की नहीं हो सकी जांच ये हैं अनुसंधान के नियम एफआइआर में घटना का समय, क्यों, कैसे समेत पूरा विवरण लिखना होगा एफआइआर में कम से कम दो और अधिकतम पांच गवाह रखने होंगे मामला दर्ज होने पर पुलिस को जांच के लिए घटनास्थल पर जाना होगा घटनास्थल का […]

1757 मामलों में से 999 मामलों की नहीं हो सकी जांच

ये हैं अनुसंधान के नियम
एफआइआर में घटना का समय, क्यों, कैसे समेत पूरा विवरण लिखना होगा
एफआइआर में कम से कम दो और अधिकतम पांच गवाह रखने होंगे
मामला दर्ज होने पर पुलिस को जांच के लिए घटनास्थल पर जाना होगा
घटनास्थल का पूरा नक्शा केस डायरी में बनाना होगा
अनुसंधानक दारोगा को फरियादी व गवाहों का बयान दर्ज करना होगा
इसके बाद मामले में कोर्ट में आरोप पत्र समर्पित किये जायेंगे
खुले घूम रहे अपराधी
जांच में रुचि नहीं
बेतिया : सर, अपराधी खुलेआम घूम रहे हैं! कई दशक हो गये अभी तक अपराधियों को सजा नहीं मिली! आरोपी बार-बार केस उठाने की धमकी दे रहे हैं! अपराधियों की गिरफ्तारी नहीं हो रही है!…..ऐसी तमाम शिकायतें अब आम होने लगी है़ं पुलिस मामलों में प्राथमिकी तो दर्ज कर ले रही है, लेकिन उसका अनुसंधान लटका दिया जा रहा है़ इसका खामियाजा यह है कि फरियादियों को न्याय मिलने में देरी हो रही है़ अपराधी मौज काट रहे है़ं
पुलिस थानों में दर्ज रिकार्ड तस्दीक करते हैं कि जनवरी सेअब तक थानों पर कुल 1757 आपराधिक मामले दर्ज किये गये है़ं जिसके अनुसंधान का जिम्मा थानों तक तैनात दारोगाओं व खुद थानेदार के जिम्मे है़ कुछ मामलों में इंस्पेक्टर, डीएसपी भी अनुसंधानक है़ं जिन्हें इन मामलों की पुलिस इन्वेस्टिगेशन करने के बाद कोर्ट में चार्जशीट दाखिल करनी है़ कारण कि चार्जशीट दाखिल होने के बाद से ही मामले की कोर्ट में सुनवाई शुरू होती है और अपराधी को सजा मिलता है़ लेकिन, आंकड़ों पर गौर करें तो 1757 दर्ज मामलों में से पुलिस महज 758 मामलों का ही अनुसंधान कर सकी है़ अभी 999 मामलों के अनुसंधान लंबित है़ जो दर्ज मामलों का 57 फीसदी है़
मोबाइल हो चोरी तो लिखवाते हैं सनहा : अनुसंधान से बचने के लिए थानों पर कई बार आवेदन बदलवा दिये जाते हैं. खासकर मोबाइल, कागजात चोरी होने के मामले में पुलिस तुरंत आवेदन बदलवाकर चोरी की जगह गुम होने की बात लिखवा देती है. फिर चोरी का केस दर्ज करने के बजाय सनहा लिख दिया जाता है़ इसका फायदा होता है कि पुलिस को इस मामले का अनुसंधान, गवाही और अन्य प्रक्रियाओं को नहीं करना पड़ता है़
90 दिनों में पूरी करनी होती है जांच
पुलिस सूत्रों के मुताबिक, दर्ज प्राथमिकी की 90 दिनों के भीतर अनुसंधान के बाद कोर्ट में चार्जशीट दाखिल करने का नियम है, लेकिन थानों पर बहुतेरे ऐसे मामले हैं, जो पिछले या फिर कई साल से लंबित है़
थाना दर्ज मामले लंबित अनुसंधान
शिकारपुर 275 100
लौरिया 114 49
चनपटिया 77 14
सिरिसिया 20 05
मझौलिया 187 129
नौतन 155 55
मैनाटांड़ 60 05
इनरवा 50 08
मानपुर 23 04
बलथर 50 50
सिकटा 39 23
कंगली 18 04
बेतिया 360 350
साठी 328 203
नोट: आंकड़े थानों से मिली जानकारी के मुताबिक.
केस एक: शहर के रहने वाले मोहम्मद की जमीन पर कुछ लोगों का कब्जा है़ मामले में उन्होंने विपक्षियों पर केस किया है़ पर इनके विपक्षी खुलेआम घुम रहे हैं. मोहम्मद का आरोप है कि सभी उन्हें केस उठाने की धमकी भी देते है़ं
केस दो: 11 साल हो गये़ बलथर की बुचिया देवी को न्याय नहीं मिल सका है़ आरोपी आज भी गांव में घुमते हैं. पता चला कि पुलिस ने काफी दिनों के बाद मामले में चार्जशीट दाखिल किया़ कोर्ट में अब मामला विचाराधीन है़

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