।। अवध बिहारी ।।
अमरपुर : सावन का महीना पवन करे शोर जियरा रे झूमे ऐसे जैसे वन में नाचे मोर. शायद यह गाना इस घोर कलियुग में सटीक नहीं बैठ रही है. जानकार बताते हैं कि रोहिणी नक्षत्र आते ही किसान अपने–अपने खेतों में बिचड़ा गिरा देते थे व सावन का महीना आते ही किसान अपने–अपने बैलों के गले में घूंघरु बांध कर अपने खेतों की ओर चल देते थ़े और कहते थे कि इसी माह में पूर्वेया हवा की झोकों में बारिश की फुहार के साथ वन में भी मोर नाचते थ़े लेकिन अब ऐसा कहां देखने को मिलता है.
शायद इस कलियुग का प्रकोप इस प्रखंड क्षेत्र में वर्षा नहीं होने व सिंचाई सुविधा की मुकम्मल व्यवस्था उपलब्ध न होने के चलत़े एक बार फिर यहां के किसानों पर सूखे के बादल मढ़राने लगे हैं.
सावन माह के पूर्व आये मानसून से किसानों के चेहरे यह सोच कर खिल गये थे कि शायद इस बार इंद्रदेव किसानों की त्रासदी देख समय के अनुसार मानसून लेकर आये हैं. इसी उम्मीद के साथ यहां के किसानों ने अपनी अपनी खेतों में सरकार दारा दिए गये अनुदानित बीज सहित अन्य बीज लेकर बिचड़ा तो तैयार कर लिया. लेकिन किसानों दारा तैयार बिचड़ा अब पानी के अभाव में पीला पड़ने लगा है.
इस क्षेत्र के किसान मानसून पर ही निर्भर होकर खेती करने के लिए विवश हैं. जिससे यहां के किसान एक बार फिर धान की खेती नहीं होने को लेकर काफी चिंतित नजर आ रहे हैं. वर्षा नहीं होने के बाबजूद भी इस क्षेत्र के किसानों को सिंचाई सुविधा के लिए चांदन नदी, विलासी डेम एवं लक्ष्मीपुर डेम से निकलने वाली विभिन्न जल स्त्रोत से प्रयाप्त मात्र में सिंचाई करने के लिए पानी उपलब्ध हैं.
परंतु यहां के किसानों का दुर्भाग्य ही कहा जाय कि चांदन नदी से अत्यधिक बालू का उढाव होना, नदी की गहराई अधिक हो जाने से नहरों के लेवल तक पानी का नहीं पहुंच पाना, डेमों से निकलने वाली जल स्त्रोत विभागीय लालफतीशा शाही के चलते यह योजना कागजों पर ही सिमट कर रह गयी.
इतना ही नहीं नहरों से निकलने वाली ड़ाड के माध्यम से क्षेत्र के विभिन्न तलाबों तक पहुंचने वाली पानी को भी दबंगो द्वारा अतिक्र मण कर लेने के चलते भी किसानों के खेतों तक पानी पहुंचने में सबसे बड़ी बाधा बनी हुई है. पिछले दिनों नहर में पानी आई भी लेकिन इन्हीं कारणों के चलते क्षेत्र के सभी तलाबों तक पानी नहीं पहुंच पाया.
साथ ही सरकार द्वारा किसानों एवं मजदूरों को ध्यान में रखते हुए मनरेगा योजना चलाकर ड़ाढ, बांध एवं पोखरो की खुदाई करवा कर किसानों के खेतों तक पानी पहुंचाया जा सक़े
साथ ही मजदूरों को भी एक सौ दिन रोजगार उपलब्ध कराया जा सक़े लेकिन यह भी योजना सरजमीन पर नही उतर पायी. ऐसा नहीं है कि इस योजना के तहत क्षेत्र में विकास का कार्य नहीं किया गया. इस योजना के तहत क्षेत्र में करोड़ों रुपये की लागत से ड़ाढ, बांध एवं पोखर की खुदाई करायी गयी. लेकिन सभी योजनाओं पर सिर्फ घास छिलने का कार्य किया गया.
इस संबंध में बीएओ रामयश मंडल ने बताया कि एक सौ प्रतिशत बिचड़ा तैयार हो चुका है. पन्द्रह दिनों के अंदर बिचड़े को खेत में लगाना है. इस दौरान यदि बारिश नहीं हुई तो क्षेत्र में मात्र दस प्रतिशत रोपाई का अनुमान लगाया जा रहा है.