बांका : शहर के बीचों बीच शिवाजी चौक स्थित मां काली मंदिर का इतिहास भी वर्षों पुराना है. वर्तमान में मंदिर के पुरोहित पंडित दिवाकर झा शास्त्री बताते हैं कि वर्ष 1973 से अब तक वो मंदिर के पुरोहित हैं. इसके पूर्व पिताजी के मामा पंडित रामनाथ मिश्रा पुरोहित थे. और इनसे पूर्व कीर्ति नारायण राजहंस काली मंदिर के पुरोहित हुआ करते थे.
मंदिर स्थापना के संबंध में कहा जाता है कि पुरानी ठाकुरवाड़ी के पीछे स्थित वर्तमान में कमल किशोर सिन्हा एवं नंदू किशोर सिन्हा के पूर्वजों के द्वारा मां काली के मंदिर की स्थापना की गयी थी. शिवाजी चौक पर मां काली की स्थापना के संबंध में नंदू किशोर सिन्हा बताते हैं कि मेरे दादा बाबू हरिचांद सिंह के द्वारा हमारे निवास पर वर्ष 1905 से पूर्व मां काली एवं मां सरस्वती के पूजा की जाती थी.
जहां पर समय के साथ जब अधिक भीड़-भाड़ होने लगी और जगह कम पड़ने लगी तो मां काली की स्थापना वर्तमान में उनके द्वारा शिवाजी चौक पर दिया गया. और इनके द्वारा मां काली के मंदिर का निर्माण कराया गया. वही मां सरस्वती की प्रतिमा को आरएमके उच्च विद्यालय के प्रांगण में स्थापित किया गया. जहां प्रत्येक वर्ष धूमधाम से मां सरस्वती की पूजा अर्चना की जाती थी.
समय के साथ साथ बदलाव हुआ पहले मां काली की प्रतिमा के विसर्जन मां काली के मेढ़ को श्रद्धालु अपने कंधे पर लेकर मंदिर के संस्थापक बाबू हरचांद सिंह के घर पुरानी ठाकुरवाड़ी के पीछे तक आते थे जहां पर मां काली को इनके परिवार के द्वारा खोंइचा दिया जाता था उसके बाद मां काली की प्रतिमा का विसर्जन शिवाजी चौक के समीप बने तालाब में किया जाता था.
लेकिन समय का बदलाव होता गया वर्ष 1988 तक मां काली की प्रतिमा का विसर्जन श्रद्धालुओं के कंधे पर से तालाब में किया गया. तालाब के नजदीक मुश्लिम समुदाय के कुछ आबादी बसी थी लेकिन जब वर्ष 1989 में हिन्दू मुसलमान में दंगा हुआ तो तत्कालीन जिलाधिकारी एवं नगर पंचायत के तत्कालीन कार्यपालक पदाधिकारी इग्नेशियस मुर्मू के द्वारा भरवाया दिया गया और तब मां काली के प्रतिमा का विसर्जन वाहन पर रख कर चांदन नदी में किया जाने लगा.
मंदिर का जीर्णोद्धारमां काली के मंदिर का जीर्णोद्धार करने का विचार मंदिर समिति के सदस्यों के द्वारा लिया गया और वर्ष 2002 में मां काली के श्रृंगार को शिवाजी चौंक स्थित पीपरानाथ महादेव स्थान में रख कर मंदिर का निर्माण कराया गया और जब मंदिर का भवन बन गया तो पुन: मां काली के श्रृंगार को मंदिर के प्रथम तल पर स्थित पिंड पर स्थापित किया गया.
नवनिर्मित मंदिर एवं पिंड की प्राण प्रतिष्ठा गुरुधाम बौंसी के प्राचार्य पंडित रतिश चंद्र झा के द्वारा किया गया. उसके बाद वर्ष 2005 में शिक्षक भोला दास के द्वारा जयपुर से लाकर मां काली की पत्थर की प्रतिमा स्थापित की गयी और पत्थर की प्रतिमा में प्राण प्रतिष्ठा तिलडीहा के पंडित उदयकांत झा द्वारा किया गया.