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मर्चि की खेती कर अंतरराज्यीय स्तर पर परचम लहरा रहे हैं सूजा के किसान (पेज नंबर चार खेती-बारी)

मिर्च की खेती कर अंतरराज्यीय स्तर पर परचम लहरा रहे हैं सूजा के किसान (पेज नंबर चार खेती-बारी) तसवीर-मिर्च की खेती के साथ किसानतसवीर-1बेगूसराय (नगर). बेगूसराय सदर प्रखंड का इलाका सब्जी की खेती के साथ-साथ कई उन्नत खेती के लिए वर्षों से प्रसिद्ध रहा है. यहां के किसान अपने सोच व मिहनत से राज्य स्तर […]

मिर्च की खेती कर अंतरराज्यीय स्तर पर परचम लहरा रहे हैं सूजा के किसान (पेज नंबर चार खेती-बारी) तसवीर-मिर्च की खेती के साथ किसानतसवीर-1बेगूसराय (नगर). बेगूसराय सदर प्रखंड का इलाका सब्जी की खेती के साथ-साथ कई उन्नत खेती के लिए वर्षों से प्रसिद्ध रहा है. यहां के किसान अपने सोच व मिहनत से राज्य स्तर पर अपनी खेती का परचम लहराते हुए अन्य किसानों के लिए भी प्रेरणास्रोत बन रहे हैं. सदर प्रखंड के दर्जनों गांव आज भी विभिन्न प्रकार की खेती के माध्यम से अपने परिवार को खुशहाल बनाये हुए हैं. इसी के तहत सदर प्रखंड का सूजा गांव भी खेती के लिए मशहूर माना जाता है. यहां के किसान समय के अनुसार खेती कर अंतरराज्यीय स्तर पर परचम लहरा रहे हैं. बताया जाता है कि मोटी मिर्च की खेती में सूजा के किसान का अहम स्थान है. यहां के किसान अपने खेतों में उपजाये गये मिर्च की फली को खगड़िया, समस्तीपुर एवं आस-पास के जिलों में निर्यात करते हैं. मोटी मिर्च का सबसे अधिक प्रयोग लोग आचार बनाने के काम में करते हैं. स्थानीय लोग भोजन के स्वाद के लिए इसे भुन कर भी बड़े चाव से खाते हैं. इसकी खेती इस गांव में सैकड़ों किसान बड़े ही उत्साह के साथ कर रहे हैं. इस फसल की खेती के संबंध में किसान उमेश साह, इंद्रदेव साह, शंकर शर्मा एवं बनारसी साह बताते है कि सैकड़ों किसान दो से चार एकड़ में मिर्च की खेती कर रहे हैं. इसके लिए जुलाई माह में बीज बोकर पौधा तैयार किया जाता है. फसल लगने से पूर्व एक फसल की अवधि तक खेत खुली कर सात बार जुताई कर अंतिम जुताई के समय प्रति बीघा एक बोरी डीएपी, 500 ग्राम बोरोन, 5 किलोग्राम सल्फर, 5 किलोग्राम चूना डाला जाता है. खेत तैयार कर अगस्त-सितंबर माह में पौधा से पौधा की दूरी दो फुट एवं पंक्ति से पंक्ति की दूरी ढाई फुट पर पौधों की रोपनी की जाती है. सात महीने के फसल चक्र में पांच से नौ बार निकौनी एवं सिंचाई की जाती है. दो-तीन बार यूरिया, डीएपी एवं पोटाश का डोज दिया जाता है. इसके पौधे में भंगुरी, उखड़ा, गलना एवं पौधों का पीला होना जैसे रोग लगते हैं. इसके उपचार के लिए बायो 303, जुरू केश पल्स एवं नैनो बिगर जैसी दवा का छिड़काव किया जाता है. मिर्च की इस फसल को पूरे बहियार में नील गाय काफी क्षति पहुंचा रही है. यदि सरकार इस दिशा में सकारात्मक पहल करे, तो नि:संदेह किसानों के लिए यह फसल अच्छी आय का जरिया बन सकता है. इस फसल के साथ अंडी व सौंफ की खेती भी शुद्ध लाभ के रूप में बच जाता है.

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