तन रंग लो जी आज मन रंग लो
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रंगों का त्योहार. सतरंगी परंपराओं का वाहक है कोसी व अंग की होली
तन रंग लो जी आज मन रंग लो रंगों से भीग जाने को भागलपुर तैयार हो चुका है. लोगों का उत्साह शिखर पर है. दूर बसे दोस्त-नातेदार को होली ने पास बुला लिया है. बस रंगों की फुहार बरस जाने की देर है. कहते हैं सब जग होरी, जा ब्रज होरा. यानी ब्रज की होली […]
रंगों से भीग जाने को भागलपुर तैयार हो चुका है. लोगों का उत्साह शिखर पर है. दूर बसे दोस्त-नातेदार को होली ने पास बुला लिया है. बस रंगों की फुहार बरस जाने की देर है. कहते हैं सब जग होरी, जा ब्रज होरा. यानी ब्रज की होली सबसे अनूठी होती है. ब्रज के नंदगांव व बरसाने गांव की विख्यात लट्ठमार होली में हर कोई भीगना चाहता है. लेकिन कोसी और अंग के इलाके में भी इसका कमतर एहसास नहीं.
भागलपुर : होली को लेकर सारी तैयारी पूरी कर ली गयी है.लोगों का उमंग हिलोर मार रहा है. इस प्रकार होली को लेकर सब सराबोर हैं. कोसी और अंग के इलाके में भी लोगों होली को लेकर काफी उत्सािहत हैं.
पूर्णिया : धूरखेल के लिए ग्रामदेवता का आदेश जरूरी
पूर्णिया जिले के श्रीनगर इलाके के कुछ गांवों में धुरखेल खेलने के लिए सबसे पहले ग्राम देवता का आदेश लेना जरूरी होता है. इसके लिए लोग सबसे पहले ग्राम देवता के चरणों पर धूल चढ़ाते हैं. इसके बाद वे धूरखेल के लिए निकलते हैं.
सहरसा : फागुन पूर्णिमा में जुटते हैं महिला-पुरुष
वनगांव स्थित भगवती स्थान में महिला पुरुष होली मनाने के लिए जुटते हैं. हजारों की भीड़ जुटती है. लोग जम कर होली खेलते हैं. भीड़ का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि भगवती स्थान तक पहुंचने के लिए मुख्य अतिथि को किसी एक के कंधे पर चढ़ना पड़ता है और इसके बाद वे एक-दूसरे के कंधे से होते हुए गंतव्य स्थान तक पहुंच जाते हैं.
भागलपुर : ए जजमानी तोरे सोने के किवाड़ी
ए जजमानी तोरे सोने के किवाड़ी, चार गो गोइठा द. कहते हुए युवाओं की टोली शाम को हर घर में जाकर गोइठा व लकड़ी मांगते हैं ताकि होलिका दहन कर सके. रंग खेल के दिन सूर्य उगने से पहले ही पूजा के लिए पकवान तैयार कर लिया जाता है. महिलाएं कुल देवता को पकवान चढ़ाती हैं. कुछ जगहों पर मान्यता है कि पुरुष पकवान बनते समय खड़े रहेंगे तो पकवान फूलेगा नहीं.
मधेपुरा : मटका फोड़ के दिखा
सिंहेश्वर स्थान में युवा वर्ग कई कार्यक्रम आयोजित करते हैं. इसमें सबसे अलग हट कर होनेवाला कार्यक्रम मटका फोड़ना है. इसमें लोहे का पोल जमीन में गाड़ दिया जाता है. पूरे पोल में ग्रीस से पोताई कर दी जाती है और उसके ऊपर मटका टांग दिया जाता है. पोल पर सबसे पहले चढ़ कर मटका फोड़ने वाले को पुरस्कृत भी किया जाता है. यह परंपरा कई सालों से चलने की बात कही जा रही है.
बांका : कीर्तन का समापन फाग के राग से
मंदिरों में होनेवाले सालों भर मंगलवार व शनिवार को कीर्तन का स्वरूप वसंतपंचमी के बाद बदल जाता है. कीर्तन मंडली भजन का समापन फाग के गीत से करते हैं. यह पूरे फागुन तक चलता है. फाग के गीत में लोक गायकी हर किसी को झूमने पर मजबूर कर देता है.
मुंगेर : अरथी की तरह जलायी जाती है होलिका
रामपुर भिखारी गांव के पास दो तीन दिन पहले से लोग आपस में चंदा इकट्ठा करते हैं. उससे लकड़ी और अरथी की सारी सामग्री खरीदी जाती है. सड़क पर उन सामग्री की ढेर लगाते हैं. जिसके माता पिता का निधन हो गया है, वे पांच बार परिक्रमा करने के बाद आग फूंकता है. होलिका दहन की यह परंपरा बिहार में संभवत: केवल यहीं पर निभायी जाती है.
खगडि़या : जोगीरा नहीं, तो कैसी होली
रात में फागुन का गीत एक माह पहले से शुरू हो जाता है. लोग जोगीरा गाते हैं. गांवों में आज भी यहां होरी गाते युवकों को देख यही कहा जा सकता है कि यहां एक महीने की होली होती है. टोली घर-घर घूमती है और होरी गाती है. यहां अधिकतर जगहों पर यह रिवाज है कि होली के दिन पकवान चढ़ाने के बाद ही लोग भोजन कर सकते हैं.
कटिहार : नयी फसल सेंक कर ग्रहण करते हैं प्रसाद
फागुन के प्रवेश करने पर राजस्थानी मूल के लोग घर-घर घूम कर गाते-बजाते हैं. सम्मत के दिन परिक्रमा करते हैं. नयी फसल (हरा चना) को सेंक कर उसे प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं.
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