इन बोरियों को हॉस्टल की बिल्डिंग को बचाने के लिए नदी के पानी व हॉस्टल के बीच में डाला तो जा रहा है. लेकिन यह(बलुआ मिट्टी भरी बोरियां) पानी के बहाव व कटाव के बीच अपने अस्तित्व को कितनी देर तक तक टिका रहेगा, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पानी के संपर्क में आते ही बोरी में भरी तथाकथित बलुआ मिट्टी चंद मिनट में ही आधा हो जा रही थी. यह प्रयास लगातार बढ़ रहे गंगा के जलस्तर के आगे नाकाफी लग रहा है.
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फिर ग्रामीणों को डराने लगी गंगा
भागलपुर: गंगा नदी का जलस्तर मंगलवार की दोपहर से फिर से बढ़ने लगा है. इससे ग्रामीणों की चिंता बढ़ गयी है. नदी के किनारे स्थित खेतों में बोयी गयी फसलों को गंवाने के बाद बाबूपुर के ग्रामीणों को बीते साल की तरह एक बार चिंता सताने लगी है कि कहीं उनका घर एक बार फिर […]
भागलपुर: गंगा नदी का जलस्तर मंगलवार की दोपहर से फिर से बढ़ने लगा है. इससे ग्रामीणों की चिंता बढ़ गयी है. नदी के किनारे स्थित खेतों में बोयी गयी फसलों को गंवाने के बाद बाबूपुर के ग्रामीणों को बीते साल की तरह एक बार चिंता सताने लगी है कि कहीं उनका घर एक बार फिर बाढ़ के पानी में न घिर जाये.
कटाव के निशाने पर इंजीनियरिंग कालेज : गंगा नदी के जलस्तर में हो रही वृद्धि से नदी का पानी एक बार फिर इंजीनियरिंग कालेज के हॉस्टल को निगलने को आतुर दिखने लगा है. कालेज के हॉस्टल को बचाने के लिए जिन तथाकथित बालू भरी बोरियों का इस्तेमाल किया जा रहा है, वह वास्तव में बलुआ मिट्टी है.
तो बाबूपुर मंठा टोला में 70 साल पहले के मार्ग से बहेगी गंगा ! : जिस तरह से गंगा नदी लगातार काटते हुए बाबूपुर मंठा टोला के समीप आती जा रही है, उससे यहां के बुजुगोर्ं के मन में यह भय समाने लगा है कि गांव से कुछ दूरी पर बह रही गंगा कहीं सात दशक पहले जिस मार्ग(मंठा टोला स्थित कच्चे मार्ग से सटे) से बह रही थी, उसी राह पर न बहने लगे. गांव के बाहर कच्चे मार्ग पर बैठे एक बुजुर्ग ने बताया कि देश की आजादी से पूर्व गंगा नदी मंठा टोला के निकट से बहती थी. एक बुजुर्ग का कहना था कि जिस तरह गंगा नदी हर साल कटाव करते हुए गांव की ओर बढ़ रही हैं, उससे तो यही लग रहा है कि गंगा पुन: अपनी पुरानी राह पर बहने लगेगी. अगर ऐसा हुआ तो यहां रहनेवाली अधिकांश आबादी की जमीन और खेत गंगा की कोख में समा जायेगा.
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