मच्छरों के काटने से फैलती हैं कई जानलेवा बीमारियां
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मच्छरों से निजात पाने के लिए बरतें सावधानी
मच्छरों के काटने से फैलती हैं कई जानलेवा बीमारियां बगहा : प्रकार मच्छर के काटने के बाद कई तरह की बीमारियां फैल रही हैं. जैसे मलेरिया, डेंगू, चिकनगुनिया, येलो फीवर आदि. इसको लेकर लोग डरे सहमे हैं. मच्छर कैसे और क्यों काटते हैं तथा मच्छरों के उत्पात से कैसे बचा जाये. एक्सपर्ट से बातचीत पर […]
बगहा : प्रकार मच्छर के काटने के बाद कई तरह की बीमारियां फैल रही हैं. जैसे मलेरिया, डेंगू, चिकनगुनिया, येलो फीवर आदि. इसको लेकर लोग डरे सहमे हैं. मच्छर कैसे और क्यों काटते हैं तथा मच्छरों के उत्पात से कैसे बचा जाये. एक्सपर्ट से बातचीत पर आधारित रिपोर्ट.
मच्छरों को इंसानी गंध की तलाश : प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी डाॅ एसएन महतो व सेवानिवृत्त चिकित्सक डा. एसपी सिंह का कहना है कि मच्छर एक पारखी मिसाइल की तरह इंसानी शरीर की तलाश में रहते हैं. ताकि वे डंक मार सकें.
मनुष्य के शरीर में ऐसी गंध होती है जो खून चूसने वाले जीवों को अपनी ओर आकर्षित करती है. कई बार मच्छरों से बचाव के लिए लोग आमतौर पर बाजार में मौजूद मच्छर निरोधक अगरबत्ती का इस्तेमाल करते है. लेकिन ज्यादातर मच्छरों पर इस अगरबत्ती का कोई असर नहीं होता है. बल्कि उससे निकलने वाले धुएं मनुष्य के लिए घातक हो जाते हैं. धुएं से दम घुटने लगता है.
चिकनगुनिया तकलीफदेह बीमारी : चिकनगुनिया नाम थोड़ा अजीब सा है. लेकिन यह एक तकलीफदेह बीमारी है. जिसमें तेज बुखार और जोड़ों में दर्द होता है. यह बीमारी शरीर को कमजोर कर देती है. चिकनगुनिया से पीड़ित व्यक्ति स्वस्थ हो जाने के बाद भी महीनों तक काम करने के लायक नहीं रहता है.
चिकनगुनिया के मामलों में जोड़ों का दर्द कई हफतों तक रहता है. कई बार तो ऐसा हो जाता है कि चिकनगुनिया से पीड़ित व्यक्ति इस कदर संक्रमण का शिकार हो जाता है कि उसे गठिया रोग पकड़ लेता है. हालांकि आमतौर पर यह बीमारी घातक नहीं होता लेकिन यह कमजोर या वृद्धों के लिए कई बार जानलेवा हो जाता है. इस बीमारी के इलाज के लिए अभी न तो कोई दवा बनी है और न कोई टीका. इससे बचने का सबसे आसान तरीका यह है कि मच्छरों से बचा जाये.
पीत ज्वर या एलो फीवर : पीत ज्वर या एलो फीवर एक तरह से वायरस की तरह फैलता है. इससे पीड़ित व्यक्ति में पहली बार पीलिया के लक्षण दिखाई देते हैं. पीड़ित के लीवर में खराबी आने के वजह से उसकी त्वचा और आंखों का सफेद हिस्सा पीला पड़ जाता है. किसी व्यक्ति में इस वायरस का संक्रमण हो जाने के कुछ दिन बाद ही इस बारे में पता चल पाता है. इसमें मृत्युदर 50 फीसदी है. हालांकि इसके लिए दवा और टीका आदि बना हुआ है. लेकिन इसे ठीक होने में समय लगता है.
मलेरिया का प्रकोप घातक : आमतौर पर मलेरिया का अधिक प्रकोप स्लम एरिया में होता है. बस्तियों, तंग गलियों, ग्रामीण क्षेत्रों और महानगरों में भी साफ सफाई, गंदे पानी और कचरे की निकासी जैसी महत्वपूर्ण सुविधाओं के अभाव वाले इलाके में मलेरिया के मच्छर पनपते हैं. मलेरिया के इलाज में थोड़ी सी असावधानी के कारण रोगी की जान भी जा सकती हैं. मलेरिया ठंड देकर आने वाला बुखार है. यह मादा एनाफिलिस मच्छर के काटने से होता हैं.
मादा एनाफिलिस जब किसी स्वस्थ व्यक्ति को काटता है तो मलेरिया के रोगाणुओं को अपनी लार के साथ स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में छोड़ देता हैं. ये रोगाणु मच्छर के काटने वाले स्थान से खून के साथ उस व्यक्ति के जिगर में पहुंच जाते हैं. जहां लगभग एक सप्ताह रहने के बाद पुन: खून में आ जाते हैं. खून में रोगाणुओं के मिलने के साथ ही इनकी संख्या लगातार बढ़ती जाती है. जैसे जैसे इनकी संख्या बढ़ती जाती है. व्यक्ति को ठंड, गर्मी और पसीना आने की क्रियाएं एक साथ प्रभावित करती हैं.
50 हजार रुपये प्रतिमाह होते खर्च : नगर परिषद सिटी मैनेजर अभय कुमार निराला ने बताया कि नगर के वार्ड व मुहल्लों में नियमित साफ सफाई व कचरा उठाव के साथ चुना व ब्लीचिंग पाउडर का छिड़काव किया जाता है. वहीं सप्ताह में रोस्टर के अनुसार मच्छररोधी दवा का छिड़काव फॉगिंग मशीन से कराया जाता है. बावजूद गर्मी के मौसम में तापमान अधिक रहने के बाद भी मच्छरों का प्रकोप कम नहीं हो रहा है. उनका मामना है कि मच्छर भी दवा के अभ्यस्त हो चुके है. जिससे मच्छर रोधक दवा छिड़काव के बावजूद मच्छरों का प्रकोप कम नहीं हो रहा है. सिटी मैनेजर ने बताया कि नप प्रशासन द्वारा प्रत्येक माह लगभग 45 से 50 हजार रुपया दवा छिड़काव के मद में खर्च किया जा रहा है.
एक नाला से दूसरे नाले का नहीं है जुड़ाव : नगर परिषद के स्थापना से अब तक कई करोड़ रुपये नाला निर्माण मद में खर्च हुए है. लेकिन किसी भी वार्ड में एक नाला से दूसरे नाला का जुड़ाव नहीं हो सका है. जिससे नाली का गंदा पानी यत्र तत्र जहां तहां जमा हो सड़ता रहता है. जिसमें मादा मच्छर लार्वा को जन्म देती है. हालांकि डा. एसएन महतो की माने तो गर्मी के दिनों में 37 डिग्री तापमान के ऊपर स्वत: मादा मच्छर का लार्वा नष्ट हो जाता है.बावजूद गर्मी के दिनों में भी मच्छर का प्रकोप कम नहीं हो रहा है.
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