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विकास का तैयार हो रहा प्लान

-उमगा महोत्सव की तैयारी को लेकर डीएम ने अधिकारियों को दिये टास्क औरगाबाद कार्यालय : सूर्य महोत्सव व राजगीर महोत्सव की तरह अब उमगा महोत्सव भी मनाया जायेगा. प्रशासन इसकी तैयारी में जुटा है. इस संबंध में जिला पदाधिकारी कंवल तनुज ने प्रशासनिक पदाधिकारियों के साथ एक बैठक भी की है,जिसमें उमगा महोत्सव की रुपरेखा […]

-उमगा महोत्सव की तैयारी को लेकर डीएम ने अधिकारियों को दिये टास्क
औरगाबाद कार्यालय : सूर्य महोत्सव व राजगीर महोत्सव की तरह अब उमगा महोत्सव भी मनाया जायेगा. प्रशासन इसकी तैयारी में जुटा है. इस संबंध में जिला पदाधिकारी कंवल तनुज ने प्रशासनिक पदाधिकारियों के साथ एक बैठक भी की है,जिसमें उमगा महोत्सव की रुपरेखा तैयार करने का निर्देश अपने अधीनस्थ पदाधिकारियों को दिया है. जिलाधिकारी द्वारा सीओ, बीडीओ, मदनपुर थानाध्यक्ष से इस पर एक रिपोर्ट भी मांगी है. संभावना है कि रिपोर्ट शीघ्र आते ही महोत्सव पर विशेष बैठक बुलायी जायेगी और फिर उमगा महोत्सव की तैयारी को अंतिम रूप दे दिया जायेगा. साथ उगमा के विकास पर भी चर्चा होगी़़ जिला प्रशासन से मिली जानकारी के अनुसार 13 व 14 मार्च को उमगा महोत्सव कराया जायेगा़ दो दिवसीय महोत्सव में विविध कार्यक्रम होंगे़
प्रशासन व पर्यटन विभाग का पहला महोत्सव : सरकार के पर्यटन विभाग व जिला प्रशासन पहली बार उमगा महोत्सव का शुभारंभ करेगा. अभी तक यह महोत्सव स्थानीय लोगों द्वारा मनाया जाता था.
वैसे सरकार व प्रशासन द्वारा यह महोत्सव पिछले वर्ष ही मनाया जाना था,लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी को राजनीतिक संकट में उलझ जाने के कारण यह महोत्सव नहीं मनाया जा सका था. जबकि उनके द्वारा मदनपुर के खेल मैदान में घोषणा की गयी थी कि राजगीर महोत्सव, सूर्य महोत्सव की तरह उमगा महोत्सव मनाया जायेगा और यह पर्यटक स्थल के रूप में विकसित होगा.
ऐतिहासिक स्थल भी माना जाता : बिहार में पर्यटन की दृष्टि से अति महत्वपूर्ण उमगा तीर्थ स्थली औरंगाबाद जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर पूरब राष्ट्रीय राज मार्ग दो पर स्थित है. मुख्य पथ से एक किलोमीटर दक्षिण पर्वतों का श्रृंखला पर विशालकाय सूर्य मंदिर के साथ-साथ यहां अनेकों देवी-देवताओं की प्रतिमाएं है. मां उमगेश्वरी का स्थान पर्वत की श्रृंखलाओं पर है. इस स्थल को पौराणिक के साथ-साथ ऐतिहासिक स्थल भी माना जाता है.
उमगा धाम के नाम से यह तीर्थस्थली विख्यात है. यूं तो नाम से ही स्पष्ट होता है कि उमगा, उमंग का ही विकृत रूप है. जब उमगा राज्य अपने चरमोत्कर्ष पर था तो उस समय वीर-बांकुड़े राजे-रजवाड़े सावन में आखेट खेलने के लिए पूरे भारतवर्ष से इस पर्वत पर आया करते थे. आखेट कौशल का आनंद ऐसा कहीं नहीं मिलता था, इसीलिए इसका नाम उमगा रखा गया था.
उमगा पर्वत श्रृंखला पर 52 मंदिर : उमगा के इतिहास के संबंध में प्राचीन ग्रंथों व शोधों से जो बातें अब तक सामने आयी है वह यह है कि यह क्षेत्र कोल भीठम आदिवासी राजा दुर्दम का क्षेत्र था. शुरू से अईल व ईल नामक दो राजा आखेट खेलने यहां आये थे. अपने पराक्रम व बहादुरी से एक शेर को पटक कर मारा था. इस घटना से प्रभावित होकर आदिवासी राजा दुर्दम ने अपनी इकलौती पुत्री की शादी राजा अईल से कर दी थी. राजा अईल घर जमाई बन कर वही रह गये. दूसरे भाई अपना देश वापस चले गये. राजा अईल के ही वंशज के 13वीं पीढ़ी में राजा भैरवेंद्र थे, जिन्होंने उमगा पर्वत श्रृंखला पर 52 मंदिरों की स्थापना की थी.
उनके राज्य को देवमुंगा राज्य के नाम से जाना जाता था. राजा भैरवेंद्र देव गढ़ को एक मुसलिम शासक से जीत कर अपने शासन में मिला लिया था और विजयी दिवस के अवसर पर उमगा सूर्य मंदिर की तरह ही देव में भी किला से दक्षिण एक विशाल सूर्य मंदिर की स्थापना की थी. कलांतर में देवमुंगा राज्य देव व उमगा में विभक्त हो गया. राजा देव में ही रह कर उमगा पर शासन करते रहे.
948 एकड़ में फैला है उमगा पर्वत : उमगा पर्वत 948 एकड़ में फैली है. इसके उत्तर में भस्मासुर, दक्षिण में सतबहिनी व मटुक भैरव, पूरब में अनेकों देवी-देवताओ का स्थान व पश्चिम में विशाल सूर्य मंदिर है. सूर्य मंदिर से ठीक दक्षिण-पश्चिम कोने पर किला का खंडहर आज भी अपने गौरव गाथा को अपने अतीत में समेटे है. किला से पश्चिम 52 बीघा का विशाल तालाब है.
दो हजार फुट की ऊंचाई पर है सूर्य मंदिर: उमगा पर्वत पर दो हजार फुट दूरी की चढ़ाई पर विशाल सूर्य मंदिर है. इसका दरवाजा पूरब की ओर है. मंदिर के भीतर गर्भ गृह में विशाल शिलालेख है,जिसमें मंदिर निर्माण से संबंधित बातें लिखी हुई है. मंदिर के अंदर में कई मूर्तियों को मुगलकालीन शासन में गायब कर दिया गया था. बाद में इसमें वहां के पुजारियों ने चतुभुर्जी गणेश, सूर्य, शिव आदि की मूर्ति इसमें स्थापित की थी. गर्भ गृह में ही पश्चिम दीवार से सटे सिंहासन पर जनार्दन, बलराम व सुभद्रा की मूर्तियां स्थापित है. सूर्य मंदिर से एक हजार फुट ऊपर सीढ़ीनुमा रास्ते से जाने पर सहस्त्रसिघी महादेव का एक मंदिर है.
जहां एक विशाल शिवलिंग में हजारों लिंग की रचना की गयी है. बताया जाता है कि विश्व में यह अदभूत व अद्वितीय है. सहस्त्रसिंघी महादेव से 50 फुट की दूरी पर एक कुंड बना है,जिसमें वर्षा का पानी जमा होता है और वहीं पानी पूजा के काम में आता है. कुंड के बगल में ही कष्टहरणी देवी व शंकर की मूर्ति स्थापित है. वहां से 400 फुट पूरब जाने पर एक बड़े चटान के नीचे मां भगवती उमगेश्वरी की पवित्र प्रतिमा स्थल है.
यहां अष्टदल कमल पर मां भगवती जगदंबा विराजमान है. उमगा मेले में आनेवाले श्रद्धालु मां उमगेश्वरी का दर्शन अवश्य करते हैं. इस स्थल से 50 फुट दक्षिण एक खंडहरनुमा मंदिर है. बताया जाता है कि मुगलकालीन शासन में इस मंदिर के तोड़ दिया गया था और स्थापित मूर्ति को चोरों ने चोरी कर ली थी. यहां से 200 फुट पूरब एक मंदिर में विशाल शिवलिंग स्थापित है.
उसके आगे एक खंडहरनुमा दीवार पर शिव पार्वती आलिंगन पास में बंधे हुए मूर्ति दिखाई देते हैं. उसके आगे एक हजार फुट की दूरी पर गौरी शंकर की गुफा है. इस गुफा में गौरी व शंकर कामरत है. इस पर्वत श्रृंखला के सबसे ऊंची चोटी पर भग्नावेश एक मंदिर है, जिसकी पवित्र गुफा में नंदी के साथ शिव जी व विशाल दस भुजी गणेश की मूर्ति स्थापित थी. गणेश जी की मूर्ति को चोरों ने चोरी कर ली थी.

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