भागलपुर: हजरत पैगंबर साहब के नवासे हजरत इमाम हुसैन अलैह सलाम और उनके 72 साथियों की शहादत की याद में 1400 साल से भी पूर्व से मुहर्रम मनाया जाता रहा है.
इसलामिक वर्ष के एतवार से मुहर्रम उर्दू साल का पहला महीना भी है. इस माह की अपनी फजीलत व बरकत है. 1400 वर्ष पूर्व बादशाह यजिद ने अपने कार्यकाल में समाज में पूरी तरह से बुराई फैला रखी थी. इसलाम धर्म के मानने वाले के साथ सख्ती से पेश आते थे. हजरत इमाम हुसैन ने इस अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई. बादशाह यजिद ने हजरत को धोखे से बुला कर उनको और उनके साथियों को शहीद कर दिया. उक्त बातें मदरसा शहबाजिया मौलानाचक के हेड शिक्षक मौलाना फारूक आलम अशरफी ने कही. उन्होंने बताया कि हजरत इमाम अलैह सलाम ने बिना किसी भेद-भाव के और समाज की भलाई व इसलाम धर्म को बचाने के लिए अपनी शहादत दे दी.
इबादत करें व नफ्ल रोजा रखें
मुहर्रम की दसवीं तारीख तक लोगों को इबादत व नफ्ल रोजा रखना चाहिए. हजरत पैगंबर साहब खास कर मुहर्रम की नौवीं और दसवीं को रोजा रखते थे. इसकी बड़ी फजीलत है. ज्यादा से ज्यादा इबादत करनी चाहिए. हजरत इमाम हुसैन की याद में जलसा व मजलिस का आयोजन करें. किये गये गुनाहों की मगफिरत की दुआ मांगे.
इन बातों से बचें
मुहर्रम के जुलूस में गाना बजाना, नाचना व कूदना गलत है. मुहर्रम के जुलूस का मकसद है कि बुराई के खिलाफ आवाज उठाना और अन्याय करने वाले लोगों के खिलाफ अपने गम और गुस्से को जाहिर करना है. लेकिन आज लोगों ने इसे नाचने कूदने और खुशी मनाने का जरिया बना लिया है. ये चीजें हजरत इमाम हुसैन अलैह सलाम को खुश करने वाली नहीं है. बल्कि वे इन चीजों के खिलाफ थे. लोगों को चाहिए कि इस तरह की तमाम बूरी चीजों से बचें.
मुहर्रम का संदेश
समाज के गरीब व असहाय लोगों की नि:स्वार्थ भाव से मदद करें. हमेशा सच का साथ दें. समाज में फैले बुराई और अन्याय के खिलाफ आवाज बुलंद करें. हजरत इमाम हुसैन अलैह सलाम के आदर्श को अपने जीवन में उतारें, जिस चीज को अल्लाह ने हराम बताया है, उन चीजों से बचें. अपने बड़ों की इज्जत करें और छोटे से प्यार से पेश आयें. यही मुहर्रम का संदेश है.