देश का लय बहुत ही ठीक : पं राजन-साजनध्यानार्थ : पटना भेजी जा सकती है………………………………………संवाददाता, भागलपुरपद्मभूषण सम्मान से नवाजे जा चुके ख्याल गायिकी के उस्ताद बंधु पं राजन-साजन मिश्र ने कहा कि देश का लय बहुत ठीक है. सुर थोड़ा ऊंचा-नीचा हो सकता है. जहां सुर बिगड़ता है, वहीं प्रलय आता है. हमें कंधे से कंधा मिल कर चलना होगा, तभी हमारी भारतीय संस्कृति व संगीत उत्तरोत्तर समृद्ध होगा.मिश्र बंधु जेएस एजुकेशन भीखनपुर में आयोजित पत्रकारवार्ता में पत्रकारों से मुखातिब थे. उन्होंने असहिष्णुता संबंधी मुद्दे पर कहा कि हमारे देश से बढ़िया व सुरक्षित कोई देश नहीं है. भारतीयों से ज्यादा पूरे विश्व में सहनशील, विचारवान और सहिष्णु कोई नहीं है. उन्होंने देश के साहित्यकारों-बुद्धजीवियों द्वारा पुरस्कार वापसी के मुद्दे पर कहा कि पुरस्कार वापस करना उनका खुद का विचार-अनुभव हो सकता है. पुरस्कार हमें किसी पार्टी या सरकार द्वारा नहीं दिया गया है. मुझे लगता है कि पुरस्कार वापसी पब्लिसिटी बटोरने का एक कारण भी हो सकता है. वर्तमान परिवेश में शास्त्रीय संगीत के प्रति लोगों का रुझान कम होने के सवाल पर मिश्रा बंधु ने कहा कि पिछले तीन दशक में हिंदी भाषी क्षेत्र में शास्त्रीय संगीत के कद्रदान घटे हैं. लेकिन देश के अन्य प्रदेश में इसके प्रति लोगों की दीवानगी बढ़ी ही है. आज की तारीख में शास्त्रीय संगीत से जुड़े कलाकार संगीत कार्यक्रमों में इतने व्यस्त हैं कि इनका एप्वायंट पाना मुश्किल हैं. उन्होंने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि उनसे आइआइटी, आइबीएम जैसे बड़े नौकरी में कार्यरत लोग मिले. उनकी इस संगीत के प्रति बढ़ रही दीवानगी को देख कर उन्हें लगा कि देश से समृद्ध शास्त्रीय संगीत का सुर-साज का प्राचीन तक सफर कभी नहीं थमेगा. मिश्राद्वय ने कहा कि संगीत के समक्ष कोई चुनौती नहीं है. संगीत एक सार्वभौमिक प्रक्रिया है. कुछ लोग शास्त्रीय संगीत की गंगा में अगर नहीं नहा रहे हैं तो इस गंगा का क्या दोष. मां गंगा हो या संगीत, इनका तो काम ही है अविरल प्रवाह. उन्होंने कहा हमारे प्राण वायु में संगीत है. जिंदगी सुर है तो प्राण साज. संगीत की लय से ही प्रकृति का संचालन होता है. सुर-स्वर से अलग कुछ भी नहीं है. पूरा ब्रह्मांड संगीत में नृत्य करता है. संगीत के बगैर कोई मनुष्य जी ही नहीं सकता है. भोजपुरी संगीत में बढ़ रही अश्लीलता के मुद्दे पर पं बंधु ने कहा कि ये हमारे स्वभाव में है कि हम दूसरे को आरोपित करते हैं और खुद की जिम्मेदारियों से भागते हैं. अगर हम अश्लील संगीत को पसंद नहीं करेंगे तो फिर वे बनेंगे कैसे ? आज महोत्सव के नाम पर शास्त्रीय संगीत-नृत्य एवं वाद्य से जुड़े लोगों के बजाय बालीवुड के कलाकारों को बुलाकर कार्यक्रम कराया जाता है. इनको देखने-सुनने और करने वाले कौन हैं ? हम ही हैं ना. फिर भोजपुरी संगीत गाने-बजाने वाले का क्या दोष ? हम पर अंग्रेजियत इस कदर हावी है कि हम अंग्रेजी बोलकर इतराते हैं. आज की तारीख में हम क्षेत्र, भाषा व जाति में बंटकर अपनी इंसानियत और संस्कृति का नुकसान कर रहे हैं. संगीत की कोई सीमा नहीं है : पं संजू सहायबनारस को देश का तबले में छठा घराना देने वाले पं राम सहाय के वंशज पं संजू सहाय ‘विष्णु’ आज की तारीख में इंग्लैंड में अपनी नव पीढ़ी को तबले पर साज देना सीखा रहे हैं. इन्होंने कहा कि जहां भाषा की सीमा समाप्त हो जाती हैं, वहीं पर संगीत की भाषा शुरू होती है. ये बताते हैं कि इन्होंने ऑस्कर अवार्ड विजेता माइकल नेमान के साथ तबले से साज दिया है. इन्हाेंने कहा कि उन्होंने विश्व की हर संगीत के साथ अपने तबले से साज दिया है लेकिन जो संतुष्टि उन्हें परंपरागत शास्त्रीय संगीत में मिलती है, उसका कोई सानी नहीं है.
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देश का लय बहुत ही ठीक : पं राजन-साजन
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