बक्सर : चौसा युद्ध स्थल पर जो मूर्तियां निकाली गयी हैं, वह काफी असुरक्षित हैं. यहां मूर्तियों को दो छोटा तंबू में रखा गया है. एक तो आंधी-पानी में क्षतिग्रस्त होकर जमीन पर सो गया है, जबकि दूसरा कई जगहों से फटा है. इनकी सुरक्षा में यहां तीन युवक हैं. लेकिन, आश्चर्य तो यह है कि जो इनकी सुरक्षा में दिन-रात लगे हैं,
उन्हें विभाग अपना कर्मी नहीं मानता. तीनों युवकों के अनुसार, वर्ष 2011 में पहली खुदाई के दौरान पुरातत्व विभाग के किसी पदाधिकारी ने इन्हें निजी तौर पर रखा था. सोनू गोंड, दया सिंह और लव कुमार तब से दिन-रात अपनी ड्यूटी दे रहे हैं. जब कभी कोई अधिकारी चौसा आते हैं, तो वे इनसे ही मिलते हैं. टेंट में रखी मूर्तियों को जब कोई ताक-झांक करता है, तो ये उन्हें डांटते भी हैं, ताकि मूर्तियों को कोई क्षति न पहुंच सके. युवक दया सिंह कहता है
कि इन पांच सालों में केवल दो बार 45-45 सौ रुपये मानदेय के रूप में मिला था, पर अब बंद है. यदि कुछ पैसा मिलता, तो हम अपने पैसे से मूर्तियों की सुरक्षा का कोई उपाय करते. सोनू गोंड कहता है कि गरमी में तो रात में ड्यूटी यहां हम दे देते हैं. परंतु, बरसात और जाड़े में रात्रि में कोई सुरक्षा व्यवस्था नहीं है.