बांका : कृषि विज्ञान केंद्र बांका में लाख (लाह) उत्पादन विषय पर शुक्रवार को एक दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया. इसमें 36 किसानों ने भाग लिया. कार्यक्रम का शुभारंभ डॉ एके जायसवाल निदेशक भारतीय प्राकृतिक रॉल एवं गोंद संस्थान नामांकन रांची द्वारा दीप प्रज्वलित कर किया गया. मौके पर उपस्थित किसानों का संबोधित […]
बांका : कृषि विज्ञान केंद्र बांका में लाख (लाह) उत्पादन विषय पर शुक्रवार को एक दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया. इसमें 36 किसानों ने भाग लिया. कार्यक्रम का शुभारंभ डॉ एके जायसवाल निदेशक भारतीय प्राकृतिक रॉल एवं गोंद संस्थान नामांकन रांची द्वारा दीप प्रज्वलित कर किया गया.
मौके पर उपस्थित किसानों का संबोधित कर उन्होंने कहा कि लाख (लाह) उत्पादन सामन्यत: वैसे जगहों पर होता जहां फसल उगाही कम या नहीं के बराबर होता है. इसका उत्पादन पलास, कुसुम, बेर, सेमियालत्ता इत्यादि पेड़ों पर होता है. किसान भाई इसका उत्पादन कर अधिक लाभ कमा सकते हैं.
िजले में पलास के पेड़ की संख्या अधिक
जिले में पलास का पेड़ काफी संख्या में पाया जाता है. लाख का उत्पादन करने के लिए सबसे पहले पेड़ की टहनियों को इस प्रकार काटा जाता है. कि इसमें अधिक से अधिक नयी टहनियां निकल सके. चूंकि मुलायम और रसदार टहनियों में इसका बढ़ वार ज्यादा होता है. काट-छांट की प्रक्रिया कीट छोड़ने के 6 माह पहले किया जाता है.
रंगिनी लाख कीट से एक वर्ष में दो फसलें ली जाती है. जिसे बैसाखी (ग्रीष्मकालीन) और कतकी (वर्षा कालीन) फसल कहते हैं. बैसाखी फसल हेतु लाह कीट या बीहन को वृक्षों पर अक्तूबर या नवम्बर माह में तथा कतकी के लिए जून या जुलाई माह में चढ़ाया जाता है. केंद्र के कार्यक्रम समन्वयक डा. कुमारी शारदा ने किसानों को बताया कि वे बेकार पड़ी पलास के पेड़ पर लाख का उत्पादन कर अपनी आमदनी में काफी वृद्धि कर सकते हैं.
इसके लिए जरूरत है कि वे समूह में इस कार्य का करें एवं इसके उत्पादन में सभी प्रकार की तकनीकी जानकारी के लिए विशेषज्ञों से ससमय जानकारी दी जायेगी. इस मौके पर डॉ सुनीता कुशवाहा, वैज्ञानिक डॉ धर्मेंद्र कमार, संजय कुमार मंडल, रघुबर साहू , नरेंद्र प्रसाद, राहुल कुमार, राजीव रंजन, देवेंद्र कुमार सिंह सहित किसान मौजूद उपस्थित थे.