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प्रभात खबर से विशेष बातचीत में भाजपा विधायक आरएस पांडेय ने कहा, चंपारण का विकास ही मेरी राजनीति का लक्ष्य

बगहा के भाजपा विधायक आरएस पांडेय केंद्र सरकार में कैबिनेट सचिव रह चुके हैं. राजनीति के दांव पेच से अलग उन्होंने चंपारण के विकास को अपना एजेंडा बनाया है. उन्होंने जनता के सामने अपना रिपोर्ट कार्ड भी पेश किया है. पढ़िए उनसे खास बातचीत. – केंद्र सरकार में कैबिनेट सचिव का पद छोड़ आप राजनीति […]

बगहा के भाजपा विधायक आरएस पांडेय केंद्र सरकार में कैबिनेट सचिव रह चुके हैं. राजनीति के दांव पेच से अलग उन्होंने चंपारण के विकास को अपना एजेंडा बनाया है. उन्होंने जनता के सामने अपना रिपोर्ट कार्ड भी पेश किया है. पढ़िए उनसे खास बातचीत.
– केंद्र सरकार में कैबिनेट सचिव का पद छोड़ आप राजनीति में आये. इसकी वजह ?
वजह थी अपनी मातृभूमि से लगाव, जिलावासियों का आग्रह और वरिष्ठ नेताओं का सुझाव. सेवानिवृत्ति के बाद भारत सरकार ने मुझे एक महत्वपूर्ण जवाबदेही दी थी. मैंने इस वरिष्ठ पद से इस्तीफा दिया, क्योंकि मैंने देखा कि अपने लंबे तजुर्बे का फायदा उठा कर चुनावी राजनीति के माध्यम से अपनी जन्मभूमि के लिए कुछ कर सकता हूं.
यहां की हालत देश के अन्य राज्यों से कहीं खराब है और यहा की राजनीति में विकास करने-कराने की क्षमता रखने वाले लोगों की ज़रूरत है. मेरे जिले चंपारण में भी लोगों ने मुझे यही कहा. इसीलिए मैं राजनीति में आया.
– विकास के मोर्चे पर क्या उपलब्धि रही है आपकी?
कई काम किये हैं. लौरिया और सुगौली में बंद चीनी मिलों को भारत सरकार द्वारा लेकर फिर से पुनर्निर्माण करवाया गया. कुमारबाग़ में स्टील प्रासेसिंग यूनिट लगा. लगभग 25 नेत्र चिकित्सा शिविर के जरिये करीब 50 हज़ार लोगों का नि:शुल्क जांच, चश्मा वितरण और लगभग 2500 वृद्ध लोगों का नि:शुल्क मोतियाबिंद ऑपरेशन हुआ. कई जगहों पर स्लूइस गेट, कई एंबुलेंस डोनेट करवाना आदि कई सारे काम हुए हैं. मेरी यह सोच रही है कि विधायक निधि से बढ़कर भी कुछ कार्य हो.
कई लंबित मामले, जैसे- सालों से जर्जर हालत में एनएच 28बी पर परिवहन मंत्रालय के उच्च अधिकारियों से बात करके निर्माण में तेज़ी लाना, मसान नदी पर पुल बनवाना, सालों से केंद्र और राज्य सरकार के बीच कुछ तकनीकी विवाद को लेकर फंसा वाल्मीकिनगर वन क्षेत्र के अंदर का रोड ठीक करवाना और भी बहुत कुछ. लंबी सूची है. अपने एनजीओ वाल्मीकि विकास मंच के द्वारा एक विशाल सम्मेलन का आयोजन कराया, जिससे विकास के कई नये आयाम खुलेंगे.
– दूसरे जनप्रतिनिधियों से आप खुद को अलग कैसे मानते हैं.
मैं शुरू से राजनेता नहीं रहा. धरना-प्रदर्शन की राजनीति में नया हूं. लेकिन, सरकार में विकास का काम कैसे करवाया जाता है, इसका तजुर्बा मुझे पूरा है.
आम तौर पर लोगों में धारणा है कि नेता किसी भी काम के लिए धरना करवा दे. राजनीति में विरोध का अपना स्थान है. लेकिन, वह हर मर्ज़ की दवा नहीं है. रोज़ाना हज़ारों धरने होते हैं, कितने मुद्दों पर सफलता मिलती है ? लेकिन, अगर विषय पर पकड़ हो और मुद्दे पर अपना पक्ष रखने की क्षमता हो, व्यक्तिगत संपर्क हो और पूरे मन से लग जाया जाये तो विकास कार्य को जमीन पर उतारा जा सक़ता है. मेरी यह भी कोशिश रही है कि राजनैतिक आचरण में सुधार आये. अपने यहां संभवत: पहला विधायक हूं, जिसने अपने विकास कार्यों का रिपोर्ट कार्ड जारी किया है.
– सरकार में शामिल न होने का कोई मलाल है या नहीं ?
(हंसते हुए) राजनैतिक निर्णय है. नेतृत्व फैसला करती है और हम पार्टी के कार्यकर्ता उसका पालन करते हैं. मलाल रखने से काम नहीं चलता. किसका कहां, कैसे उपयोग हो – यह पार्टी विचार करती है.
– आगे अपने क्षेत्र के विकास को लेकर क्या योजना है ?
अभी तो मूलभूत आवश्यकताओं से ही जूझ रहे हैं- बिजली, सड़क, पानी, वंचितों व ग़रीबों के लिए आवासीय भूमि. सरकार की नीतियों और बजट का पूरा उपयोग हो और अधिकारी ठीक से काम करें, यही बड़ी उपलब्धि होगी. इससे आगे -औद्योगीकरण. मैंने ख़ुद देखा है कि एक दो चीनी मिल लगवाने से क्षेत्र में कितना विकास हुआ. मेरी कोशिश रहेगी कि ऐसे और कार्य दिल्ली के कोऑर्डिनेशन से किये जायें.
– क्या माना जाये कि आप लोकसभा चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं ?
आया तो था यही सोचकर. (हसते हुए) एमपी रहा तो अधिक कर पाऊंगा. लेकिन, यह तो पार्टी ही तय करेगी. नरेंद्र मोदी और अमित शाह के नेतृत्व में पार्टी हित और राष्ट्र हित में प्रत्याशी चुने जायेंगे. इसलिए अपना काम करना है और पार्टी के आदेश का पालन.
– हाल ही में आपके एनजीओ वाल्मीकि विकास मंच की ओर से रामनगर में सभा का आयोजन किया गया. चुनावी माहौल में इसका क्या मतलब निकाला जाये.
वाल्मीकि विकास मंच समाज निर्माण का कार्य करती है. खुशी है कि लोगों ने मेरे और मेरे मंच के कार्य को सराहा है. इसका चुनाव से कोई सीधा संबंध नहीं है.
यह गैर रांजनीतिक संस्था है. मैं बस यही कहूंगा कि यदि मैं जनता के लिए काम कर रहा हूं और लोग इस वजह से मेंरे साथ हैं, तो इसका लाभ कहीं न कहीं पार्टी को मिलेगा.
– आप पेट्रोलियम मंत्रालय के सचिव रह चुके हैं. पेट्रोल और डीजल की बढ़ती कीमतों पर क्या कहना चाहेंगे?
कोई नहीं चाहता कि कीमतें बढ़े. लेकिन, अन्तर्राष्ट्रीय क्रूड तेल की कीमत हमारे हाथ में नहीं है. पहले भी कई बार दाम बढ़े हैं. पुन: आजकल डॉलर के मुक़ाबले रुपये के अवमूल्यन से भी घरेलू क़ीमतें बढ़ी हैं.
क्रूड के दाम बढ़ जाने पर उपभोक्ता देशों के लिए ‘आगे खाई, पीछे कुंआ’ वाली स्थिति हो जाती है. यदि केंद्र सरकार उत्पाद शुल्क, जो प्रति लीटर निर्धारित है, को घटाकर पेट्रोल-डीज़ल के दाम कम कराती है तो बजट घाटे में बढ़ोत्तरी होगी. फिर अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल असर होगा.
विकास कार्य प्रभावित होंगे. केंद्र की संवेदनशील सरकार क़ीमतों का स्तर, टैक्स की दर, बजट घाटा, महंगाई, तेल कंपनियों का नफा-नुकसान आदि पहलुओं पर समसामयिक समी़क्षा कर समय पर उचित निर्णय अवश्य करेगी.

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