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बिहार व बिहारियत को दिलायी अलग पहचान

डुमरांव : भारतीय संविधान सभा के अस्थायी अध्यक्ष डॉ सच्चिदानंद सिन्हा जब अनुमंडल के चौगाईं प्रखंड के मुरार गांव में जब जन्म हुआ तो किसी को पता नहीं था की इस गांव का लाल गांव के साथ-साथ सूबे का नाम पूरे विश्व में रोशन करेगा. डॉ सिन्हा का जन्म मुरार गांव में 10 नवंबर, 1871 […]

डुमरांव : भारतीय संविधान सभा के अस्थायी अध्यक्ष डॉ सच्चिदानंद सिन्हा जब अनुमंडल के चौगाईं प्रखंड के मुरार गांव में जब जन्म हुआ तो किसी को पता नहीं था की इस गांव का लाल गांव के साथ-साथ सूबे का नाम पूरे विश्व में रोशन करेगा. डॉ सिन्हा का जन्म मुरार गांव में 10 नवंबर, 1871 हुआ था. उनके पिता का नाम स्व बख्सी रामयाद सिन्हा था.

उनकी प्रारंभिक शिक्षा गांव से ही की थी. बचपन से ही उनको रामायण व धर्मग्रंथों में दिलचस्पी थी. प्रारंभिक शिक्षा के बाद वे भोजपुर के आरा हाइ स्कूल की शिक्षा पाकर उच्च शिक्षा के लिए पटना गये. वहां से कोलकाता व वकालत की शिक्षा ग्रहण करने लंदन (इंग्लैंड) चले गये. गांव के रहने वाले नंदलाल पंडित ने बताया कि जब डॉ सिन्हा वकालत की पढ़ाई कर लौटे थे, तो लोगों ने उनसे पूछा कि आप यहां से कहां जायेंगे? उन्होंने बड़े ही गर्व से अपनी मिट्टी की बात कहते हुए बिहार आने की बात कही थी.

दोस्तों ने कहा कि कौन सा बिहार, नक्शे पर नाम तक नहीं है. यह बात उनके दिल में लग गयी और अपने बिहार को अलग पहचान दिलाने जुट गये. इस दौरान डॉ सिन्हा ने कई पत्र- पत्रिकाओं के माध्यम से बिहार को विकसित करने की योजना बनायी. वर्ष 1912 में बंगाल प्रेसिडेंसी से कट कर बिहार का निर्माण हुआ. इसमें सबसे बड़ा योगदान डॉ सच्चिदानंद सिन्हा का रहा. वह गरीबों को लेकर काफी चिंतित रहते थे. उनका सोचना था कि देश के बच्चे कभी अशिक्षित न हों और पढ़-लिखकर आगे बढ़े और देश को प्रगति के रास्ते पर ले जाएं.

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