औरंगाबाद (ग्रामीण) : औरंगाबाद जिले में नियमों को ताक पर रख कर होटलों का संचालन किया जा रहा है. होटलों में ठहरने वाले व्यक्ति किस तरह के हैं, कैसा काम करने आये, कहां जाना है और कब तक रुकना है. इससे होटल मालिकों को कोई लेना देना नहीं है. यही हाल लॉज की भी है. जिला मुख्यालय में एक दर्जन से ऊपर होटल चल रहे हैं.
इनमें अधिकांश नियमों की धज्जियां उड़ा रहे हैं. बगैर पहचान पत्र के ग्राहकों को ठहरने की इंट्री दी जाती है. सिर्फ खानापूर्ति के लिए दैनिकी रजिस्टर में उपस्थिति दर्ज करायी जाती है. कुछ होटलों को छोड़ कर अधिकांश में सीसीटीवी कैमरे भी नहीं लगाये गये हैं, जबकि होटल मालिकों को जिला प्रशासन द्वारा कई दिशा-निर्देश पूर्व में ही जारी किये गये हैं. ग्राहक को होटल में ठहरने से पहले उसका पहचान पत्र, आने-जाने का समय, ठहरने का उद्देश्य के साथ-साथ अन्य बिंदुओं की जांच आवश्यक है. तभी ग्राहकों को होटल में रुकने का आदेश दिया जा सकता है.
लेकिन, अधिकांश होटल में ग्राहकों की मनमर्जी चलती है. फर्जी पता दैनिकी रजिस्टर में दर्ज कराने के बाद भी होटल संचालक इसकी जांच नहीं कर पाते हैं. दूसरा यह कि प्रतिदिन होटल की गतिविधियों की सूचना संबंधित थाने को दी जा जानी है. लेकिन, इसमें भी लापरवाही होती है. पुलिस भी इस काम को खानापूर्ति समझती है. जब कोई बड़ी घटना घटती है तभी पुलिस की नींद खुलती है और मामले की जांच में लग जाती है. अगर यही काम पुलिस पहले करती तो घटना की गुंजाइश ही नहीं रहती. जरूरत है जिला मुख्यालय में चलने वाले होटलों की जांच करने की.