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समतामूलक समाज निर्माण के पक्षधर थे डॉ आंबेडकर
बेतिया : विधान निर्माता बाबा साहेब भीम राव अंबेडकर की 124 वीं जयंती पर मंगलवार को एमजेके कॉलेज में विचार गोष्ठी आयोजित की गयी. गोष्ठी की शुरूआत बाबा साहेब के तैल चित्र पर माल्यार्पण के साथ किया गया. प्राचार्य डा. राम प्रताप नीरज, प्रो. परमेश्वर भक्त, प्रो. आरके चौधरी, डा. शमसुल हक सहित गोष्ठी में […]
बेतिया : विधान निर्माता बाबा साहेब भीम राव अंबेडकर की 124 वीं जयंती पर मंगलवार को एमजेके कॉलेज में विचार गोष्ठी आयोजित की गयी. गोष्ठी की शुरूआत बाबा साहेब के तैल चित्र पर माल्यार्पण के साथ किया गया. प्राचार्य डा. राम प्रताप नीरज, प्रो. परमेश्वर भक्त, प्रो. आरके चौधरी, डा. शमसुल हक सहित गोष्ठी में शामिल दर्जनों शिक्षाविदें ने पुष्पांजली अर्पित कर बाबा साहेब को श्रद्धांजलि अर्पित की.
प्राचार्य डा. नीरज ने कहा कि बाबा साहेब केवल दलितों के हिमायती नहीं थे. उनकी सोच देश में समरस व समतामूलक समाज स्थापित करने की थी और इसके लिए वे जीवन भर संघर्ष करते रहे. उनका यह मानना था कि जब देश तरक्की करेगा तो दलितों के हालत में भी सुधार होगें. प्रो. परमेश्वर भक्त ने डा. अंबेडकर को विश्व रत्न बताते हुए कहा कि वे समाज के वंचित तबको के उत्थान को लेकर जीवन र्पयत संघर्षशील रहे. उन्होंने आजाद भारत को विश्व का सबसे लोकप्रिय संविधान दिया. जिसकी सराहना आज पुरा विश्व करता है.
प्रो. शमसुल हक ने डा. अंबेडकर को देश में दलितों के हित में हुए क्रांति का जनक बताते हुए कहा कि उन्होंने 1930 में देश के 8 करोड़ दलितों में आत्मविश्वास का बोध करा उनके अंधेरे जीवन में रौशनी लाने का महान कार्य किया था. हालांकि आज जो दलितों की स्थिति है वह उनकी आत्मा को ठेस पहुंचाने वाली है. आज भी दलित समाज का एक बड़ा तबका आगे बढ़ने की बजाय सरकारी सुविधाओं पर आश्रित होता जा रहा है.
प्रो. आर के चौधरी ने कहा कि बाबा साहेब का सपना दलितों के आर्थिक सामाजिक व शैक्षणिक विकाश की थी. इसके लिए 1951 में उन्होंने 10 वर्षो की एक विशेष योजना भी तैयार की थी. लेकिन उनका सपना साकार न हो सका. सरकारों ने दलितों के नाम पर अनेकों योजनाएं चलायी. लेकिन उसका वास्तविक लाभ उन्हें आज तक नहीं मिल सका. उन्होंने कहा बाबा साहेब के लिए सच्ची श्रद्धांजलि यहीं होगी कि सब लोग एक-एक दलित परिवार के उत्थान के प्रति संकल्पित हो सके.
डा. शैल कुमारी ने कहा कि विश्व में भारत की जो पहचान है वह बाबा साहेब की देन है और अब हमारी यह नैतिक जवाबदेही है कि इसको बनाये रखे. अवधेश कुमार ने कहा कि इंसान की पहचान उसकी गुणवत्ता व कर्म से होनी चाहिए न कि जाति से. स्वयं बाबा साहब भी इसी सिद्धांत के समर्थक थे. गोष्ठी की अध्यक्षता प्राचार्य डा. राम प्रताप नीरज ने की. संचालन प्रो. परमेश्वर भक्त ने किया. मौके पर प्रो. बीके वर्मा, सुनील कुमार, सत्या कुमारी आदि मौजूद रहे.
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