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मैं हवा हूं, कहां वतन मेरा…

भागलपुर : हुसैन बंधुओं की गजलों ने गुरुवार को सैंडिस में बिहार दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में आये श्रोताओं के दिलों के तार को न केवल छेड़ा, बल्कि उन्हें जिंदगी के रस में डुबो भी दिया. दिल की लगी से शुरू हुआ गजलों का तराना जिंदगी के फलसफे पर जाकर खत्म हुआ. एक बार हुसैन […]

भागलपुर : हुसैन बंधुओं की गजलों ने गुरुवार को सैंडिस में बिहार दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में आये श्रोताओं के दिलों के तार को न केवल छेड़ा, बल्कि उन्हें जिंदगी के रस में डुबो भी दिया. दिल की लगी से शुरू हुआ गजलों का तराना जिंदगी के फलसफे पर जाकर खत्म हुआ. एक बार हुसैन बंधुओं ने जो सुर छेड़ा, घंटों तक श्रोता हिले नहीं. वक्त का कुछ पता ही नहीं चला. बेहतरीन हर्फ (अक्षर) से सजी गजलें लोगों के दिलो-दिमाग में बस गयी. हर प्रस्तुति के बाद गड़गड़ाती तालियां बेहतरीन प्रोग्राम की गवाही दे रही थी. कार्यक्रम की शुरुआत गणेश वंदना से शुरू हुई, जिसकी शुरुआत में कहा-तुलसी-तुलसी सब कहे, तुलसी वन की घास. राम की कृपा हुई तो बन गये तुलसी दास.

बिहार दिवस के समापन के अवसर पर रंगारंग कार्यक्रम के दौरान हुसैन बंधु ने एक के बाद एक बेहतरीन गजल गाये. उन्होंने राग यमन पर आधारित व मशहूर गीतकार हसरत जयपुरी की गजल से शुरुआत की. कहा- जो जिंदगी के हर पड़ाव पर एक हौसला देती है. चल मेरे साथ ही चल ऐ मेरी जान-ए-गजल, इन समाजों के बनाये हुए बंधन से निकल, चल. हम वहां जाएं जहां प्यार पे पहरे न लगें, दिल की दौलत पे जहां कोई लुटेरे न लगें, कब है बदला ये जमाना, तू जमाने को बदल, चल.
उन्होंने अपनी पहली अल्बम गुलदस्ता की गजल को भी गाया. कहा- अब कहां हूं, कहां नहीं हूं मैं, जिस जगह हूं वहां नहीं हूं मैं. मैं हवा हूं कहां वतन मेरा, दश्त मेरा ना ये चमन तेरा. यह उस्ताद अहमद हुसैन और उस्ताद मोहम्मद हुसैन की पहली लोकप्रिय अल्बम की गजल थी. उन्होंने मिर्जा गालिब की दो गजलों के मिश्रण वाले कलाम गाये. कहा- ये न थी हमारी किस्मत, कि विसाल-ए-यार होता. अगर और जीते रहते, यही इंतज़ार होता. तेरे वादे पर जिये हम, तो ये जान झूठ जाना, कि ख़ुशी से मर न जाते, अगर ऐतबार होता. मौके पर डीडीसी अमित कुमार के अलावा तमाम प्रशासनिक पदाधिकारी व श्रोताओं की भारी भीड़ मौजूद थी.

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