कटोरिया : कच्ची कांवरिया पथ की मरम्मत हेतु संवेदकों द्वारा गुरुवार से बालू गिराने का कार्य शुरू हुआ है. लेकिन बालू की क्वालिटी काफी घटिया है. मिट्टी युक्त बालू से मामूली बारिश में भी कच्ची पथ कीचड़मय हो जायेगा. जिसमें नंगे पांव चलने में कांवरियों को काफी कठिनाईयों का सामना करना पड़ेगा. फिलहाल जमुआ मोड़ […]
कटोरिया : कच्ची कांवरिया पथ की मरम्मत हेतु संवेदकों द्वारा गुरुवार से बालू गिराने का कार्य शुरू हुआ है. लेकिन बालू की क्वालिटी काफी घटिया है. मिट्टी युक्त बालू से मामूली बारिश में भी कच्ची पथ कीचड़मय हो जायेगा. जिसमें नंगे पांव चलने में कांवरियों को काफी कठिनाईयों का सामना करना पड़ेगा. फिलहाल जमुआ मोड़ से दक्षिण तुलसीवरण गांव की ओर एवं उत्तर में राजबाड़ा, डुमरिया तक बालू गिराने का काम शुरू किया गया है.
कोल्हुआ के निकट महिला मजदूरों द्वारा रास्ते से ईंट-पत्थर को हटाने का काम भी कराया जा रहा है. ज्ञात हो कि पिछले वर्ष कांवरिया पथ में संवेदकों की लापरवाही के कारण विश्वकर्मानगर, दुल्लीसार, तपरतिया आदि जगहों में समूचे कच्ची पथ में फिसलन हो गयी थी. जिससे होकर चलने में कठिनाई होने पर श्रद्धालु या तो बगल खेत होकर या फिर पक्की सड़क होकर चलने लगते थे. यदि विभागीय अधिकारियों ने इस ओर शुरू से ध्यान नहीं दिया,
तो पिछले साल की समस्या से इस बार भी कांवरियों को जूझना होगा. इधर कांवरिया पथ के किसी भी सरकारी धर्मशाला में अब तक कार्य का आरंभ नहीं हुआ है. जबकि मेला के शुभारंभ में अब सिर्फ उन्नीस दिन ही शेष रह गया है. आगामी 20 जुलाई से इस रास्ते से होकर प्रत्येक दिन लाखों की संख्या में देश-विदेश के तीर्थयात्री पैदल कांवर यात्रा करेंगे. सभी बुनियादी सुविधाओं को ससमय बहाल कराना जिला प्रशासन के लिए कड़ी चुनौती भी है.
सिर्फ दो सप्ताह में कैसे होगी तैयारी
श्रावणी मेला बिहार और झारखंड के 4 जिलों को जोड़ता है. भागलपुर, मुंगेर, बांका और देवघर जिले में पड़ने वाले कांवरिया पथ पर यह मेला लगता है. इस पथ का करीब दो तिहाई हिस्सा बांका जिले में पड़ता है. सुल्तानगंज से आगे बढ़ने पर मुंगेर जिले के असरगंज के समीप कुमरसार नदी पार करने के बाद धोरी से शुरू होकर चांदन प्रखंड के गोड़ियारी नदी तक करीब 70 किलोमीटर के आसपास कांवरिया पथ बांका जिले में पड़ता है. लिहाजा श्रावणी मेले की तैयारियों को लेकर सर्वाधिक जिम्मेदारी भी बांका जिला प्रशासन की ही होती है. लेकिन इस जिम्मेदारी को जिला प्रशासन किस तरह निभाता है इसका ताजा उदाहरण है श्रावणी मेले की तैयारियों को लेकर अब तक की गई तैयारियां. बांका जिला अंतर्गत पड़ने वाले कांवरिया पथ की स्थिति जस की तस है. जबकि सिर्फ 20 दिन बाद यह पथ शिव भक्तों से गुलजार होने वाला है. कांवरिया पथ की स्थिति खतरनाक बनी हुई है. कच्ची पथ होने की वजह से कई जगहों पर यह पथ क्षरित होकर उबड़ खाबड़ हो चुका है. वर्षा के पानी से धुल कर मिटटी बह गई है जिससे कांवरिया पथ पर पत्थर और नुकीले रोड़े निकले हुए हैं. जो स्थिति कांवरिया पथ की है उससे नहीं लगता कि सिर्फ 15 दिनों में इसे चलने लायक बनाया जा सकता है. फिर भी जिला प्रशासन का दावा है कि कांवरिया पथ पर इस बार भक्तों को परेशानियों का सामना नहीं करना पड़ेगा, तो लोग भी नहीं समझ पा रहे हैं कि आखिर यह दावा किस बिना पर किया जा रहा है.