भागलपुर: संत सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंसजी महाराज की तपोभूमि महर्षि मेंहीं आश्रम कुप्पा घाट में लगभग सालों से साधु-संन्यासियों में विवाद चल रहा है. इस बीच हत्या भी हुई, एक-दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप भी लगाया गया. मामला पुलिस के संज्ञान में भी है, लेकिन विवाद थमने के बजाय और गहराता चला गया. फिलहाल साल भर से विवाद ने तूल पकड़ लिया है.
भोजन, कपड़ा, दूध, सर्फ-साबुन समेत अन्य सुविधाओं को लेकर साधु-संन्यासियों के दो गुटों में तकरार चल रहा है. मारपीट से लेकर जान मारने तक की साधु-संन्यासियों को धमकी भी मिल चुकी है.
आचार्य श्री महर्षि हरि नंदन परमहंसजी महाराज के नाम को भी घसीटा गया है. मामला खुफिया विभाग के पास है, लेकिन विवाद थमने के प्रति अबतक सकारात्मक पहल नहीं दिख रही है. अखिल भारतीय संतमत सत्संग महासभा भी गंभीर नहीं है. तो क्या फिर किसी कि हत्या के बाद ही महासभा से लेकर पुलिस महकमा संज्ञान लेगा. आश्रम में न तो मर्यादा का उल्लंघन करने वाले साधुओं पर आरोप सिद्ध हो सका और न ही दूसरे पक्ष के आरोपी साधुओं पर कोई कार्रवाई हो सकी है.
पुलिस बल मांगा तो 107 की कार्रवाई
व्यवस्थापक स्वामी स्वरूपानंद जी महाराज ने बताया कि पिछले साल अगस्त में महेंद्र बाबा को आश्रम से निकालने के लिए कमिश्नर को प्रतिवेदन सौंपा. इसके बाद दोनों पर 107 की कार्रवाई हो गयी, तो खुफिया विभाग को प्रतिवेदन सौंपा गया है. उन्होंने बताया कि आश्रम के नियम-शर्त में स्पष्ट है कि कोई भी साधु-संन्यासी मर्यादा का उल्लंघन करता है. या फिर आश्रम के हित में काम नहीं करता है, तो उन्हें आश्रम से बाहर कर दिया जाये. इसको लेकर ही पुलिस बल की मांग की गयी थी. आरोप लगाया गया था कि महेंद्र बाबा झूठ बोलने व र्दुव्यवहार करने समेत चोरी करता है.
धमकी मामला: खुफिया विभाग खामोश
व्यवस्थापक ने बताया कि एक माह पहले मीडिया प्रभारी सह शांति संदेश के संपादक डॉ स्वामी गुरु प्रसाद को मोबाइल पर धमकी मिली थी. इस मामले में व्यवस्थापक होने के नाते उन्होंने कार्रवाई की मांग को लेकर आवेदन दिया था, जो खुफिया विभाग को दिया गया है.
महेंद्र बाबा एक माह से नहीं कर रहे भोजन
महेंद्र बाबा ने बताया कि पिछले एक माह से आश्रम के भोजनालय में भोजन नहीं कर रहे हैं. रूखा-सूखा ही सही, लेकिन मांग-चांग कर अपने भोजन की व्यवस्था करते हैं. उन्होंने बताया कि महर्षि संतसेवी परमहंसजी महाराज के समयकाल 25 साल से भोजनालय से कमरे पर लाकर भोजन किया करते थे.
अब कहा जा रहा है कि नियम बना है कि भोजनालय में बैठ कर भोजन करे, जो न्यायोचित नहीं है. जबकि गुरु निवास में भोजनालय से भोजन ढो कर साधु-संन्यासियों के लिए लाया जाता है. नियम सब के लिए बराबर होनी चाहिए. बूढ़ा होने के नाते सीढ़ी उतरना भी तो मुश्किल है. इस कारण अपना भोजन-पानी की व्यवस्था पर जीवित है.