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बीएयू के टिश्यू कल्चर लैब में अब बांस व स्ट्राबेरी के पौधे होंगे तैयार
भागलपुर : बिहार कृषि विश्वविद्यालय (बीएयू) के टिश्यू कल्चर लैब में अब बांस और स्ट्राबेरी के पौधे तैयार होंगे. लैब में परखनली विधि से बांस और स्ट्राबेरी के पौधे तैयार किये जाएंगे. लैब में फिलहाल केले के पौधे तैयार कर पूर्व बिहार, कोसी व सीमांचल में केले की बंपर पैदावार को बढ़ावा दिया जा रहा […]
भागलपुर : बिहार कृषि विश्वविद्यालय (बीएयू) के टिश्यू कल्चर लैब में अब बांस और स्ट्राबेरी के पौधे तैयार होंगे. लैब में परखनली विधि से बांस और स्ट्राबेरी के पौधे तैयार किये जाएंगे. लैब में फिलहाल केले के पौधे तैयार कर पूर्व बिहार, कोसी व सीमांचल में केले की बंपर पैदावार को बढ़ावा दिया जा रहा है. बीएयू के प्रसार शिक्षा निदेशक डॉ आरके सोहाने ने बताया कि स्ट्रॉबेरी और बांस के टिश्यू कल्चर लैब का निर्माण दो करोड़ की राशि से की गयी है. प्रयोग के तौर पर बीएयू के बगान में दोनों फसलों के बीज तैयार किये गये हैं.
बगानों की जगह इनके पौधे को अब लैब में तैयार कर किसानों में बहुतायत रूप से वितरण कराया जायेगा. बिहार के किसानों को दोनों प्रजाति की खेती-बागवानी के लिए प्रेरित किया जायेगा. खासकर स्ट्रॉबेरी का उपयोग खाद्य पदार्थ के निर्माण में बहुतायत हो रहा है. इसके फ्लेवर से बिस्टिक, आइसक्रीम, केक व अन्य उत्पाद बनाये जा रहे हैं. वहीं बांस की खेती को लेकर किसानों में रूझान बढ़ा है. कोसी सीमांचल जैसे बाढ़ ग्रस्त इलाके व तटबंध की सुरक्षा के लिए बिहार सरकार करोड़ों बांस के पौधे लगा रही है.
सरकार और स्थानीय किसानों को हर संभव मदद बीएयू से मिलेगा. दोनों नकदी फसल हैं, इससे किसानों की आय में बढ़ोतरी होगी. डॉ सोहाने ने बताया कि बीएयू के स्थापना के आठ वर्ष पूरे हो चुके हैं, इस दौरान विश्वविद्यालय ने कृषि के क्षेत्र में नया मुकाम हासिल किया है.
देश के 63 कृषि विश्वविद्यालयों में बीएयू की 21वीं रैंकिंग : बीएयू को देश के 63 कृषि विश्वविद्यालयों की रैंकिंग में 21वां स्थान मिला है. महज अाठ वर्षों की मेहनत के बाद आइसीएआर ने इस उपाधि से बीएयू को नवाजा है. उन्होंने बताया कि कौशल विकास के क्षेत्र में बीएयू ने शानदान प्रदर्शन किया है.
अबतक कृषिकार्य को बढ़ावा देने वाले 700 ट्रेनरों को ट्रेनिंग बीएयू में दिया गया है. साथ ही 1209 युवाओं को 41 उत्पाद की खेती और उत्पादन की ट्रेनिंग दी गयी. बीएयू की कई शैक्षणिक और शोध संस्थान हैं. इनमें 6 कृषि महाविद्यालय, 12 रिसर्च स्टेशन, 20 किसान विकास केंद्र हैं. सभी संस्थान बिहार के 25 जिले में संचालित हो रहे हैं.
कतरनी, जर्दालु आम को मिला जीई टैग
बीएयू की खास उपलब्धियों में कतरनी धान, जर्दालु आम और मगही पान को जीई टैग यानि भौगोलिक सूचकांक का दर्जा दिलाना है. डॉ सोहाने ने बताया कि इन उत्पादों को विशेष क्षेत्र में उत्पादन की मान्यता मिली है. शाही लीची को जीई टैग दिलाने के लिए बीएयू प्रयासरत है. जल्द ही इसे भी मान्यता मिल जायेगी.
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