* रमजान का महीना इनसान को सिखाता है सब्र करना
भागलपुर : रमजान का पवित्र माह तकवा हासिल करने के लिए है. तकवा का अर्थ होता है अल्लाह से डरना. रोजा बुराइयों से दूर रखता है. अल्लाह तआला ने रमजान के पाक महीने में कुरान पाक को उतारा. सुबह सादिक से लेकर सूर्य ढलने तक भूखे–प्यासे रहने का नाम रोजा है. इस पाक महीने को तीन अशरे में बांटा गया है.
वह है बरकत, रहमत और मगफिरत का. उक्त बातें सुल्तानुल मशाइख मशाकचक के सज्जादानशीन शाह पीर रफीक आलम ने कही. उन्होंने बताया कि रोजा हमें सब्र करना सिखाता है और सब्र का बदला अल्लाह की रजा है.
सुबह सादिक से लेकर सूर्य ढलने तक इनसान तमाम बातों को सहता है ताकि अल्लाह उनसे राजी हो जाये. दिन में रोजा और रात में विशेष नमाज तरावीह पढ़ी जाती है, जो सुन्नत है.
* हजारों रात से बेहतर एक रात
रमजान के महीने में एक रात ऐसी आती है जिसे शब–ए–कदर की रात कहते हैं. यह रात हजारों रात से बेहतर है. इस रात में अल्लाह की रजा व सबाब की उम्मीद से जो रात भर जागते हैं, उसको अल्लाह की रजा मिलती है. इस रात में हजरत जिबरइल अलैह सलाम सत्तर हजार फरिश्तों के साथ जमीन पर उतरते हैं और इबादत कर रहे लोगों की दुआ पर आमीन कहते है.
* एहतेकाफ की फजीलत
रमजान के आखिर अशरे में एहतेकाफ किया जाता है. एहतेकाफ का मतलब मसजिद के चहारदीवारी के अंदर या फिर घर के एक कोने में एकाग्र होकर खुदा की इबादत में लीन होना है. इस दौरान सभी लोगों से रिश्ते नाते को भुला कर सिर्फ खुदा की इबादत में मशगूल रहना है. अल्लाह खुद इसका इनाम देते हैं. लोगों को एहतेकाफ के इनाम का पता चल जाये, तो शायद लोग साल भर एहतेकाफ करना नहीं छोड़ेंगे.
* ईद के चांद का महत्व
ईद के चांद रात का भी इसलाम में बड़ा महत्व है. इस रात को लैलेतुल जा–ए–जा यानी बदले की रात कहते है. रमजान माह में किये गये इबादतों का बदला अल्लाह इस रात अता करते है. इसके अलावा जिन लोगों पर अल्लाह ने जहन्नुम वाजिब करार दिया है. ऐसे लोगों की भी इस रात में अल्लाह माफ कर देते है.