बांका: गांव-गांव और शहर-शहर में विवाह, लगन की धूम मची है. साल 2013 भी शुभ लगन के हिसाब से सफल रहा. अमीर से गरीब बेटी की कन्यादान भी खूब हुई. प्रेम विवाह, कोर्ट मैरेज व अरेंज मैरेज की शहनाई का गवाह बांका के होटल, रेस्टोरेंट विवाह भवन व बाबूल के घर बने सामाजिक आंकड़े की जो तसवीर पेश की गयी, उसके अनुसार लगन के मौसम में एक दिन में सैकड़ों लोगों ने अलग-अलग सात फेरे पूरे किये. मगर इन सबकी बात सरकारी फाइलों से जोड़ी जाये तो वहां शहनाई की गूंज दम तोड़ती नजर आती है. जिसका ताजा उदाहरण साल 2013 में कल्याण विभाग के अंतरजातीय विवाह पंजी एवं निबंधन कार्यालय के विवाह निबंधन पंजी बन रहे है, जहां एक ओर कल्याण विभाग के फाइल में अंतरजातीय विवाह का खाता तक नहीं खुल पाया है. वहीं बिहार विवाह निबंधन नियमावली 2006 के अनुसार 185 पंचायत वाले बांका में मात्र कटोरिया पंचायत में ही विवाहित जोड़े का पंजीकरण मुखिया जी के रजिस्टर में दर्ज हो पाया है. जो नियमावली की उदासीनता के साथ-साथ इसके प्रति लोगों में जागरूकता के अभाव को दर्शाता है.
सरकारी फाइलों के दर्ज आंकड़े
निबंधन कार्यालय के सूत्रों से प्राप्त आंकड़े बताते है कि विशेष विवाह अधिनियम 1954 के तहत 30 आवेदन विवाह सूचना के प्राप्त हुए है. जिसमें 22 का अब तक निबंधन हो पाया है. बिहार विवाह निबंधन नियमावली 2006 के तहत सभी पंचायतों के मुखिया एवं वार्ड पार्षद के पास शादी के एक माह बाद पंजीकरण अनिवार्य कि या गया था. मगर इसे जागरूकता का अभाव ही कह सकते है कि कटोरिया पंचायत की मुखिया आशा गुप्ता के पंजी में 30 विवाहित जोड़े का पंजीकरण हुआ. शेष 184 पंचायतों के मुखिया जी का पंजी का खाता भी नहीं खुल पाया. वहीं भले ही अंतरजातीय विवाह की चर्चा चौक-चौराहों व गांव गलियारों में गुंजती रही हो मगर सरकार के कल्याण विभाग में इनके पंजीकरण शून्य पर ही आउट है. जबकि ऐसे विवाह रचाने वाले के लिए सरकार द्वारा प्रोत्साहन राशि का भी प्रावधान है. ऐसी उदासीनता के कारण वो राशि भी जस की तस विभाग को लौट जाती है. वहीं सरकारी बाबुओं की माने तो आने वाले साल में यह स्थिति नहीं बने. इसके लिए पंचायतों में जागरूकता अभियान चलाने की जरूरत बतायी गयी.