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रबी फसल का लक्ष्य निर्धारित

किसानों को अनुदान देने के लिए 34.54 लाख रुपये का होगा प्रखंडवार आवंटन बक्सर : खरीफ की खेती के बाद अब कृषि विभाग रबी उत्पादन अभियान को सफल बनाने में जुट गया है. विभाग से जिला को रबी फसल का लक्ष्य निर्धारित कर दिया गया है. इसी के हिसाब से विभिन्न प्रखंडों में लक्ष्य का […]

किसानों को अनुदान देने के लिए 34.54 लाख रुपये का होगा प्रखंडवार आवंटन
बक्सर : खरीफ की खेती के बाद अब कृषि विभाग रबी उत्पादन अभियान को सफल बनाने में जुट गया है. विभाग से जिला को रबी फसल का लक्ष्य निर्धारित कर दिया गया है. इसी के हिसाब से विभिन्न प्रखंडों में लक्ष्य का वितरण कर इस पर काम शुरू कर दिया जायेगा. विभागीय आंकड़ों के अनुसार इस बार जीरो टिलेज (सीधी बुआई) तकनीक से एक हजार,167 एकड़ में गेहूं की खेती की जायेगी. जीरो टिलेज का मतलब फसल को बिना तैयार किये सीधे जमीन में मशीन की सहायता से बुआई करने से है. इसको जीरो टिल, नो टिल या सीधी बुआई का नाम दिया जाता है.
इसके लिए किसानों को अनुदान भी दिया जायेगा. विभाग ने इसके लिए 34 लाख 54 हजार 320 रुपये का अनुदान वितरित करेगा. किसानों को प्रति इकाई के लिए 2,960 रुपये का अनुदान दिया जायेगा. विभाग द्वारा इस बार अाधुनिक तकनीक से किसानों को नया अनुभव देने का भी प्रयास रहेगा. गेहूं के साथ-साथ दलहन व तिलहन का भी लक्ष्य निर्धारित है. कई योजनाओं के तहत किसानों को अनुदान पर बीज व जैविक उर्वरक का भी लाभ दिया जायेगा. जिला में करीब 80 हजार हेक्टेयर में गेहूं की खेती की जायेगी. 80 हजार हेक्टेयर में से 1,167 एकड़ में जीरो-टिलेज से बुआई की जायेगी. इसके अलावा अन्य योजनाओं के तहत भी खेती का लक्ष्य है. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के तहत गेहूं व दलहन का प्रत्यक्षण निर्धारित किया है. इसके मुताबिक मसूर, मूंग व मटर लगाया जायेगा.
क्यों जरूरी है जीरो-टिलेज से बुआई : विभागीय सूत्रों के अनुसार आमतौर पर गेहूं को बोने से पहले खेत को तैयार करने के लिए पांच से छह बार जुताई करने की जरूरत होती है. इस से भी गेहूं की बुआई में देरी हो जाती है. इस वजह से फसल की उपज कम होती है और क्वालिटी भी ठीक नहीं हो पाती है.
यदि 10 दिसंबर के बाद गेहूं की बुआई की जाती है, तो अच्छी लागत के बाद भी प्रति हेक्टेयर 30-35 किलोग्राम कम गेहूं की पैदावार होती है. जीरो टिलेज तकनीक अपना कर किसान इस नुकसान से बच सकते हैं. यह तकनीक हर तरह की मिट्टी के लिए फायदेमंद है और इस से बारबार खेतों की जुताई पर प्रति हेक्टेयर दो से 2.5 हजार रुपये की बचत भी हो जाती है.
2-3 दिन पहले अंकुरित हो जाता है गेहूं : जीरो टिलेज तकनीक के जरीये गेहूं की खेती की खूबी यही है कि धान की कटाई के बाद खेतों में काफी नमी रहने के बाद भी गेहूं की बुआई कर के फसल की अवधि में 20 से 25 दिन अधिक पा सकते हैं, इससे उपज में बढ़ोत्तरी होना अनिवार्य है.
इस तकनीक के जरीए गेहूं को बोने पर उस के बीज तीन से पांच सेंटीमीटर नीचे जाते हैं. बीज के ऊपर मिट्टी की हलकी परत पड़ जाती है. इस से बीज का जमाव अच्छा होता है और कल्ले अच्छे फूटते हैं. इसमें बीजों का अंकुरण गेहूं की परंपरागत खेती से 2-3 दिन पहले ही हो जाता है. खास बात यह है कि बीजों का अंकुरण होने पर उनका रंग पीला नहीं पड़ता है.
गेहूं की साधारण खेती के मुकाबले कम लागत व समय लगने और बेहतरीन व ज्यादा पैदावार होने की वजह से गेहूं की जीरो टिलेज तकनीक किसानों को रास आने लगी है. अब तो यह मशीन किराए पर भी मिलने लगी है. लगातार मशीन चलाने पर एक दिन में आठ एकड़ खेत में बोआई की जा सकती है. इस मशीन का किराया 200 से 300 रुपए तक प्रति एकड़ है.

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