परेशानी . भवन की है स्थिति जर्जर, मरीजों को हो रही असुविधा
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कई सुविधाओं से वंचित है रेफरल अस्पताल
परेशानी . भवन की है स्थिति जर्जर, मरीजों को हो रही असुविधा शाहपुर : मरीजों का इलाज करनेवाला रेफरल अस्पताल खुद ही मरीज बन गया है. जर्जर हो चुके अस्पताल के भवन के जीर्णोद्धार के लिए केंद्रीय एवं राज्यस्तरीय टीमों द्वारा गत एक दशक में कई बार इसका मुआयना किया जा चुका है. बावजूद इसके […]
शाहपुर : मरीजों का इलाज करनेवाला रेफरल अस्पताल खुद ही मरीज बन गया है. जर्जर हो चुके अस्पताल के भवन के जीर्णोद्धार के लिए केंद्रीय एवं राज्यस्तरीय टीमों द्वारा गत एक दशक में कई बार इसका मुआयना किया जा चुका है. बावजूद इसके अस्पताल की स्थिति ऐसी हो गयी है कि बारिश के समय सभी वार्डों सहित इनडोर तथा आउटडोर कक्ष में पानी टपकते रहता है. इतना ही नहीं अस्पताल के भवन का सीलिंग भी टूट कर गिर जाता है.
इससे दुर्घटना होने की संभावना बनी रहती है. सरकार की उपेक्षा के कारण बीमार अस्पताल खुद अपने रोग के इलाज का इंतजार कर रहा है. यह भवन कब जमींदोज हो जाये और कब कोई अप्रिय घटना घट जाये, जिसका अंदाजा लगाना मुश्किल है. हालांकि अस्पताल प्रशासन द्वारा इसके बारे में मरीजों को सूचना दे दी जाती है.
रेफरल अस्पताल अपने प्रारंभिक समय से ही जिले के टॉप सरकारी अस्पतालों में से एक रहा है. सदर अस्पताल के बाद सबसे ज्यादा मरीज यही आते हैं. वहीं पिछले एक दशक के रिकाॅर्ड पर नजर दौड़ाएं, तो सदर अस्पताल के बाद सबसे ज्यादा महिलाएं प्रसव के लिए शाहपुर रेफरल अस्पताल में ही आती हैं. रेफरल अस्पताल में प्रत्येक दिन करीब चार से पांच सौ मरीज विभिन्न रोगों के इलाज के लिए आते हैं, जिसमें महिलाएं एवं बच्चों की संख्या ज्यादा होती है. जबकि प्रत्येक दिन औसतन एक दर्जन महिलाओं का प्रसव होता है. अस्पताल की गरिमा के कारण ही शाहपुर जिले में मेडिकल क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण स्थान बना चुका है. इसका निर्माण 1979 में तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री लालमुनी चौबे के प्रयास से हो पाया था.
30 की जगह 15 बेड हैं उपलब्ध : अस्पताल में 30 बेड की जगह 15 बेड ही उपलब्ध हैं. आधे बेड खराब हो चुके हैं. इससे मरीजों को काफी परेशानी हो रही है. अस्पताल प्रशासन की उदासीनता से बेड को ठीक नहीं कराया जा रहा है. इस कारण मरीजों को जमीन पर लेटाकर इलाज किया जाता है. सुविधा की चाह में अस्पताल पहुंचनेवाले मरीज अस्पताल की कुव्यवस्था से परेशान हो जाते हैं. इससे उनके स्वस्थ होने की प्रक्रिया पर विपरीत प्रभाव पड़ता है.
चालू नहीं है इमरजेंसी सेवा: अस्पताल में इमरजेंसी सेवा चालू स्थिति में नहीं है. इससे मरीजों को काफी परेशानी होती है. इमरजेंसी वाले मरीजों को इलाज करने के बदले सदर अस्पताल आरा या दूसरे बड़े अस्पताल में रेफर कर दिया जाता है. जो कई बार मरीजों के लिए खतरनाक साबित होता है.
तथा उन्हें आर्थिक क्षति भी उठानी पड़ती है. इतना ही नहीं आइसीयू की सुविधा भी मरीजों को अस्पताल में नहीं मिलती है. महिलाओं को प्रसूति के लिए सिजेरियन की सुविधा नहीं मिल पाती है. इससे मरीजों को काफी परेशानी होती है.
लगभग 10 हजार मरीज आते हैं प्रतिमाह
अस्पताल में प्रतिमाह लगभग 10 हजार मरीज इलाज के लिए आते हैं पर इलाज की समुचित व्यवस्था नहीं होने से उन्हें काफी निराशा होती है. इतनी संख्या में मरीजों के पहुंचने के बाद भी सुविधा के लिए प्रशासन की उपेक्षापूर्ण नीति से मरीज काफी परेशान होते हैं.
सृजित पद के अनुसार कार्यरत हैं चिकित्सक
अस्पताल में चिकित्सकों के 10 पद सृजित हैं. वहीं अस्पताल में 10 चिकित्सक कार्यरत हैं. जिसमें सात पुरुष चिकित्सक, दो महिला चिकित्सक तथा 1 संविदा चिकित्सक कार्यरत है. बावजूद इसके मरीजों का इलाज समुचित व्यवस्था के तहत नहीं हो पाता है.
अस्पताल में मिलती हैं काफी कम दवाएं
मरीजों को अस्पताल से काफी कम दवाएं मिलती हैं. आउटडोर के लिए सरकार द्वारा 30 दवाएं अनुशंसित हैं. जिसे अस्पताल में रखना है. वहीं इंडोर मरीजों के लिए 104 दवाएं अनुशंसित हैं. पर अस्पताल में काफी कम दवाएं उपलब्ध रहती है. दवा के नाम पर महज 40 दवाएं ही मरीजों को मिल पाती हैं. इससे मरीजों को काफी परेशानी होती है.
अस्पताल में दवा वितरण के लिए बना है केंद्र
अस्पताल में मरीजों को दवा देने के लिए स्टोर रूम तथा केंद्र बना हुआ है. जहां से मरीज दवा लेते हैं. चिकित्सकों द्वारा लिखी गयी दवाओं को मरीज स्वयं जाकर या उनके परिजन दवा लेते हैं. दवा वितरण के लिए केंद्र में कर्मी कार्यरत रहते हैं.
भवन की स्थिति हैं दयनीय
अस्पताल के भवन की स्थिति काफी दयनीय है. दीवार से सीलन होता है. वहीं प्लास्टर भी टूट कर गिरते रहता है. कई जगह फर्श टूटी-फूटी अवस्था में है. वहीं छत की स्थिति ऐसी है कि बरसात के दिनों में छत से पानी टपकते रहता है. मरीजों का रहना मुश्किल हो जाता है. किसी तरह मरीज मजबूरी में इलाज कराते हैं.
सतरंगी चादर योजना है फेल
अस्पताल शाहपुर क्षेत्र के मरीजों की आशा का केंद्र है. पर अस्पताल में सरकार द्वारा लागू की गयी मरीजों की सुविधा के लिए महत्वाकांक्षी योजना सतरंगी चादर योजना पूरी तरह फेल है. अस्पताल में चादर नहीं बदली जाती है. वहीं कई बेड पर फटा हुआ चादर बिछा रहता है. इससे मरीज काफी परेशान होते हैं.
रेफरल अस्पताल में मरीजों को नहीं मिल रही हैं सुविधाएं
दवाएं राज्य स्वास्थ केंद्र द्वारा भेजी जाती है. स्थानीय स्तर पर कुछ दवाएं खरीदी जाती हैं. जितनी दवाएं उपलब्ध रहती है. मरीजों को दी जाती है. कुछ स्टाफ व चिकित्सक की कमी है.
डॉ अजय कुमार, प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी
रेफरल अस्पताल में काफी कम मात्रा में दवा मिलती है. कई दवाएं मजबूरी में बाहर से खरीदनी पड़ती हैं. इससे काफी परेशानी होती है, वहीं आर्थिक क्षति भी उठानी पड़ती है.
बबिता देवी, विशुपुर
डॉक्टरों की काफी कमी है. कभी-कभार ही चिकित्सक जांच करने आते हैं. वहीं नर्सिंग व्यवस्था भी ठीक नहीं है. इससे अस्पताल में इलाज कराने में काफी कठिनाई होती है.
चंद्रावती देवी, बिलौटी
रेफरल अस्पताल में उपकरणों की काफी कमी है. इलाज कराने में हमेशा भय बना रहता है. चिकित्सकों द्वारा मनमाने ढंग से मरीजों की जांच की जाती है. इससे काफी परेशानी होती है.
पुनीता देवी, सहजौली
अस्पताल से जुड़े आंकड़े
कुल चिकित्सक 10
कार्यरत चिकित्सक 10
पुरुष चिकित्सक 07
महिला चिकित्सक 02
संविदा चिकित्सक 01
एएनएम 74
संविदा एएनएम 24
कुल निर्धारित बेड 30
प्रसूति गृह में बेड 02
कुल स्टॉफ 32
आउटडोर दवाएं 30
उपलब्ध दवाएं 28
इनडोर दवाएं 104
उपलब्ध दवाएं 40
उपकेंद्र 32
अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य उपकेंद्र 05
एंबुलेंस 01
डेंटिस्ट 01
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