संकट. गंगा पर पड़ रहा शहर की गंदगी का असर, कोई देखनेवाला नहीं
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गंगा से पूछिए गंदगी का दर्द
संकट. गंगा पर पड़ रहा शहर की गंदगी का असर, कोई देखनेवाला नहीं गंगा में खुले के नाले से पहुंचनेवाली गंदगी और गंगा के तट पर नगर निगम द्वारा फेंके गये लाखों टन कूड़े-कचरे का दर्द गंगा से ही पूछिए. वह सब बयां करेगी. गंगा के पानी को 10 वर्ष पहले वाटर वर्क्स में साफ […]
गंगा में खुले के नाले से पहुंचनेवाली गंदगी और गंगा के तट पर नगर निगम द्वारा फेंके गये लाखों टन कूड़े-कचरे का दर्द गंगा से ही पूछिए. वह सब बयां करेगी. गंगा के पानी को 10 वर्ष पहले वाटर वर्क्स में साफ करने में केवल एक केमिकल से काम चल जाता था. लेकिन अब केमिकल की संख्या बढ़ कर चार हो चुकी है.
भागलपुर : शहर में गंदगी का कुप्रभाव इतना बढ़ रहा है कि शहर को शुद्ध पानी मुहैया कराना आनेवाले दिनों में मुश्किल भरा काम होगा. शहर से गंगा में खुले नाले से गंदा पानी भेजने और गंगा के तट पर कूड़ा फेंकने का सिलसिला बढ़ता जा रहा है. इसका असर इस कदर बढ़ रहा है कि वाटर वर्क्स में पानी साफ करने के लिए उपयोग में लाये जानेवाले केमिकल्स की मात्रा बढ़ती ही जा रही है. पिछले 10 वर्षों में केमिकल की मात्रा कुल मिला कर देखा जाये, तो तीन गुनी बढ़ चुकी है. इसमें लगातार बढ़ोतरी दर्ज की जा रही है.
वाटर वर्क्स में पानी साफ करने के लिए केमिकल का इस्तेमाल
केमिकल्स 10 वर्ष पहले की स्थिति वर्तमान स्थिति
फिटकिरी 50 से 75 किलोग्राम 75 से 100 किलोग्राम
ब्लीचिंग एक बोरा 12 से 15 बोरा
क्लोरीन नहीं पड़ता था आवश्यकता के अनुसार
चूना नहीं पड़ता था एक बोरा
(नोट : केमिकल की यह मात्रा आम दिनों में प्रति आठ घंटे पर दी जाती है. यह आंकड़ा वाटर वर्क्स में कुछ लोगों से बातचीत पर आधारित है.)
एक्सपर्ट की राय : गंगा के पानी में बढ़ गये हैं कीटाणु
टीएनबी कॉलेज के रसायनशास्त्र विभाग के शिक्षक प्रो कामाख्या प्रसाद ने बताया कि गंगा के पानी में कीटाणु बढ़ गये हैं. यही वजह है कि वाटर वर्क्स को अब पानी साफ करने के लिए क्लोरीन देना पड़ रहा है और ब्लिचिंग की मात्रा बढ़ानी पड़ रही है.
गंगा के पानी के गंदा होने की वजह
नाले का गंदा पानी सीधे गंगा में गिरना
गंगा के तट पर कूड़ा-कचरा फेंकना
डेड बॉडी को गंगा में फेंक देना
प्रदूषण से जलीय जीवों में कमी आना
चुप न बैठें स्वच्छता को आंदोलन बनाएं
गंदगी देख गंगा भी दूर हो गयी
गंदगी देख गंगा भी दूर हो चुकी है. गंगा के पुराने तट सूने हो गये हैं. जहां गंगा झर-झर बहा करती थी, आज वहां खेत हैं. लोग घर भी बनाने लगे हैं. विभिन्न घाटों पर बनी सीढ़ियाें का उद्देश्य फरवरी में ही समाप्त हो चुका है. 3.4 किलोमीटर चौड़ी गंगा 2.58 किमी रह गयी है. वर्ष 1990 से 2006 तक के बदलाव पर इसरो (भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन) को जारी टीएमबीयू के क्षेत्रीय अध्ययन केंद्र की रिपोर्ट गंगा के सिमटते धार को साबित करती है.
सीवरेज प्लांट भी जंग खा रहा
शहर के नालों का पानी शुद्ध करने के लिए टीएमबीयू के बगल में स्थापित सीवरेज प्लांट वर्षों से जंक खा रहा है. इसके कारण पानी के साथ प्लास्टिक, कचरे, सड़े-गले अनाज-सब्जियां, मेडिकल वेस्टेज आदि भी गंगा में पहुंच रहे हैं. सैकड़ों नाले शहर से सीधे गंगा में खुले हुए हैं.
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