28.8 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

कार्तिक कृष्ण अमावस्या पर होती है लक्ष्मी पूजा

कार्तिक कृष्ण अमावस्या पर होती है लक्ष्मी पूजा-दीपावली महालक्ष्मी पूूजन विधि संवाददाता, भागलपुरकार्तिक कृष्ण अमावस्या दीपावली त्योहार पर नूतन लक्ष्मी-गणेश, खाता-बही, कलम-दवात आदि के पूजन का विधान है. आमतौर पर पहली अप्रैल व पहली जनवरी से खाता शुरू किया जाता है. खाता-बही, कलम-दवात, गणेश-लक्ष्मी की पूजा दीपावली के दिन करना अनिवार्य है. पूजन स्वयं या […]

कार्तिक कृष्ण अमावस्या पर होती है लक्ष्मी पूजा-दीपावली महालक्ष्मी पूूजन विधि संवाददाता, भागलपुरकार्तिक कृष्ण अमावस्या दीपावली त्योहार पर नूतन लक्ष्मी-गणेश, खाता-बही, कलम-दवात आदि के पूजन का विधान है. आमतौर पर पहली अप्रैल व पहली जनवरी से खाता शुरू किया जाता है. खाता-बही, कलम-दवात, गणेश-लक्ष्मी की पूजा दीपावली के दिन करना अनिवार्य है. पूजन स्वयं या ब्राह्मण द्वारा कराना चाहिए. नयी दुकान या प्रतिष्ठान खोलने पर भी पूजन कराना चाहिए. इस पूजन में गौर, गणेश, कलश, नवग्रह आदि का पूजन करने के बाद बही, कलम, दवात अादि की पूजा करनी चाहिए. कुछ लोग रात्रि में जागरण भी करते हैं. दीपों का त्योहार दीपावली में दिखावा नहीं, उल्लास का माहौल होता है. लोग इस दिन लक्ष्मी पूजा, खाता-बही व रोकड़ की पूजा करते हैं, तो महिलाएं गहनों की पूजा करती हैं. गणेश-लक्ष्मी पूजा के समय घर के सभी सदस्यों का पूजा स्थान पर उपस्थित होना जरूरी है. पंडित रमेश चंद्र झा बताते हैं पूजन के दौरान मां लक्ष्मी के सामने हाथ नहीं जोड़ें. हाथ जोड़ना किन्हीं को विदा करने की मुद्रा है. भला लक्ष्मी को कोई विदा क्यों करना चाहेगा. इस तरह गणेश जी को भी हाथ नहीं जोड़ना चाहिए. दीपावली कथापंडित रमेश चंद्र झा बताते हैं एक समय धर्मराज युधिष्ठिर हाथ जोड़ कर भगवान श्रीकृष्ण से प्रार्थना कर रहे थे कि आप कोई ऐसा उपाय बतायें, जिससे हमारा नष्ट राज्य-धन संपदा प्राप्त हो जाये. श्रीकृष्ण बोले जब दैत्य राज बलि शासन करते थे, तब उनके राज्य में सारी प्रजा सुखी थी. वह मेरा भी प्रिय भक्त था. एक बार उसने 100 अश्वमेध यज्ञ करने की प्रतिज्ञा की. जब 99 यज्ञ पूरा हो चुका और जब एक बाकी रहा, तब इंद्रासन हिलने लगा. देवराज इंद्र अपना सिंहासन छिन जाने के भय से त्राहिमामकरने लगे. तब देवताओं को साथ लेकर इंद्र भगवान विष्णु के पास पहुंचे और अपनी समस्या बतायी. भगवान ने उनकी पीड़ा को दूर करने का आश्वासन दिया. इसके बाद भगवान विष्णु वामन अवतार लेकर उनके सौंवे यज्ञ में शामिल हुए. यहां पर राजा से तीन पैर नाप का दान मांगा. एक पैर में पूरी पृथ्वी, दूसरे में आकाश और तीसरा पैर उसके सिर पर रख दिया. इसके बाद वामन भगवान ने राजा से वर मांगने को कहा. राजा ने कहा कार्तिक के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी, चतुर्दशी एवं अमावस्या तीन दिन इस पृथ्वी पर मेरा राज्य रहे. इन तीन दिनों में जनता दीप दान व दीपावली का उत्सव मनावें. लक्ष्मी का निवास हो. भगवान विष्णु ने वरदान देकर उन्हें पाताल लोक भेज दिया और अंतरध्यान हो गये. इधर इंद्र का भय भी दूर हो गया. इसके बाद से ही दीपावली उत्सव मनाया जाता है और मां लक्ष्मी की पूजा होती है. ऐसे करें पूजन की तैयारीयजमान को पूर्वाभिमुख बैठाये. उसके सामने एक श्वेत वस्त्र बिछाकर उस पर गौर-गणेश, कलश, नवग्रह तथा षोडशमातृका का मंडल बना लें. कलश के पीछे एक छोटी चौकी, पीढ़ा आदि उच्च आसन रखकर लाल कपड़ा बिछायें. उस पर गणेश-लक्ष्मी की मूर्ति(सोना-चांदी या मिट्टी की) स्थापित करें. मूर्ति के आगे एक पान पर चांदी या सोने का एक सिक्का गंगाजल में धोकर रख दें. सिक्का के बगल में तीन स्थानों पर थोड़ा-थोड़ा अक्षत पूंज रखें. इन अक्षतों की ढेरी पर श्री महालक्ष्मी, महालक्ष्मी व महासरस्वती की पूजा की जाती है. मूर्ति के बगल में एक नये वस्त्र को बिछा कर एक नये कागज की बही पर रोली से उस पर स्वस्तिक बना कर एक छोटे पान पर थोड़ी दही लगा कर बही में चिपका दें. उसी के पास कलम दवात या पेन में मौली बांध कर रख दें. फिर नये कपड़े की एक थैली या रोली से स्वस्तिक बनाकर उसमें पांच गांठ हल्दी, पांच कंजा, पांच कमलगट्टा, पांच दूब एवं पांच सिक्का बही के पास रख दें. गद्दी के पास की दीवार पर स्वस्तिक बनावे. शुभ -लाभ, रोली या सिंदूर से लिखें. वहां श्री गणेशाय नम:, श्रीमहालक्ष्म्यै नम: लिख दें. उसी दीवार पर पंचदशी(15) का यंत्र भी बना दें. यह लक्ष्मी दाता यंत्र है. इसको सिद्ध कर लेने ऋण एवं दरिद्रता का नाश हो जाता है, साथ ही धनधान्य व ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है. कुछ लोग 20 व कुछ 21 का यंत्र भी बनाते हैं. अपनी परंपरा के अनुसार बना दें. यह यंत्र भी ठीक ही हैं. पूजन का मंत्र यजमान आसन पर पूर्वाभिमुख बैठ कर नीचे लिखे मंत्र से अपने ऊपर तथा सभी पूजन सामग्री पर जल छिड़क कर पवित्र हो जाये.ओम् अपवित्र: पवित्रों वा सर्वावस्थाड्गतोपि वा.य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स वांभ्यन्तर: शुचि: .निम्न मंत्र से तीन बार आचमन करें.1. ओम् केशवाय नम:, 2. ओम् माधवाय नम:, 3 ओम् नारायणाय नम:, ओम् हृषीकेशाय नम: उक्त मंत्र का उच्चारण कर हाथ धोये. पुण्डरीकाक्ष: पुनातु. इसके बाद पवित्र धारण करने के लिए अलग मंत्र का उच्चारण करें. पूजन कर्ता गायत्री मंत्र से शिखा बंधन करें. इसके बाद यजमान को आचार्य अलग मंत्र से तिलक करेंगे. पूजनकर्ता करें स्वस्तिवाचन मंत्र का उच्चारणपूजनकर्ता को दाहिने हाथ में अक्षत, पुष्प लेकर स्वयं या आचार्य स्वस्तिवाचन करें. स्वस्तिवाचन के बाद हाथ के अक्षत पुष्प को अपने आगे पृथ्वी पर रख दें. पुन: दाहिने हाथ में अक्षत पुष्प लेकर मंगल श्लोकों का पाठ करें. इसके बाद हाथ का अक्षत व पुष्प अपने सामने पृथ्वी पर रख दें. ब्राह्मण अलग मंत्र पढ़ेंगे और यजमान हाथ जोड़ कर प्रणाम करें. हाथ में कुश, अक्षत, जल और द्रव्य लेकर मंत्रोच्चारण के साथ संकल्प करें. इसके बाद पंचोपचार विधि से पूजन करें. दाहिने हाथ से पृथ्वी, गौरी, गणेश व कलश के स्थापन के लिए विधि अनुसार मंत्र के साथ भूमि का स्पर्श करें. इसके बाद गणेश पूजन करे. गणेश प्रतिमा की प्राण-प्रतिष्ठाबाये हाथ में अक्षत लेकर निम्न मंत्रों को पढ़ते हुए दाहिने हाथ से उन अक्षतों को गणेश जी की प्रतिमा पर छोड़ता जाये. इस प्रकार प्रतिष्ठा कर भगवान गणेश का षोडशोपचार पूजन करें. यम दीपदान विधि धनतेरस को सायंकाल प्रदोषकाल में यम दीपदान करना चाहिए. चारों दिशाओं की ओर मुख की हुई चार रूई की बत्तियां रख कर दीये को तिल के तेल से भर दें. दक्षिण दिशा की ओर देखते हुए मंत्र का उच्चारण करते हुए चार मुंह के दीपक को लाई की ढेरी के ऊपर रख दें. यम दीपदान का मंत्रमृत्युना पाश दण्डाभ्यां कालेन च मया सह.त्रयोदश्यां दीप दानात् सूर्यज: प्रीयता मिति.मां काली की पूजा का महत्व काली का शब्दार्थ काल होता है. अर्थात शिव: तस्य पत्नी काली. काली शिव की पत्नी का नाम है. यह भगवती, आदि अंत रहित अजन्मा और संपूर्ण जगत की स्वामिनी है. काल को उत्पन्न करने वाली तथा अरुपा है. काली की उत्पत्ति अम्बिका के ललाट से हुआ है. काली को कई रूपों में बांटा गया है. पहले में चिंतामणि काली, दूसरे में स्पर्शमणि काली, तीसरे में सन्ततिप्त काली, चौथा सिद्धि काली, पांचवां दक्षिणा काली, छठा काम कला काली, सातवां हंस काली, आठवां गुहा काली. काली मां को श्मशान वासिनी कहा गया है. इसलिए कि उनका आसन शव होता है. जब संसार में असुरों का आतंक बढ़ गया था, तभी मां दुर्गा ने अलग-अलग रूपों में इन असुर का संहार किया. मां दुर्गा ने एक दिव्य शक्ति उत्पन्न किया, जो महाकाली थी. महाकाली ने शुंभ-निशुंभ को काफी समझाया. जब असुर नहीं माने तो विकराल व रुद्र रूप धारण कर दोनों भाई को बारी-बारी से मार डाला. इससे पहले मां काली से दोनों ने युद्ध किया. शुंभ-निशुंभ के मरते ही देवता आकाश से पुष्प वर्षा करने लगे. ऋषि-मुनि मां अंबा की स्तुति करने लगे. इसके बाद से ही दुर्गा पूजा के बाद मां काली की पूजा शक्ति के रूप में की जाती है. नोट:- पूजा के लिए संदर्भ ग्रंथ व पंडितों का मार्गदर्शन जरूरी होता है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें