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…जो जिंदा हो, तो फिर जिंदा नजर आना जरूरी है

भागलपुर : सूफी संतों की नगरी भागलपुर का नौ मार्च 2017, दिन गुरुवार वर्षाें तक याद किया जायेगा. यहां के तहजीब पसंद लोगों ने एक साथ देश के कई शीर्षस्थ शायरों को सुना. सांस्कृतिक संकट के इस दौर में इन शायरों को सुनना समाज की बेहतरी के दरीचे खुलने की तरह रहा. फाल्गुनी बयार के […]

भागलपुर : सूफी संतों की नगरी भागलपुर का नौ मार्च 2017, दिन गुरुवार वर्षाें तक याद किया जायेगा. यहां के तहजीब पसंद लोगों ने एक साथ देश के कई शीर्षस्थ शायरों को सुना. सांस्कृतिक संकट के इस दौर में इन शायरों को सुनना समाज की बेहतरी के दरीचे खुलने की तरह रहा. फाल्गुनी बयार के बीच इनसानियत के पाठ पढ़ाते शब्द जब दिमाग तक पहुंचते थे,

तो मुंह से बमुश्किल वाह-वाह शब्द ही निकल पा रहे थे. मौका था टाउन हॉल में डीपीएस की ओर से आयोजित महफिल-ए-मुशायरा का. शायरों ने राजनीति पर कोई बात नहीं की, लेकिन इशारों-इशारों में ही देश के वर्तमान हालात पर चिंता व्यक्त करने के साथ ही बिहार की खुशहाली का भी जिक्र किया. शहरवासी शायरी के गुलदस्ते नहीं, वसंत में खिले पूरा का पूरा टुह-टुह लाल पलास वन अपने साथ घर ले गये, जो वर्षों तक उनको थाती रहेगी. प्रभात खबर ने अपने पाठकों के लिए इन शख्सीयतों से खास बातचीत की.

टाउन हॉल में
महफिल-ए-मुशायरा
जो हम कह रहे हैं, वो जी रहे हैं कि नहीं : वसीम बरेलवी
कविता तो एक माध्यम है, लेकिन सबसे बड़ी बात यह सोचने की है कि जो हम कह रहे हैं, वो जी रहे हैं कि नहीं. कथनी और करनी में जो बड़ा अंतर दिख रहा है, इसका परिणाम भी उतना ही बुरा होगा. चंद लोग हो सकते हैं, जो इसे बिगाड़ने की कोशिश कर सकते हैं, पर इसकी बुनियाद काफी गहरी है.
बिहार में सब जगह सुकून दिखता है : मुनव्वर राना
बिहार के लोग सिर्फ बिहार में नौकरी नहीं तलाशते. यहां के लोग मेहनती होते हैं. हिंदू-मुसलमान का भेद नहीं करते. बिहार में सुकून दिखता है. महबूबा को हिंदी में हत्यारिन या अंगरेजी में मर्डरर कहें, तो नाराज हो जायेंगी, लेकिन उर्दू में कातिल कह दें, तो खुश हो जायेंगी.
भारत को साहित्य प्रधान होना चाहिए : नवाज देवबंदी
समाज में दरार पाटना है, तो मैं कहता हूं कि मुशायरा व कवि सम्मेलन एक साथ कीजिए. फिर गंगा-जमुनी तहजीब समाज में दिखनी शुरू हो जायेगी. हम तो मुहब्बत की बात करते हैं. नयी पीढ़ी को साहित्य पढ़नी चाहिए. अपने देश भारत को साहित्य प्रधान होना चाहिए.
पांच फीसदी लोग ही अशांति चाहते हैं : अनवर जलालपुरी
बुरी ताकतों का मकसद समझने की जरूरत है. दो देशों के रिश्ते बिगड़ते हैं, तो ऐसी शक्तियां उसे हवा देती हैं, ताकि उनके हथियार बिके. दुनिया में ऐसे लोगों की तादाद महज पांच फीसदी है, जो अशांति चाहती है. समाज, दुनिया और राजनीति में जो नया हो रहा है, वही शायरी में हो रही है.

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