डुमरांव : ईबादत के लिये धर्म संप्रदाय कोई मायने नहीं रखता. अगर ऐसा ही होता, तो मुसलिम परिवार द्वारा निर्मित महावर (रूई का बना अड़ता) व दलितों द्वारा बनाया हुआ सुपली व दउरा हिंदू धर्म के पवित्रता और आस्था के छठ पर्व में उपयोग में नहीं आता. जिन लोगों ने समाज में छुआछूत व ऊंच नीच की भ्रांतिया फैलाई है,
उन्हें लोक आस्था का महापर्व छठ जैसे त्योहरों से सबक लेनी चाहिए़ इसमें मजहब और संप्रदाय कोई मायने नहीं रखता़ मुसलिम परिवारों द्वारा बनाये गये महावरों से हिंदू परिवार छठ किया करते हैं.
चिक बिरादरी के लोग महावर बना कर अपने बच्चों को बाजारों में बेचने के लिए भेज देते है़ं मोहम्मद ईसराइल, मो. शमीम सहित महावर बनानेवाले लोगों ने बताया कि चिक टोली में बने महावर बक्सर, ब्रह्मपुर, शाहपुर, कृष्णाब्रह्म कोरानसराय, चौगाई सहित आरा तक व्यवसायी खरीदकर ले जाते है़ं
निराहार रहती हैं मुसलिम औरतें
मुसलिम समुदाय की औरतें छठ जैसे महापर्व, तो नहीं करती़ लेकिन, निराहार रहकर लोक आस्था में समर्पित हैं. यही कारण है कि अपने परिवार के संग छठ पूजन के लिए लाल महावर बनाती हैं.
डुमरांव नगर के चिक टोली मुहल्ले में बसे मुसलिम कुरैशी परिवारों के दर्जनों घरों की महिलाएं इस काम में जुड़ी हैं. छठ व्रतियों द्वारा सूप पूजन के लिए सजायी गयी सामग्रियों में रूई से बना लाल महावर भी होता है, जिसे कुरैशी परिवार की महिलाएं निराहार रह कर तैयार करती हैं. विजया दशमी से पूर्व महावर निर्माण में ये लोग जुट जाते है़ं नगर में छोटे-छोटे बच्चों से ही महावर की बिक्री कराते है़ं
पांच दशकों से हो रहा निर्माण
छठव्रती श्रद्धा से खरीद कर छठ मइया के सूप में सजा कर सूर्य देवता को अर्घ देते है़ं मुसलिम पसमंदा समाज के कुरैशी परिवार की दर्जनों महिलाएं इस धंधे को पांच दशकोंं से करते आ रही हैं. इस संबंध में निर्माण करनेवाले महिलाओं ने बताया कि महावर बनाने का धंधा पुश्तैनी है़
छठ महापर्व समाज में फैले छुआछूत, ऊंच-नीच, अमीर-गरीब के भेदक और तोड़क भाव से मुक्ति दिलाता है़ महावर की खरीदारी करने उत्तरप्रदेश, बंगाल, झारखंड सहित बिहार के कई शहरों से व्यापारी पहुंचते है़ं महावर की बिक्री पांच सौ रुपये प्रति सैकड़ों की दर से की जाती है़
कैसे होता है महावर का निर्माण
छठ व्रतियों के लिए बने महावर निर्माण में शुद्धता बरती जाती है़ घर की महिलाएं स्नान कर निराहर रह कर रूई लेकर उसको गोल आकार बनाती है़ं अखरोट व मैदा को पका कर लाल रंग का मिश्रण तैयार कर करती हैं. इस मिश्रण से रूई को धूप में सुखाया जाता है़