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* शेयर बाजार से जुड़ा है मेंथा का मूल्य* बाजार नहीं होने से किसान परेशानबक्सर : जिले में मेंथा की खेती तेजी से बढ़ रही है. किसानों के लिए यह फसल सोने की फसल की तरह है. इस फसल से किसान मात्र तीन माह में ही तीन से चार गुना लाभ आसानी से कर लेते […]

* शेयर बाजार से जुड़ा है मेंथा का मूल्य
* बाजार नहीं होने से किसान परेशान
बक्सर : जिले में मेंथा की खेती तेजी से बढ़ रही है. किसानों के लिए यह फसल सोने की फसल की तरह है. इस फसल से किसान मात्र तीन माह में ही तीन से चार गुना लाभ आसानी से कर लेते हैं. लेकिन, किसानों को वैज्ञानिक ज्ञान नहीं होने से यह खेती इनके लिए अभिशाप बनी हुई है.

इतना ही नहीं जिले में मेंथा से निकल तेल का बाजार नहीं होने के कारण ये ठगी के शिकार हो रहे हैं. बावजूद, इसके कृषि विभाग पूरी तरह मौन है.

* तीन माह में होती है खेती
जिले भर के किसान मेंथा की खेती अप्रैल माह में करते हैं. फसल तैयार होने में तीन माह का समय लगता है. फसल कटाई के बाद इसे ब्यॉलर में वाष्पीकरण कर इससे तेल निकाला जाता है. इस तेल की मांग राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय जगहों में है. इसलिए इसकी कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार तक लगायी जाती है.

* यहां होती है सबसे ज्यादा खेती
जिले के किसानों को तो खेती करने में परेशानी नहीं होती है. लेकिन, खेती के बाद इसका बाजार नहीं होने से इसकी बिक्री में काफी परेशानी होती है. जिले के राजपुर, नावानगर, इटाढ़ी एवं सिमरी की कुछ जगहों पर खेती होती है. इनमें सबसे ज्यादा खेती राजपुर क्षेत्र के सैकड़ों गांवों में किसान कर रहे हैं.

* 50 हजार लीटर से अधिक की बिक्री
मेंथा की खेती के बाद इससे निकलनेवाले तेल का बाजार नहीं होने से इसकी बिक्री होने में किसानों को काफी परेशानी होती है. जिले में प्रतिदिन करीब पांच सौ किसान मेंथा का तेल बिक्री करने को लेकर आते हैं. तेल का रंग बदरंग होने के कारण कंपनी तेल रिजेक्ट भी कर देती है. ऐसे में किसानों को काफी परेशानी हो रही है.

दिल्ली से पहुंचे निजी कंपनीवाले करीब 50 हजार लीटर से अधिक तेल की खरीदारी हर रोज करते हैं. प्रतिदिन करीब चार करोड़ का व्यवसाय निजी कंपनी कर रहे हैं. किसानों को बिक्री के लिए काफी लंबी लाइन भी लगानी पड़ती है. इतना ही नहीं पैसे का भुगतान बिक्री के बाद अगले दिन किया जाता है, जिससे किसानों को परेशानी होती है.

* हर रोज लगती है कीमत
इसकी कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार के अनुसार होने से हर रोज कीमत में उतार-चढ़ाव होता है. बुधवार के दिन दोपहर में इसकी कीमत 925 रुपये थी. अंतरराष्ट्रीय बाजार मूल्यों से अनजान होने एवं जानकारी के अभाव में किसानों को जो मूल्य बताया जाता है, उसी मूल्य परबेचने के लिए वे विवश हो जाते हैं. ऐसे में किसान निजी कंपनियों के ठगी के शिकार बन रहे हैं.

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