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आइएसओ के तहत नहीं मिलतीं सुविधाएं

असुविधा . नौ महीने बाद भी सदर अस्पताल के आइएसओ का नहीं हो सका रिन्युअल बक्सर : कभी आइएसओ मान्यता प्राप्त सदर अस्पताल अब आइएसओ की मान्यता की रिन्युअल के लिए इंतजार कर रहा है़ अस्पताल की आइएसओ मान्यता मार्च 2016 में समाप्त हो गयी है़ जांच में आयी आइएसओ टीम को मान्यता रिन्युअल के […]

असुविधा . नौ महीने बाद भी सदर अस्पताल के आइएसओ का नहीं हो सका रिन्युअल

बक्सर : कभी आइएसओ मान्यता प्राप्त सदर अस्पताल अब आइएसओ की मान्यता की रिन्युअल के लिए इंतजार कर रहा है़ अस्पताल की आइएसओ मान्यता मार्च 2016 में समाप्त हो गयी है़ जांच में आयी आइएसओ टीम को मान्यता रिन्युअल के लिए कोई भी व्यवस्था सदर अस्पताल में नहीं दिखी़ टीम सदर अस्पताल में 2016 के अप्रैल माह में आयी थी़ अस्पताल की व्यवस्था से नाखुश आइएसओ की टीम के सदस्य दो माह का समय देकर वापस चले गये़ नौ माह बीत जाने के बाद भी आइएसओ का रिन्युअल अब तक नहीं हो सका़ इससे आइएसओ को मिलनेवाली सुविधा भी प्रभावित है़
ज्ञात हो कि 2012 में सदर अस्पताल को स्वास्थ्य क्षेत्र में सेवा के लिए दिया गया था, जिसे सदर अस्पताल ने कायम नहीं रख सका़ गौरतलब है कि जिले के लगभग 17 लाख की आबादी पर मात्र एक सौ बेड वाला एक सदर अस्पताल जिला मुख्यालय में स्थित है़ चमचमाता आलीशान अस्पताल भवन निजी अस्पतालों से भी अव्छा है, पर स्वास्थ्य सुविधाएं एक साधारण अस्पताल जैसा भी नहीं मिल पाता है. सिजेरियन एवं परिवार नियोजन के ऑपरेशन भी बमुश्किल हो पाता है़ आपातकाल सेवाएं 24 घंटे उपलब्ध है, परंतु एकमात्र मिलनेवाला सिजेरियन सुविधा भी आपातस्थिति में मरीजों को उपलब्ध नहीं हो पाता है़ सिजेरियनवाले मरीजों को इतना डरा दिया जाता है कि वह स्वयं ही वहां से दूसरे अस्पतालों का रुख कर ले़ बावजूद सदर अस्पताल प्रबंधन बेहतर स्वास्थ्य सुविधा मरीजों को उपलब्ध कराने के बजाय स्वास्थ्य सुविधा के क्षेत्र में एनएबीएस की मान्यता पाने के लिए प्रयासरत था़ एक सौ बेड वाले सदर अस्पताल में महज आज सौ बेड भी कायम नहीं है़
सदर अस्पताल मे संचालित वार्डों की व्यवस्था पर नजर डालें, तो आइएसओ की मान्यता पर सवाल उठना लाजिमी है़ सौ बेड वाले अस्पताल में पूरे एक सौ बेड भी मौजूद नहीं है़ वार्डों की स्थिति भी अच्छी नहीं है़
प्रसव वार्ड : प्रसव वार्ड में प्रतिदिन प्रसव पीड़ित 10 से 15 महिला पहुंचती है़ यदि सरकार के नियमानुसार प्रसव पीड़ित प्रसव के बाद 48 घंटे तक रुक जाये, तो सदर अस्पताल के प्रसव वार्ड की व्यवस्था की कलई खुल जायेगी़ गनीमत कहिये कि प्रसव पीड़ित प्रसव के चंद घंटे बाद अपने घर चले जाती हैं. प्रसव के दौरान काम आनेवाली दवाएं, कॉटन व टांके का धागा तक प्रसव परिवार को ही लाना पड़ता है. जबकि आइएसओ मान्यतावाले अस्पतालों में इस तरह की प्राथमिक मूलभूत सुविधाओं की कमी नहीं होनी चाहिए़
ओपीडी : सदर अस्पताल में 16 एमबीबीएस, एक सर्जन व दो महिला चिकित्सकों की सहायता से चल रहा है. सदर अस्पताल के प्रबंधक के अनुसार मरीजों का औसत संख्या 3 सौ प्रतिदिन का है, पर इन दिनों अस्पताल में दवा की कमी से मरीजों की संख्या पर प्रभाव पड़ा है़
दवा की स्थिति : सदर अस्पताल में ओपीडी एवं इनडोर में दवा की उपलब्धता न के बराबर है़ जरूरी दवाएं अस्पताल में नहीं है. मरीजों को पानी चढ़ाने के लिए सुई समेत सारा समान बाहर दुकान से ही लाना पड़ता है़
इमरजेंसी वार्ड में महज सात ही बेड :
इमरजेंसी वार्ड में महज सात बेड है़ जिले में दुर्घटना की स्थिति में बेड कम पड़ जाते हैं और अफरा- तफरी की स्थिति उत्पन्न हो जाती है़ इमरजेंसी में आनेवाले मरीजों को भी दवा दुकानों से ही लाना पड़ता है़ जबकि आइएसओ मान्यतावाले अस्पतालों में ये सुविधाएं अस्पताल द्वारा शीघ्र ही मुहैया कराया जाना चाहिए़
जांच की सुविधा का है अभाव :
एक्स-रे जांच की सुविधा है़ ब्लड जांच के नाम पर महज कुछ ही ब्लड जांच की सुविधा मरीजों को मिलती है़ अल्ट्रासाउंड की जांच की व्यवस्था भी समाप्त हो चुकी है़ जिन मानकों को ध्यान में रखकर सदर अस्पताल में अल्ट्रासाउंड को बंद किया गया है. उसी मानकों के आधार पर जिले में दो दर्जन से ज्यादा अल्ट्रासाउंड केंद्र संचालित हो रहे हैं.
आइएसओ की मान्यता शीघ्र मिलने की उम्मीद
आइएसओ की टीम के द्वारा जो डॉक्यूमेंटेशन किया गया था, उसे पूरा करके भेज दिया गया है़ शीघ्र ही आइएसओ की मान्यता मिल जानी चाहिए़
दुष्यंत कुमार, अस्पताल प्रबंधक

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