भागलपुर : कहते हैं दमकता चेहरा था उनका, चाल मतवाली थी. दीवानों की लंबी फेहरिस्त थी, पर यह किसी और की दीवानी थी. दिल देनेवालों की कोई कमी नहीं थी, पर यह किसी और को दिल दे बैठी थीं. मरते तो कई इनके ऊपर थे, पर यह किसी और के निश्छल प्रेम में फना हो जाना चाहती थीं. वह कोई और नहीं, देवदास थे, जिनके लिए वह दुनिया को भी भूल चुकी थीं. चंद्रमुखी के इसी मुहब्बत को कलम से पिरोया था शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने. बाद में देवदास नामक उपन्यास के जरिये दुनिया को मिला. वह चंद्रमुखी कहीं और नहीं, भागलपुर के मंसूरगंज में रहती थीं.
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मंसूरगंज में रहती थीं देवदास की चंद्रमुखी
भागलपुर : कहते हैं दमकता चेहरा था उनका, चाल मतवाली थी. दीवानों की लंबी फेहरिस्त थी, पर यह किसी और की दीवानी थी. दिल देनेवालों की कोई कमी नहीं थी, पर यह किसी और को दिल दे बैठी थीं. मरते तो कई इनके ऊपर थे, पर यह किसी और के निश्छल प्रेम में फना हो […]
मंसूरगंज की चंद्रमुखी देवदास उपन्यास के जरिये दुनिया भर में मशहूर हो गयीं, लेकिन अपने ही घर में बेगानी हो गयी. न तो उन्हें फिर कभी याद किया गया और न ही उनके देवदास को रचनेवाले के लिए भागलपुर ने कुछ करने का प्रयास किया. देवदास…कोई उपन्यास के रूप में याद करता है, कोई इसकी कहानी पर आधारित फिल्मों के रूप में. डॉ रमन सिन्हा की पुस्तक ‘भागलपुर : अतीत एवं वर्तमान’ में यह उल्लेख है कि देवदास की चंद्रमुखी भागलपुर के मंसूरगंज की तवायफ कालीदासी है.
वर्ष 2002 में शरतचंद्र के उपन्यास देवदास पर संजय लीला भंसाली के निर्देशन में बड़े परदे पर फिल्म देवदास आयी थी. बाहर रंग-बिरंगी रोशनी बिखरी हुई, अंदर महफिल सजी है. ‘यह किसकी है आहट, यह किसका है साया, हुई दिल में दस्तक यहां कौन आया, हम पे यह किसने हरा रंग डाला….मार डाला’ गाने के बोल बजते हैं. लोग कहते हैं कि ऐसी ही रही होगी चंद्रमुखी की महफिल. यूं ही तो उनकी महफिल के उतने सारे दीवाने नहीं होंगे. लेकिन आज न तो चंद्रमुखी के भागलपुर में होने की कोई निशानी बची है और न ही शरतचंद्र के सम्मान में कोई स्थल ही बन पाया.
फिल्मों में जैसी फिल्मायी गयी, उससे कम नहीं थी देवदास को दिल में रखनेवाली
गुरुद्वारा में सामूहिक सुखमनी पाठ
शहीदी गुरु पर्व. पांचवें गुरु अर्जुनदेव महाराज का 410वां शहीदी-गुरु पर्व
सिख समुदाय के पांचवें गुरु गुरु अर्जुनदेव महाराज का 410वां शहीदी-गुरु पर्व बुधवार को गुरुद्वारा परिसर में मनाया गया. गुरुद्वारा परिसर में सुबह 10:30 बजे से सामूहिक सुखमनी पाठ हुआ. पाठ में सिंधी समाज, पंजाबी समाज, सिख समाज समेत अन्य समाज के लोग शामिल हुए.
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