भागलपुर : देश खूब विकास कर रहा है. नोटबंदी के बाद अब तो कैशलेस की तरफ बढ़ रहे हैं हम.
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कमाई बढ़ती गयी और बेटियां घटती गयीं
भागलपुर : देश खूब विकास कर रहा है. नोटबंदी के बाद अब तो कैशलेस की तरफ बढ़ रहे हैं हम. साक्षरता की दर भी खूब बढ़ी है. लेकिन बेटियां घटती ही जा रही हैं. हाल ही में जारी एक सरकारी रिपोर्ट की मानें आजादी के बाद पहली बार लिंगानुपात 946 से घट कर 887 तक […]
साक्षरता की दर भी खूब बढ़ी है. लेकिन बेटियां घटती ही जा रही हैं. हाल ही में जारी एक सरकारी रिपोर्ट की मानें आजादी के बाद पहली बार लिंगानुपात 946 से घट कर 887 तक नीचे गिर चुका है.
छह साल से कम आयु की लड़कियों की जन्मदर प्रति हजार लड़कों की तुलना में काफी गिर गयी है. 1961 में जहां प्रति एक हजार लड़कों के मुकाबले 976 लड़कियां थीं, वहीं 2011 में प्रति एक हजार लड़कों के मुकाबले 914 लड़किया रह गयीं. अब यही आंकड़ा प्रति एक हजार लड़कों पर 887 लड़कियों पर आ चुका है.
पश्चिम से पूरब बेहतर
रिपोर्ट में उल्लेख है कि देश के पूर्वी हिस्सा लिंगानुपात के मामले में पश्चिमी क्षेत्र से बेहतर स्थिति में है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, गुजरात और राजस्थान जैसे राज्यों में बेटियां जहां कम हो रही हैं, वहीं पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, झारखंड और पूर्वोत्तर राज्यों में लिंगानुपात थोड़ा बेहतर है.
बेटों की चाहत भारी
इंडिया स्पेड की जून में एक रिपोर्ट के अनुसार प्रमुख कारण समाज में लड़कों की चाहत है, लेकिन आय में वृद्धि भी एक प्रमुख कारण माना जा रहा है. साक्षरता के चलते भी लोग लिंग परीक्षण करवा रहे हैं. कुल मिला कर हर घर में लोगों में बेटों की चाहत है, बेटियां तो दुर्घटनावश आ जाती हैं.
आमदनी बढ़ी, प्रजनन दर घटी
65 साल के इतिहास में पहली बार लिंगानुपात 946 से घट कर 887 हो गया है.
72,889 रुपया सालाना हो गयी है प्रतिव्यक्ति आय
5.9 से घट कर 2.4 हुई प्रजनन दर
आय में वृद्धि, बच्चियों की औसत जन्म दर 2.4
जहां देश की प्रति व्यक्ति आय बढ़ कर 72,889 हो गयी है, वहीं कुल प्रजनन दर (प्रति महिला बच्चों का जन्म की औसत दर) में कमी आयी है. 1960 में यह 5.9 था, जो 2012 में गिर कर 2.5 और 2014 में 2.4 हो गयी है. लिंगानुपात में भी गिरावट आयी है. अन्य एशियाई देशों में ऐसी प्रवृत्तियों को देखा जा रहा है, जहां माना जाता है कि बेटा ही उत्तराधिकारी और परिवार को आगे बढ़ाने का काम कर सकता है.
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