शिक्षा के मौलिक अधिकार से छात्र-छात्राओं को करना है लाभान्वित, हो रही कागजी खानापूर्ति
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गरीब तबकों के बच्चों को नहीं मिल रहा आरटीइ का लाभ
शिक्षा के मौलिक अधिकार से छात्र-छात्राओं को करना है लाभान्वित, हो रही कागजी खानापूर्ति अररिया : सरकार ने निजी विद्यालयों में छात्रों अभिभावकों का शोषण रोकने एवं शैक्षणिक स्थिति में सुधार के लिए आरटीइ कानून लाया है. लेकिन यह कानून लगता है कि बस नाम का ही रह गया है, न तो अब तक सभी […]
अररिया : सरकार ने निजी विद्यालयों में छात्रों अभिभावकों का शोषण रोकने एवं शैक्षणिक स्थिति में सुधार के लिए आरटीइ कानून लाया है. लेकिन यह कानून लगता है कि बस नाम का ही रह गया है, न तो अब तक सभी निजी विद्यालयों को इसके दायरे में लाया जा सका है ओर न ही प्रस्वीकृति प्राप्त विद्यालयों में ही इसका अनुपालन हो पा रहा है, जिसका परिणाम है कि विद्यालयों के छात्र शिक्षा के मौलिक अधिकार से वंचित रह रहे हैं.
बड़े विद्यालय या यह कह सकते हैं कि प्राइवेट विद्यालयों में पढ़ने वाले अधिकांश छात्र संपन्न परिवार के होते हैं लेकिन गरीब तबकों के छात्रों को इन विद्यालयों में शैक्षणिक लाभ नहीं मिल पाता है. सरकारी विद्यालयों में पढ़ रहे छात्रों का हाल देख कर यह सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि उन्हें शिक्षा के मौलिक अधिकार का कितना लाभ मिल पा रहा है. हालांकि शिक्षा विभाग नित्य नये दावे तो जरूर कर रहा है लेकिन आरटीइ कानून छात्रों को शिक्षा का अधिकार दे पाने में सक्षम साबित होता नहीं दिख रहा है.
जिले में 240 विद्यालय हैं प्रस्वीकृति प्राप्त
अररिया जिला में वर्ष 2012 से 2015 में 240 प्राइवेट स्कूलों को जिला शिक्षा कार्यालय से आरटीइ के तहत प्रस्वीकृति दी गयी है़ लेकिन प्रस्वीकृत विद्यालयों में मानक का अनुपालन नहीं होता दिख रहा है़ जिला शिक्षा कार्यालय द्वारा प्राइवेट विद्यालयों को तीन वर्ष के लिए और औपबंधिक प्रस्वीकृत दी जाती है़ तीन वर्ष के अंदर इसकी जांच कर ही उन्हें स्थायी प्रस्वीकृति दिये जाने का प्रावधान है. कार्यालय सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार वर्ष 2012 में 97, वर्ष 2013 में 87 तथा वर्ष 2015 में 55, वर्ष 2016 में अब तक 37 विद्यालयों को स्थायी प्रस्वीकृति मिल पाया है़
शेष 148 विद्यालयों को स्थायी प्रस्वीकृति अब तक नहीं मिल पाया है, जिससे यह साबित होता है कि इन विद्यालयों द्वारा प्रस्वीकृति की शर्तों को पूरा नहीं किया जा सका है. वर्ष 2010 में लागू कानून आज की तारीख में 75 प्रतिशत स्कूलों में महज सपना बनकर रह गया है, जहां सरकारी स्कूलों की हालत कमजोर है, वहीं प्राइवेट स्कूलों में इस कानून का कोई असर नहीं दिख रहा है़
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