इस्लाम जिंदा होता हर करबला के बाद : मौलाना अकमल प्रतिनिधि, छत्तरगाछ’कत्ल ए हुसैन असल में मर्ग मजीद है, इसलाम जिंदा होता है हर कबरला के बाद’ मुसलमानों ने आज से 1335 वर्ष पूर्व दसवीं मुहर्रम को इराक देश के करबला के मैदान में इस्लाम को बचाने की खातिर यजीद पलीद के लश्करों से लड़ते-लड़ते हजरत इमाम हुसैन शहीद हो गये थे. उक्त बातें मौलाना अकमल हुसैन ने बुढ़नई पंचायत स्थित गंजाबाड़ी में तकरीर के दौरान कही. उन्होंने कहा कि हजरत इमाम हुसैन को यजीद पलीद ने दावत देकर इस्लाम फैलाने के लिए कुफा बुलाया था. लेकिन धोखे से उन्हें कुफाह के बजाये करबला के मैदान में ले जाया गया और पानी तक बंद कर दिया. आखिर में दसवीं मुहर्रम को यजीदी लश्करों से मुकाबला करते हुए इस्लाम को बचाने की खातिर 56 साल पांच माह और चार दिन की उम्र में अपनी जान दे दी. अकमल हुसैन ने हजरत इमाम हुसैन के जीवनी के बारे में तथा शहीदाने करबला के बारे में लोगों को तफसील से जानकारी दी तथा मुहर्रम के महीने के फजिलियत के बारे में उपस्थित लोगों को बताया. इस मौके पर मौलाना बसीरउद्दीन तथा हाफीज तनवीर आलम ने भी अपने-अपने अंदाज में तकरीरे और नआत ए पाक सना कर लोगों को जागने में मजबूर कर दिया.
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इस्लाम जिंदा होता हर करबला के बाद : मौलाना अकमल
इस्लाम जिंदा होता हर करबला के बाद : मौलाना अकमल प्रतिनिधि, छत्तरगाछ’कत्ल ए हुसैन असल में मर्ग मजीद है, इसलाम जिंदा होता है हर कबरला के बाद’ मुसलमानों ने आज से 1335 वर्ष पूर्व दसवीं मुहर्रम को इराक देश के करबला के मैदान में इस्लाम को बचाने की खातिर यजीद पलीद के लश्करों से लड़ते-लड़ते […]
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