श्रीनगर : बैरिया प्रखंड क्षेत्र के उत्तरी पटजिरवा पंचायत स्थित सिद्धिपीठ पटजिरवा देवी स्थान पर नवरात्र में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी है. लगता है कि भक्तों का सैलाब आ गया है. स्थानीय लोगों का कहना है कि यह सिद्धिपीठ पटजिरवा धाम बन गया है.
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सिद्धिदात्री स्वरूप की होती है पूजा
श्रीनगर : बैरिया प्रखंड क्षेत्र के उत्तरी पटजिरवा पंचायत स्थित सिद्धिपीठ पटजिरवा देवी स्थान पर नवरात्र में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी है. लगता है कि भक्तों का सैलाब आ गया है. स्थानीय लोगों का कहना है कि यह सिद्धिपीठ पटजिरवा धाम बन गया है. प्रकृति स्वरूपनी माता शक्ति का दर्शन करने के लिए नेपाल, […]
प्रकृति स्वरूपनी माता शक्ति का दर्शन करने के लिए नेपाल, उत्तर प्रदेश, सीवान, गोपालगंज सहित अन्य जगहों से श्रद्धालु आ रहे है.
ऐसा माना जा रहा है कि जिस प्रकृति स्वरूप में माता यहां मौजूद है. ऐसा कहीं देखने को नहीं मिलता है. नर एवं मादा पीपल के रूप में स्थित यह स्वरूप माता शक्ति का अद्वितीय स्वरूप है. ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव की अर्धाग्नि की प्रजापति दक्ष की पुत्री माता सती की शव को कंधे पर रख कर महादेव ब्राह्मण का घूम रहे थे.
तब भगवान विष्णु ने उन्हें शांत करने के लिए अपने चक्र सुदर्शन से माता सती के शव को 51 खंडों मे खंडित कर धरती पर गिराया.
माता सती का अंग जहां भी गिरा वह स्थान सिद्धपीठ के नाम से विख्यात हो गया. बताते है कि माता सती के दो पैर का भाग यहीं गिरा. जिस कारण कलांतर मे इसका पदगिरा पड़ा.
त्रेता युग में भगवान श्रीराम का जनकपुर से वापसी बरात इसी मार्ग से गुजरा राजा जनक द्वारा बनाये गये यहां चौथे पड़ाव पर ही माता सीता ने पहली बार अपनी डोली का पट खोल कर विश्राम करने की इच्छा व्यक्त की. जिस कारण त्रेता युग में इस स्थान का नाम पदगिरा से पटखुला पड़ा. कलयुग के प्रथम चरण में नेपाल राज के एक राजा को सिद्धपीठ माता के आशीर्वाद से यहीं पर पुत्र की प्राप्ति हुई. इसलिए उस समय से यह स्थान पटजिया कहलाने लगा.
बाद में यह स्थान पटजिरवा मां के नाम से विख्यात हो गया. स्थानीय प्लस टू केदार पांडेय विद्यालय के प्राचार्य सुनील दत्त द्विवेदी ने पटजिरवा देवी स्थान पर सिद्धपीठ पटजिरवा धाम पुस्तक लिख कर विभिन्न ग्रंथों व शास्त्रों के आधार पर सीध किया है कि यह स्थान सिद्धपीठ है. ऐसी मान्यता है कि प्रकृति स्वरूपनी सिद्धपीठ पटजिरवा माता नवरात्र के नवमी तिथि को सिद्धिदात्री के रूप में भक्तों को दर्शन देती है. उस दिन जो भी भक्त पहुंचते है उनकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण करती है.
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