डुमरांव : जैसे-जैसे धान की रोपनी का समय बीत रहा है. वैसे-वैसे मजदूरों के सामने भुखमरी की समस्या उत्पन हो रही है़ मॉनसून के दगा देने से मजदूर पलायन करने पर विवश है़ं मजदूरी करके अपना जीविकोपार्जन करनेवाले मजदूरों के चेहरे पर मायूसी झलक रही है़ वे अपने जीविकोपार्जन के लिए दूसरे प्रदेशों की ओर […]
डुमरांव : जैसे-जैसे धान की रोपनी का समय बीत रहा है. वैसे-वैसे मजदूरों के सामने भुखमरी की समस्या उत्पन हो रही है़ मॉनसून के दगा देने से मजदूर पलायन करने पर विवश है़ं मजदूरी करके अपना जीविकोपार्जन करनेवाले मजदूरों के चेहरे पर मायूसी झलक रही है़ वे अपने जीविकोपार्जन के लिए दूसरे प्रदेशों की ओर रूख करने लगे है़ं मजदूर ऐसे हैं दूसरे किसानों के खेतों में मजदूरी कर परिवार का पालन पोषण करते हैं,
लेकिन बारिश नहीं होने से रोपनी का कार्य प्रभावित ह़ै यही नहीं जो मजदूर मालगुजारी एवं बटाइदारी पर खेत लेकर धान का बिचड़ा निजी पंपसेट से डाले थे ताकि समय पर बारिश होगी तो खेतों में रोपनी होगी़ लेकिन बारिश नहीं होने से उनके मनसूबे पर पानी फिर गया है़ वे अब रोजी-रोटी की तलाश में दूसरे प्रदेश की ओर रूख कर रहे हैं.
कोरानसराय, सोवां, अरियांव, नंदन, धरौली, नुआवं, योगिया सहित दर्जनों गांवों के मजदूरों की स्थिति यही बनी हुई है़ वेज पंजाब, सूरत ,नोएडा, दिल्ली, मद्रास, हैदराबाद सहित अन्य महानगर की ओर पलायन कर रहे है़ं मजदूर खेती या दूसरे की मजदूरी पर ही निर्भर हैं. कई गांवों के मजदूर लगन के दिन में अपने-अपने गांव इसलिए लौट कर आये थे कि धान की रोपनी होगी, तो गांवो में ही रोजगार मिलेगा़
और अपने परिवार के साथ अमन चैन की जिंदगी गुजारेंगे. लेकिन स्थिति प्रतिकूल रहने से मजदूर दूसरे प्रदेश में पलायन के लिए मजबूर है़ इधर कृषि वैज्ञानिक मो़ हेयात का कहना है कि अभी रोपनी का समय बचा हुआ है़ 15 जुलाई से 15 अगस्त तक रोपनी होती है, किसानों एवं मजदूरों को परेशान होने की जरूरत नहीं है़