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21 सालों की जद्दोजहद का नतीजा है जिले का 26वां स्थापना दिवस

अररिया : पूर्व के कई सालों की तरह इस बार भी जिला स्थापना दिवस के मौके पर समारोह का आयोजन प्रशासन ने किया है. तीन दिवसीय आयोजन को लेकर स्कूली बच्चों से लेकर आम अवाम में भी उत्साह है. इससे भी इनकार की गुंजाइश नहीं कि जिला बनने से लेकर अब तक जिले के हर […]

अररिया : पूर्व के कई सालों की तरह इस बार भी जिला स्थापना दिवस के मौके पर समारोह का आयोजन प्रशासन ने किया है. तीन दिवसीय आयोजन को लेकर स्कूली बच्चों से लेकर आम अवाम में भी उत्साह है. इससे भी इनकार की गुंजाइश नहीं कि जिला बनने से लेकर अब तक जिले के हर क्षेत्र में कुछ न कुछ विकास हुआ है.

लोगों का ये उत्साह वाजिब भी है. लेकिन ये बात भी याद रखनी जरूरी है कि जिले का दर्जा यूं ही नहीं मिल गया था, बल्कि इसके लिए लगभग 21 सालों तक जिले वासियों ने आंदोलन किया था.

1969 से लेकर 1990 तक चले जिला बनाओ संघर्ष की खास बात ये थी कि इस मांग को लेकर बुद्धिजीवियों, अधिवक्ताओं, व्यवसायियों, किसानों, मीडिया कर्मियों से लेकर आम अवाम एकजुट थे. यही नहीं बल्कि दलीय राजनीति से ऊपर उठ कर विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता व कार्यकर्ता भी एक मंच पर आ गये थे. जानकारी के मुताबिक आंदोलन के लिए लोगों ने बैठक कर जिला बनाओ संघर्ष समिति का गठन किया था.
बताया जाता है जिस उच्च विद्यालय परिसर में जिले का 26वां स्थापना दिवस मनाया जा रहा है, उसी विद्यालय परिसर में आयोजित बैठक में अररिया नगर पालिका के तत्कालीन चेयरमैन अधिवक्ता हंसराज प्रसाद को जिला संयोजक चुना गया था. प्रखंड स्तरों पर भी संयोजक बनाये गये थे. संघर्ष के इतिहास को याद करते हुए हंसराज प्रसाद बताते हैं कि प्रखंड से लेकर अनुमंडल स्तर तक आंदोलन शुरू किया गया. मशाल जुलूस, धरना-प्रदर्शन से लेकर ट्रेन परिचालन ठप करने तक सब कुछ होता रहा. जेल भरो अभियान भी चला. लोगों को फौजदारी मुकदमा तक झेलना पड़ा.
साथ ही सरकार तक अपनी मांगें भी पहुंचायी जाती रहीं. राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री दारोगा प्रसाद राय, केदार पांडे, अब्दुल गफूर व डा जगन्नाथ मिश्रा से जिला वासी बार-बार पटना जाकर मिलते रहे. जिले वासियों का आंदोलन आखिरकार रंग लाया. नतीजे में अररिया को जिला का दर्जा देते हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री डा जगन्नाथ मिश्रा ने 14 जनवरी 1990 को अररिया पहुंच कर इसका उद्घाटन किया.
श्री प्रसाद ने बताया कि जिले का दर्जा दिलाने में लोगों के योगदान को इतिहास कभी भुला नहीं सकता है. पूर्व केंद्रीय मंत्री डुमर लाल बैठा, पूर्व मंत्री सरयू मिश्रा, सत्य नारायण यादव,पूर्व सांसद हलीमुद्दीन अहमद, पूर्व विधायक रामेश्वर यादव, मो यासीन, डा आजम व बुंदेल पासवान अब इस दुनियां में नहीं हैं, लेकिन उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है.

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