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ठंड से बच्चे की मौत, सदमे में दादी की भी चली गयी जान

चरपोखरी : थाना क्षेत्र के मुकुंदपुर गांव में शीतलहर और ठंड के प्रकोप के कारण एक आठ वर्षीय बालक एवं उसकी 55 वर्षीय दादी की मौत का मामला प्रकाश में आया है. ग्रामीणों द्वारा बताया गया कि मुकुंदपुर महादलित बस्ती में गरीबों के पास पर्याप्त मात्रा में ठंड से मुकाबला करने के लिए कपड़े एवं […]

चरपोखरी : थाना क्षेत्र के मुकुंदपुर गांव में शीतलहर और ठंड के प्रकोप के कारण एक आठ वर्षीय बालक एवं उसकी 55 वर्षीय दादी की मौत का मामला प्रकाश में आया है. ग्रामीणों द्वारा बताया गया कि मुकुंदपुर महादलित बस्ती में गरीबों के पास पर्याप्त मात्रा में ठंड से मुकाबला करने के लिए कपड़े एवं अलाव की व्यवस्था नहीं होने से एक ही परिवार के दो लोगों की मौत हो गयी है. गुरुवार की रात ठंड के कारण छोटन मुसहर का आठ वर्षीय पुत्र सरोज कुमार की मौत हो गयी.

ग्रामीणों का कहना है कि एकाएक लड़का उल्टी करने लगा. जब तक डॉक्टर के पास पहुंचते कि उसके पहले ही लड़के की मौत हो गयी. मौत की खबर सुनते ही लड़के की दादी प्रसाद मुसहर की पत्नी सोमरिया देवी की मौत कुछ ही देर के बाद हो गयी. वार्ड सदस्य रवि कुमार ने बताया कि महादलित बस्तियों में प्रशासन की ओर से ठंड से बचने के लिए अगर कोई उपाय किया गया होता, तो महादलित परिवार के दो लोगों की मौत एक ही समय नहीं होती. मुकुंदपुर पंजाब नेशनल बैंक के ग्राहक सेवा केंद्र संचालक विकास मिश्रा ने महादलित बस्ती में पर्याप्त मात्रा में अलाव की व्यवस्था करने की मांग की है.

पहले भी तीन लोगों की जा चुकी है जान : जिले में ठंड से इसके पहले भी तीन व्यक्तियों की जान जा चुकी है. गरीबी पर ठंड भारी पड़ गयी. तीनों लोगों के परिजनों को भी अब तक प्रशासन द्वारा कोई सुविधा नहीं दी गयी. दूसरी तरफ शुक्रवार को भी ठंड ने दलित बच्चे की जान ले ली.
अलाव का है दावा, फिर भी ठंड से मर रहे हैं लोग
प्रशासन का सभी अंचलों में अलाव की व्यवस्था का दावा किया जा रहा है. कागजों में हर जगह अलाव जल रहे हैं, पर धरातल पर सच्चाई यहीं है कि कहीं भी अलाव नहीं जल रहा है. कड़ाके की ठंड से पूरा जनमानस प्रभावित है. अलाव की व्यवस्था नहीं होने से लोगों की जान जा रही है. दलित वस्तियों में जहां अलाव की व्यवस्था नहीं है, वहीं उनके आवास व पर्याप्त कपड़ों के अभाव में ठंड अपना तांडव कर रहा है. मुकुंदपुर दलित बस्ती में अलाव की व्यवस्था की गयी होती, तो शायद दलित बच्चे की जान नहीं जाती.
वहीं उसके दादी की भी जान नहीं जाती. अब प्रशासन को इसके बाद भी जगने की आवश्यकता है.

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