गांव-गांव में नयी पीढ़ी गुनगुनाने लगे हैं फगुआ लोकगीत
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होली के लोकगीतों को आज की पीढ़ी ने दी संजीवनी
गांव-गांव में नयी पीढ़ी गुनगुनाने लगे हैं फगुआ लोकगीत फिर से सजने लगी होली की मंडली बांका : सदा आनंद रहे यह आंगन…मोहन खेले होली हो, ठीक से ढोलक बजा रहे ढोलकिया तेरा खिलौना ला देंगे इत्यादि गीत अंग की इस धरती पर होली का माहौल आते ही याद आने लगती है. आज ऐसे दर्जनों […]
फिर से सजने लगी होली की मंडली
बांका : सदा आनंद रहे यह आंगन…मोहन खेले होली हो, ठीक से ढोलक बजा रहे ढोलकिया तेरा खिलौना ला देंगे इत्यादि गीत अंग की इस धरती पर होली का माहौल आते ही याद आने लगती है. आज ऐसे दर्जनों प्रसिद्ध गीत आधुनिकता की लंबी धाप में पीछे छूट गयी हैं. अब गांव में न तो बुजुर्ग की होलिका टोली निकलती है और न ही होली की देर संध्या घर के द्वार पर कीर्तन मंडली के दर्शन होते हैं. होली की जो मूल परंपरा और संस्कृति चली आ रही थी वह बीते दस वर्ष पूर्व ही इतिहास के पन्नों में महज याद के लिए ही सुरक्षित रह गयी है. मौजूदा दौर में होली से संबंधित विशेष गीत आज कमजोर पड़ गयी है.
परंतु इसी बीच एक अच्छी बात भी सामने आयी है. जी हां, युवा पीढ़ी ने मृत प्राय: के मार्ग पर अग्रसर होली गीत व इससे जुड़ी परंपराओं को संजीवनी दे दी है. जिले के दर्जनों गांव ऐसे हैं, जहां आज के युवा उत्साहपूर्वक होली गीत गाकर माहौल को फगुआ रंग में रंग रहे हैं. शहर से कुछ किलोमीटर पर स्थिति सैजपुर, कुनौनी, गरनियां, मजलीशपुर, चोरवैय आदि गांव में युवा टीम होली गीत पुरानी परंपरा के मुताबिक ही गा रहे हैं. लिहाजा, इस बार होली में इन युवाओं की प्रस्तुति खास रंग लायेगी.
होलिका गांव-गांव घूमकर गाते थे होली आयी
सात दिन पहले फगुआ गीत होता था शुरू
आपको याद होगा कि होली पर्व के सात दिन पहले से फगुआ गीत गांव के चौपाल व द्वार पर गुनगुनाना शुरू हो जाता था. खासकर ग्रामीण सभ्यता में जीने वाले लोग अपने दैनिक काम से निवृत होकर देर शाम कीर्तन मंडली में जमा हो जाते थे और शुरू हो जाता था होली लोकगीत का अद्भूत संगम. परंतु आधुनिकता की चकाचौंध में पुरानी परंपरा गुम हो गयी. अब बुजुर्गों की टोली गाहे-बगाहे ही किसी-किसी गांव में नजर आती है. परंतु सुखद बात यह है कि आज की पीढ़ी ने अपनी संस्कृति को मजबूती देने के लिए तैयार हो रही है. आज ग्रामीण परिवेश में जीने वाले कई गांव के युवा होली लोक गीत के मुताबिक अपनी जुबां को परिपक्व बना रहे हैं.
न केलव कई गांव में शाम में होली गीत युवा गाते हैं, बल्कि युवा जोश से अचंभित होकर बुजुर्ग भी आहिस्ता-आहिस्ता कीर्तन मंडली में शरीक हो रहे हैं. बुजुर्ग व युवाओं के सामंजस्य से होली गीत का रंग और भी गाढ़ा हो जा रहा है. हालांकि ऐसे जोशीले युवाओं की कमी जरूर है. परंतु भविष्य में सुखद आरंभ की संभावना जरूर है.
होली के प्रमुख लोकगीत
शिशुपाल सजैय बराती, गगन में सूर्य अलोपित हो गये
केकर पोखरिया झीर-झीर पानी केकर पोखरिया सेमार हो
ठीक से ढोलक बजा रहे ढोलकिया तेरा खिलौना ला देंगे
जइहो-जइहो ननद संग पनीयाला अकेली न जइहो
चंदा बसती चकोर जिने चारों दिशा में देव बसे
हरे-हरे खेतवा में पीली-पीली सरसों, टेसू का रंग नहीं छूटेगा बरसों
अवध मां होली खेलै रघुवीरा
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