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ऊपर पहाड़ नीचे रोड़िया हो भोले बाबा

सुईया पहाड़ के इस पार से उस पार तक करीब 10 किमी पथरीली पगडंडी पर लहू लुहान हो जाते हैं कांवरियों के पांव. मनोज उपाध्याय बांका : उपर पहाड़ नीचे रोड़िया हो भोले बाबा, कैसे पहुंचब तोहरे द्वार… कांवरिया पथ पर दुर्गम सूईया पहाड़ की पथरीली पगडंडी पर चढ़ाई करते हुए पैरों से लहू लूहान […]

सुईया पहाड़ के इस पार से उस पार तक करीब 10 किमी पथरीली पगडंडी पर लहू लुहान हो जाते हैं कांवरियों के पांव.

मनोज उपाध्याय

बांका : उपर पहाड़ नीचे रोड़िया हो भोले बाबा, कैसे पहुंचब तोहरे द्वार… कांवरिया पथ पर दुर्गम सूईया पहाड़ की पथरीली पगडंडी पर चढ़ाई करते हुए पैरों से लहू लूहान कांवरियों की यह आर्त्तनाद सुनकर किसी के भी रोंगटे खड़े हो सकते हैं. लेकिन आदिदेव महादेव बाबा बैद्यनाथ की भक्ति में लीन कांवरियों को इससे बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ता. उन्हें तो बस बाबा से मिलने और साथ ले जाये जा रहे गंगा जल को उन्हें अर्पित करने की जल्दी होती है. दरअसल भक्ति और समर्पण का यह अतिरेक ही उनके जख्मों और पीड़ा में मरहम का काम करता है.

बेहद दुर्गम होने के बाद भी सूईया पहाड़ को पार कर कांवरिया भक्त बाबा धाम की ओर अग्रसर होते चले जाते हैं. यों तो बांका जिले में पड़ने वाला संपूर्ण कांवरिया पथ दुर्गम पहाड़ों और जंगलों से होकर गुजरता है. लेकिन सुईया पहाड़ी की चढ़ाई कांवरियों के लिए अग्नि परीक्षा होती है. इस क्षेत्र में करीब 10 किलोमीटर कांवरिया पथ नुकीले पत्थरों से आच्छादित है. यह खड़ी चढ़ाई वाला पथ है. संकीर्ण पगडंडी, खड़ी चढ़ाई और नुकीले पत्थरों से बावस्ता कांवरिया शिव भक्त बाबा बैद्यनाथ का स्मरण, नाम जप एवं बोलबम के महामंत्र के भरोसे ही इस पथ की यात्रा तय कर पाते हैं. हालांकि सूईया पहाड़ी के उस पार पहुंचते ही कांवरिया निढाल हो जाते हैं जहां उन्हें विश्राम की जरूरत होती है.

यही वजह है कि बांका जिले में स्थित कांवरिया पथ पर ज्यादातर निजी सेवा शिविर सूईया पहाड़ी से आगे हड़खार तक लगाये जाते हैं. चिकित्सा कैंप भी इसी क्षेत्र में ज्यादा हैं. सुलतानगंज से बाबाधाम के बीच कांवरियों को करीब 105 किलोमीटर की नंगे पांव पैदल यात्रा करनी पड़ती है. कंधे पर लचकते दमकते रूनझून संगीत पैदा करते कांवरियों के शरीर पर वस्त्र के नाम पर तो बहुत ज्यादा नहीं होते लेकिन कम से कम पांच किलो का अतिरिक्त बोझ उनपर जरूर होता है. कांवरिया पथ का दो तिहाई हिस्सा बांका जिले में पड़ता है. हालांकि कांवरिया पथ दो राज्यों बिहार एवं झारखंड के भागलपुर, मुंगेर, बांका एवं देवघर जिलों में पड़ता है. लेकिन सबसे बड़ा और दुर्गम हिस्सा बांका जिले में होने की वजह से प्रशासनिक स्तर पर सर्वाधिक व्यवस्था की जिम्मेवारी भी इसी जिले के प्रशासनिक महकमे की होती है. सुलतानगंज से चल कर कांवरिया मुंगेर जिले के कुमरसार के समीप नदी पार करने के बाद धौरी के पास बांका जिले की सीमा में प्रवेश करते हैं. धौरी से आगे बढ़ने पर जिलेबियामोड़ के पास से पहाड़ों और जंगलों से उनका सामना होता है. इसके बाद हालांकि कुछ स्थानों पर रास्ते सुगम भी हैं, लेकिन आम तौर पर कांवरियों को दुर्गम जंगलों और पहाड़ों से ही होकर गुजरना होता है. इस क्षेत्र में कांवरियों को अपेक्षाकृत ज्यादा सुविधा और सुरक्षा की जरूरत होती है. लेकिन विडंबना है कि सरकारी से लेकर निजी स्तर पर कांवरियों के लिए सबसे कम सुविधा और सुरक्षा इंतजाम इसी क्षेत्र में होते हैं.

गोड़ियारी नदी : यहां कांवरियों का मिट जाता है दर्द

कटोरिया . बिहार-झारखंड बॉर्डर पर स्थित दुम्मा से मात्र पांच किलोमीटर पहले ही बांका जिला क्षेत्र का प्रसिद्ध गोडि़यारी नदी कांवरियों को सुकून दिलाती है. सुल्तानगंज से बाबाधाम की पैदल यात्रा करने वाले अधिकांश शिवभक्त यहां थकान देर करने के लिए दो से तीन घंटे का वक्त जरूर बिताते हैं. इस क्रम में वे यहां कांवर यात्रा से थोड़ा अलग हट कर सैर-सपाटा करते हुए जलक्रीड़ा व फोटोग्राफी का भरपूर आनंद लेते हैं. कल-कल करती गोडि़यारी नदी के बीच में ही बाजार सजती है.

जिसमें दर्जनों की संख्या में चाट-चाउमिन, चाय, नास्ता, होटल के अलावा भुट्टा की दुकानें लगी रहती है. जो कांवर यात्रा कर रहे कांवरियों को ठहरने को मजबूर कर देती है. नदी किनारे स्थित दर्जनों स्टुडियो के सैकड़ों कैमरा मैन दिन भर व्यस्त ही नजर आते हैं. यहां स्टुडियो संचालकों द्वारा फोटोग्राफी हेतु कांवरियों को आकर्षित करने हेतु घोड़ा को सजा कर रखा जाता है. इसके अलावा उनके द्वारा झट से कांवरियों को देवी-देवताओं के वेश में बना दिया जाता है.

गोडि़यारी नदी के स्टुडियो में श्रद्धालुओं को हाथों-हाथ फोटो भी मिल जाता है. सुल्तानगंज से बाबाधाम तक के कांवरिया मार्ग में गोडि़यारी नदी में स्टुडियो का व्यवसाय सबसे अधिक होता है. यहां देवघर के दर्जनों स्टुडियो के सैकड़ों कैमरामैन को एक अच्छा रोजगार मिलता है. गोडि़यारी नदी के बीच में ही भुट्टा का बाजार लगता है. वैसे गोडि़यारी नदी पार करने हेतु एक बड़ा पुल भी बना हुआ है. बावजूद कांवरिया बीच नदी की धार से होकर ही कांवर यात्रा करते हैं. अत्यधिक वर्षा होने पर ही श्रद्धालु पुल का सहारा लेते हैं.

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