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संदर्भ साहत्यिकारों का पुरस्कार लौटाना

संदर्भ साहित्यकारों का पुरस्कार लौटानाअसहिष्णुता के विरुद्ध लड़ाई जारी रहेगीमो शहबाज गांधी, बुद्ध की धरती को ससम्मान हमें प्रणाम करने की आवश्यकता है. संकल्प लेना है मानवता सृजनशील है न कि अवरोधक. 1980 के दशक में पंजाब में आतंकवाद और स्वर्ण मंदिर आॅपरेशन के प्रतिक्रिया स्वरूप प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या हुई. दंगा भड़का, कत्लेआम […]

संदर्भ साहित्यकारों का पुरस्कार लौटानाअसहिष्णुता के विरुद्ध लड़ाई जारी रहेगीमो शहबाज गांधी, बुद्ध की धरती को ससम्मान हमें प्रणाम करने की आवश्यकता है. संकल्प लेना है मानवता सृजनशील है न कि अवरोधक. 1980 के दशक में पंजाब में आतंकवाद और स्वर्ण मंदिर आॅपरेशन के प्रतिक्रिया स्वरूप प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या हुई. दंगा भड़का, कत्लेआम हुआ. असहिष्णुता का दौर शुरू हुआ. फिर 1989 में अयोध्या मामला. भागलपुर में दंगा भड़का. फिर असहिष्णुता का दौर. वर्ष 1992 में महाराष्ट्र के मुंबई शहर सांप्रदायिक आग में झुलसा. असहिष्णुता का दौर चलता रहा. मुजफ्फरनगर की घटना को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. व्यक्ति से समाज है और समाज से देश. चुनाव में तो फायदे हो सकते हैं लेकिन देश को क्या फायदा हो सकता है इसके लिए भी तो सोचे राजनीतिक व शासक दल. वास्तव में देश के लिए साहित्यकार, वैज्ञानिक, संस्कृतकर्मी, कलाकार, समाजसेवी और फिल्मकार सोच रहे हैं, जिन्होंने पुरस्कार लौटा कर अपना विरोध जताया है. हमें ऐसे लोगों पर गर्व करना चाहिए. साहित्यकारों ने वर्तमान सरकार को दिशा दी है. राष्ट्रीय प्रतिभा किसी जाति-धर्म का मोहताज नहीं होता है. आइये हमलोग देशहित की बात करें और असहिष्णुता को दूर भगाये. साहित्यकारों, वैज्ञानिकों, कलाकारों के विरोध से व्यक्ति का नहीं बल्कि देश का मान बढ़ा है. असहिष्णुता के विरुद्ध हमारी लड़ाई जारी रहेगी. इसके लिए हमें चाहे कितनी भी कुरबानी क्यों न देनी पड़े. खुदाई खिदमतगार, भागलपुर

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