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सिमटता जा रहा है 150 वर्ष पुराना बौंसी मेला

बौंसी : पिछले 150 सालों से बौंसी मेला का आयोजन मंदार क्षेत्र में किया जा रहा है. अंगक्षेत्र के इस मेले को सोनपुर मेले के बाद बिहार का सबसे बड़ा मेला जाना जाता है. मेले को लेकर महिनों से मंदार क्षेत्र सहित आस पास के जिलों में भी लोगों के बीच उत्सुकता बनी रहती है […]

बौंसी : पिछले 150 सालों से बौंसी मेला का आयोजन मंदार क्षेत्र में किया जा रहा है. अंगक्षेत्र के इस मेले को सोनपुर मेले के बाद बिहार का सबसे बड़ा मेला जाना जाता है. मेले को लेकर महिनों से मंदार क्षेत्र सहित आस पास के जिलों में भी लोगों के बीच उत्सुकता बनी रहती है कि इस बार मेला जाकर परिवार सहित आनंद उठाएंगे. ज्यों ज्यों मेला का दिन नजदीक आता है

लोगों पर मेले का रंग चढ़ने लगता था लेकिन पिछले सात सालों के अंदर बौंसी मेला का आयोजन फीका पड़ने लगा. खास बात यह रही कि जब मेला का उद्घाटन पांच साल पूर्व बिहार के तत्कालीन सीएम नीतीश कुमार ने किया तो क्षेत्र के लोगों में यह उम्मीद जगने लगी कि अब तो मेला का कायाकल्प होगा और मेले का स्वरुप बड़ा और बेहतर होगा. परंतु दु:खद बात तो यह है कि मेला दिनोंदिन और भी छोटा होता गया और हालात आज यह है कि मेला एक माह से घटकर एक सप्ताह का होकर रह गया. सरकारी तौर पर तो महज पांच दिनों तक ही सिमट गया. पुराना ढर्रे पर मेले को आयोजित करने का बीड़ा जो जिला प्रषासन ने उठाया उसमें आज तक कोई तब्दीली नहीं की गयी.

जर्जर मीना बाजार की मरम्मती का काम इस साल किया जा रहा है लेकिन वह आधे भाग का निर्माण होगा. मेले में ना तो अन्य जगहों से हस्तशिल्पकलाकारों का आमंत्रित किया जाता है और ना ही स्थानीय स्तर के कलाकारों को पुरस्कृत किया जाता है. बस किसी प्रकार मेले को आयोजित कर खानापूरी करने का प्रयास होता रहा है. मेला क्षेत्र जिसका क्षेत्रफल काफी बड़ा था आज सिमटकर बड़ा हाट जितना रह गया है. मेले का जमीन का भी अतिक्रमण हो गया है उसका आज तक मापी तक नहीं कराया गया कि कितना वर्ग मीटर में बौंसी मेला का भूभाग है. दुसरी समस्या यह है कि मेला में किसानों को मीना बाजार में अपने अपने प्रदर्षण को रखने एवं प्रदर्षित करने का उत्साह रहता है मेला समापन के दिन उन किसानों को पुरस्कृत किया जाता था. कुछ सालों से इसे भी किसी प्रकार महज खानापूरी कर लिया जाता है. मीना बाजार में तो कृषि विभाग के द्वारा पहले हर साल उन्नत किस्म के पौधों को डेमास्टे्रशन किया जाता था जिससे क्षेत्र के किसान नए फसलों के बारे में जानकारी प्राप्त करते थे लेकिन पिछले एक दशक से इस प्रदर्षनी में आलु गोभी, मटर, मक्का, ब्रोकली, शलजम आदि का प्रदर्शनी में किसी प्रकार से उगाकर इसे किसानों को दिखा दिया जाता है जिससे कि मीना बाजार को लेकर किसानों में भी कोई उत्सुकता नहीं रहती है. वह भी यहां आकर नीरस होकर चले जाते हैं. पूरे देश भी में जितनें जगहों पर मेला का आयोजन किया जाता रहा है उन सभी मेला का अस्तित्व में वृद्घि हुई है और उसका स्वरुप भी बढ़ा है लेकिन बौंसी मेला स्वरुप दिन प्रतिदिन सिमटता ही जा रहा है. स्थानीय जनप्रतिनिधियों के द्वारा अगर इस दिशा में पहल नहीं किया गया तो हमारी आने वाली पीढि़ बौंसी मेले को केवल इतिहास के आईने में ही देख पाएगी.

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