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अल्पसंख्यकों की भी दिखी दीवानगी

किशनगंज: स्थानीय किशनगंज स्टेशन पर हुंकार रैली में हिस्सा लेने वाले जन सैलाब को देख कर तो यही लग रहा था कि दलीय एवं धर्म की राजनीति अब अंतिम सांस ले रही है. 70 प्रतिशत मुसलिम आबादी वाले किशनगंज के लोगों ने इस रैली में हिस्सा लेने के लिए पटना जाने हेतु लाखों परेशानियों के […]

किशनगंज: स्थानीय किशनगंज स्टेशन पर हुंकार रैली में हिस्सा लेने वाले जन सैलाब को देख कर तो यही लग रहा था कि दलीय एवं धर्म की राजनीति अब अंतिम सांस ले रही है. 70 प्रतिशत मुसलिम आबादी वाले किशनगंज के लोगों ने इस रैली में हिस्सा लेने के लिए पटना जाने हेतु लाखों परेशानियों के बावजूद अपने उत्साह को कम नहीं होने दिया. संपूर्ण प्लेटफॉर्म पर यात्रियों का जत्था ही नजर आ रहा था. सभी हिंदू-मुसलिम भाजपाई एक दूसरे की सहायता करने को तत्पर नजर आ रहे थे. चारों ओर नमो की जयकार हो रही थी. आम जनता स्वयं इस यात्र का नेतृत्व कर रही थी. ऐसा लग रहा था कि मानो यह जनता का स्वत:स्फूर्त आंदोलन हो और सभी जात धर्म की राजनीति को भुला अपने कर्तव्य बोध से संचालित नजर आ रहे थे. सभी के दिलों में इस ऐतिहासिक रैली को हिस्सा बनने का संतोष साफ चेहरे पर दिखायी दे रहा था. शायद किशनगंज की जनता सह संदेश देने को आतुर थी कि मुसलिम समुदाय किसी दल विशेष की निजी संपत्ति नहीं है. यहां अवाम के दिलों में भी एक आत्मा निवास करती है जो सच एवं गलत के निर्णय को लेने के लिए स्वतंत्र है. उसकी आत्मा की आवाज को कोई विशेष दल या समुदाय अपनी संपत्ति नहीं बना सकता है. संभव है बिहार की राजनीति को यह रैली एक नया आयाम प्रदान कर दें, जिसमें जात धर्म की राजनीति के लिए कोई ध्यान शेष न रहा हो.

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