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हाटों को प्रशासनिक उपेक्षा का ग्रहण

सिमट रहे हैं हाट. आवश्यक जरूरतों की पूर्ति कर संस्कृति संजोता है गांव का हटिया बांका जिले में कभी बेहद समृद्ध रही ग्रामीण हाटों की परंपरा क्षरित हो रही है. प्रशासन की ओर से हाटों की संरक्षा एवं संवर्द्धन के लिए प्रशासनिक स्तर पर कोई उपाय नहीं किये जा रहे हैं. बांका : मेले के […]

सिमट रहे हैं हाट. आवश्यक जरूरतों की पूर्ति कर संस्कृति संजोता है गांव का हटिया

बांका जिले में कभी बेहद समृद्ध रही ग्रामीण हाटों की परंपरा क्षरित हो रही है. प्रशासन की ओर से हाटों की संरक्षा एवं संवर्द्धन के लिए प्रशासनिक स्तर पर कोई उपाय नहीं किये जा रहे हैं.
बांका : मेले के बाद हाट ही वह जगह है जिसे स्थानीय सामाजिक और आर्थिक संस्कृति का प्रतिबिंब माना जाता है. परंपराओं से हाट सामाजिक चिंतन, सद्भाव, परस्पर मेल जोल और आपसी सौमनस्य का भी सिंचन स्थल रहे हैं. हाट ही कभी वैचारिक क्रांति की फैक्ट्रियां हुआ करती थी. इतिहास गवाह है कि उर्दू जैसी तहजीबी भाषा का उद्भव हाटों में हुआ. सौभाग्य की बात है कि बांका जिले में हाटों की एक समृद्धि परंपरा रही है.
लेकिन आज दुर्भाग्य इस बात का है कि कभी इस जिले की समृद्ध ग्रामीण संस्कृति की पहचान रहे हाटों की परंपरा का यहां तेजी से क्षरण हो रहा है. पिछले दो दशकों के दौरान जिले के दो दर्जन से ज्यादा पारंपरिक हाथ अब इतिहास बन गये हैं. हाटों के संरक्षण और संवर्द्धन की दिशा में प्रशासनिक स्तर पर कुछ भी नहीं किया जा रहा है. ज्यादातर हाट निजी स्तर पर लगाये जा रहे हैं. जो हाट सरकारी बंदोबस्त में हैं, उनकी सिर्फ राजस्व उगाही के लिए बंदोबस्ती की जा रही है. जिले में आज भी अगर ग्रामीण हाटों की परंपरा जीवित है
तो यह अपनी परंपराओं के प्रति ग्रामीणों के लगाव का प्रतिफल है. जिले में ग्रामीण हाटों की परंपरा के क्षरण की मुख्य वजह आज यही है कि सरकारी महकमों ने इन्हें राजस्व उगाही का जरिया तो माना, लेकिन इनके संरक्षण और संवर्द्धन के लिए किसी ठोस योजना के निर्माण की दिशा में उनकी ओर से कभी पहल नहीं हुई. जिले में अब भी 150 से ज्यादा ग्रामीण आज जीवंत स्थिति में हैं. ये हाट साप्ताहिक दो दिन लगते हैं.
हाटों में सब्जी और अनाज से लेकर गार्हस्थ दिनचर्या के तमाम जरूरी समान एवं उपकरणों सहित माल मवेशी तक के कारोबार होते हैं. हाट के दिन आस पास के गांवों में उत्सव जैसा माहौल होता है. हाटों की प्रतिष्ठा मेले से कम नहीं आंकी जाती. लोग छोटी – छोटी जरूरतों के लिए भी हाटों में आते हैं.
सुविधााएं मिले, तो संवरेगा गांव
अभी मौजूद है जिले में डेढ़ सौ से ज्यादा हाट
बांका जिले में अब भी दो दर्जन से ज्यादा बड़े और जीवंत हाट मौजूद है. हाटों की संख्या अलबत्ता डेढ़ सौ से अधिक है. लेकिन ज्यादातर हाट स्थानीय ग्रामीणों की घरेलू जरूरतों को पूरी करते हैं. समुखिया हाट, पवई, महराणा, ककबारा, धरमपुर, भरको, कुर्मा, विजयहाट, पुनसिया, धोबनी हाट, मोदी हाट, मोती हाट, श्यामबाजार, मंगरा, करझौसा, राधा नगर, केडि़या, जमदाहा, धोरैया, साहबगंज, खेसर हाट आदि ऐसे हाट हैं जहां बड़े पैमाने पर कारोबार होता है.
अनाज की बड़ी मंडियां है जिले के दो दर्जन हाट
जिले के कुछ हाट अनाज के कारोबार के लिए प्रसिद्ध है. इनमें समुखिया हाट, पवई, ककबारा, विजय हाट, श्याम बाजार, बाराहाट, मोती हाट, कुर्मा हाट, भरको एवं मोदी हाट आदि प्रमुख हैं. विजय हाट, बाराहाट तथा मोदी हाट को इस जिले की हापुड़ मंडी भी कहा जाता है.
इन हाटों में खाद्यान्न का कारोबार करने जिले भर के व्यापारियों के अलावा पड़ोसी जिलों के भी कारोबारी पहुंचते हैं. लेकिन दुर्भाग्य है कि इन हाटों की समृद्ध परंपरा के बावजूद जिले में प्रशासनिक स्तर पर किसानों और व्यापारियों के साथ – साथ खरीददारों की सुविधा और सुरक्षा के लिए कोई इंतेजाम नहीं किये गये हैं. अगर ये हाट और यहां होने वाले कारोबार जिंदा है तो इसका श्रेय कारोबारियों और ग्रामीणों को जाना चाहिए.

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